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'चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुश्किल... ', इस्तीफे के 4 महीने बाद ऐसा क्यों बोले जगदीप धनखड़?

Jagdeep Dhankhar ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. अब चार महीने बाद ,उनकी सार्वजनिक रूप से पहली प्रतिक्रिया सामने आई है.

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पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे चुके, जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) की सार्वजनिक रूप से पहली प्रतिक्रिया सामने आई है. भोपाल में एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि नैरेटिव के ‘चक्रव्यूह’ से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है. इस दौरान उन्होंने अपनी लंबी अनुपस्थिति का जिक्र भी किया. 

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21 जुलाई को जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. ठीक चार महीने बाद यानी 21 नवंबर को, एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने कहा,

चार महीने बाद, इस अवसर पर, इस पुस्तक पर, इस शहर में, मुझे बोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.

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अपने भाषण में पूर्व उपराष्ट्रपति ने किसी नैरेटिव में न फंसने की अपील की. धनखड़ ने कहा,

भगवान न करे कि कोई किसी नैरेटिव में फंस जाए. अगर कोई इस चक्रव्यूह में फंस गया, तो उसका निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है.

उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, "मैं अपना उदाहरण नहीं दे रहा हूं." उनकी इस टिप्पणी पर श्रोताओं में ठहाके गूंज उठे. पूर्व उपराष्ट्रपति, RSS के संयुक्त महासचिव मनमोहन की किताब ‘हम और ये विश्व’ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे. धनखड़ ने कहा,

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यह किताब हमारे गौरवशाली अतीत का दर्पण है. यह किताब उन लोगों को जगाएगी जो सोए हुए हैं. यह हमारा, हमारे सांस्कृतिक मूल्यों से परिचय कराएगी.

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पूर्व मुख्यमंत्री ने साधा निशाना

दिलचस्प बात यह है कि BJP के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार या राज्य BJP का कोई भी नेता धनखड़ को एयरपोर्ट पर लेने नहीं पहुंचा. इस पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया दी और BJP पर पूर्व उपराष्ट्रपति के प्रोटोकॉल का पालन न करने का आरोप लगाया. दिग्विजय सिंह ने भोपाल में पत्रकारों से कहा, 

वे (BJP ) इस्तेमाल करो और फेंक दो की नीति अपनाते हैं.

जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, राजनीतिक हलकों में किसी ने भी इस बहाने को नहीं माना. अटकलें लगाई जा रही थीं कि मुखर धनखड़ और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच मतभेद की वजह से उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा. जबकि उनका कार्यकाल अगस्त 2027 में यानी करीब दो साल बाद खत्म हो रहा था.

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