असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भारत सरकार से संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की मांग की है. पिछले कुछ दिनों से इन दोनों शब्दों पर विवाद चल रहा है. अब सरमा ने भी दोनों शब्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दे दी है. मुख्यमंत्री सरमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से कहा कि प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने का यह 'सुनहरा समय' है.
संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद','धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने का सुनहरा समय', हिमंता भी बोल ही दिए
CM Himanta Biswa Sarma ने कहा कि भारतीय संविधान में Article 14 सभी नागरिकों को कानूनी बराबरी का अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि BR Ambedkar ने संविधान बनाते वक्त कहा था कि Secularism शब्द का जिक्र नहीं करना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएम हिमंता बिस्वा सरमा शनिवार, 28 जून को असम में 'दी इमरजेंसी डायरीज' किताब के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 42वें संशोधन के जरिए दो शब्दों (समाजवादी और पंथनिरपेक्षता) को जोड़कर संविधान को 'पूरी तरह बदल दिया गया.' दरअसल, संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' की जगह 'पंथनिरपेक्ष' शब्द का इस्तेमाल किया गया है.
सरमा ने अपने संबोधन में आगे कहा,
"आपातकाल के पचास साल बाद चाहे वो RSS हो या देश के कई बुद्धिजीवी, उन्होंने कहा है कि संविधान से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने का यह सुनहरा समय है. हम एक परिपक्व लोकतंत्र हैं... हमें ब्रिटिश या अमेरिकी संविधानों से धर्मनिरपेक्षता की शब्दावली अपनाने की जरूरत नहीं है; हम अपनी धर्मनिरपेक्षता भगवद गीता से लेंगे."
सरमा ने आगे कहा कि भारतीय संविधान में पहले से ही धर्मनिरपेक्षता का बुनियादी सिद्धांत 'आर्टिकल 14' के जरिए मौजूद है, जो सभी नागरिकों को कानूनी बराबरी का अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि बीआर आंबेडकर ने संविधान बनाते वक्त कहा था कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का जिक्र नहीं करना चाहिए. हम निष्पक्ष नहीं हैं, हम हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के साथ खड़े हैं. सरमा ने साफ किया कि भारत की धर्मनिरपेक्षता एक सकारात्मक नजरिया है.
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने यह भी कहा कि समाजवाद भारतीय सभ्यता का हिस्सा नहीं था और ना ही महात्मा गांधी के आर्थिक सिद्धांतों में था. उन्होंने बताया कि 1990 के दशक में कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने इसे खत्म किया और आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए.
दरअसल, संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की बहस उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुरू की थी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 25 जून को लखनऊ में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' जैसे शब्द जोड़ना भारत की आत्मा पर क्रूर आघात था. उन्होंने मांग की थी कि इसके लिए कांग्रेस को देश और दलितों से माफी मांगनी चाहिए.
इसके बाद 26 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इस बहस को हवा दी. उन्होंने कहा था कि 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को प्रस्तावना में बनाए रखने पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये शब्द संविधान के मूल रूप में शामिल नहीं थे और इन्हें गलत तरीके से जोड़ा गया था.
इसके तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बयान दे डाला. 26 जून को उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति की आत्मा 'सर्व धर्म समभाव' की है, ना कि 'धर्मनिरपेक्ष'. उन्होंने 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की वकालत की. वहीं, केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि हर समझदार नागरिक चाहेगा कि ये शब्द हटाए जाएं क्योंकि ये मूल संविधान में नहीं थे.
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