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'जजों को धार्मिक भावनाओं से...', SC के पटाखों वाले फैसले पर बोले पूर्व जस्टिस एएस ओका

Supreme Court के रिटायर्ड Justice Abhay S Oka ने कहा कि धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल और बड़े आकार की मूर्तियों का विसर्जन जैसी चीजें किसी भी धर्म के लिए अनिवार्य नहीं हैं.

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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस ओका ने पर्यावरण पर अपनी बात रखी. (YT: SCBA)
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अनीषा माथुर

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस ओका ने दिवाली के दौरान 'ग्रीन पटाखे' फोड़ने की इजाजत देने वाले शीर्ष अदालत के हालिया आदेश पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देता. उन्होंने जजों से धार्मिक भावनाओं से प्रभावित ना होने के लिए कहा है. जस्टिस ओका ने दिल्ली-NCR में साल भर पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश देने वाली पीठ की अध्यक्षता की थी.

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बुधवार, 29 अक्टूबर को रिटायर्ड जस्टिस अभय एस ओका ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की लेक्चर सीरीज में 'स्वच्छ वायु, जलवायु न्याय और हम - एक सतत भविष्य के लिए एक साथ' विषय पर लेक्चर दिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि सभी धर्मों में सिखाया गया है कि हमें पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए और जीवों पर दया दिखानी चाहिए.

उन्होंने जोर दिया कि कोई भी धर्म हमें पर्यावरण को खत्म करने या जानवरों के साथ क्रूरता करने की इजाजत नहीं देता. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि दिवाली में पटाखे फोड़ना कोई अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है. यह सिर्फ एक परंपरा बन गई है. इंडिया टुडे से जुड़ीं अनीषा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ओका ने कहा,

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"मैं दिवाली में पटाखे फोड़ने का एक उदाहरण दूंगा. यह सिर्फ दिवाली या सिर्फ हिंदू त्योहारों तक ही सीमित नहीं है. भारत के कई हिस्सों में ईसाई नए साल के पहले दिन पटाखे फोड़ते देखे गए हैं. लगभग सभी धर्मों के लोगों की शादियों में इनका इस्तेमाल होता है... जब हम त्योहार मनाते हैं, तो हम इसे खुशी और उल्लास के लिए मनाते हैं, जब परिवार एक साथ आते हैं, तो गिफ्ट और मिठाइयां बांटते हैं. लेकिन सवाल यह है कि ऐसे पटाखे फोड़ने से खुशी और उल्लास कैसे हो सकता है जो बूढ़ों, कमजोरों और पशु-पक्षियों को परेशान करते हैं?"

इस बीच उन्होंने जजों से कहा,

"अगर जज सच में मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों को बनाए रखना चाहते हैं और अगर वे सच में पर्यावरण की रक्षा करना चाहते हैं, तो उन्हें लोकप्रिय या धार्मिक भावनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए."

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जस्टिस ओका ने न्यायपालिका से भी अपील की कि वे पर्यावरण से जुड़े कानूनों के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई करे. उन्होंने कहा कि धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल और बड़े आकार की मूर्तियों का विसर्जन जैसी चीजें किसी भी धर्म के लिए अनिवार्य नहीं हैं. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, लाउडस्पीकर से अजान पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस ओका ने कहा,

"हम लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है जिसका असर इंसान के शरीर पर पड़ता है. म्यूजिक इतना तेज होता है कि कुछ इमारतें तक हिल जाती हैं, गाड़ियां हिलने लगती हैं. मेरा मानना ​​है कि कोई भी धर्म किसी भी त्यौहार को मनाने में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत या बढ़ावा नहीं देता. उदाहरण के लिए मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट का एक फैसला है, जिसमें कहा गया है कि यह आर्टिकल 25 के तहत संरक्षित नहीं है और आवश्यक धार्मिक रीति-रिवाजों का हिस्सा नहीं है. और इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी भी दी थी."

उन्होंने सवाल किया,

“हमें त्योहार मनाने के लिए तेज म्यूजिक की जरूरत क्यों है? हम यह क्यों नहीं समझ पाते कि इसका असर इंसानों पर पड़ता है, खासकर बुजुगों और कमजोरों पर? त्योहार मनाते समय पटाखे फोड़कर या लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करके ध्वनि प्रदूषण फैलाने से हमें क्या खुशी मिलती है?”

ओका ने कहा कि धार्मिक उत्सवों में शोर-शराबा और प्रदूषण की समस्या हर धर्म में बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का काम है लोगों के बुनियादी अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करना और इसमें पर्यावरण की सुरक्षा भी शामिल है.

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