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'सेना के दो मेजर, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और CCTV', दिल्ली की अदालत ने निजता के अधिकार पर बड़ा फैसला दिया

Delhi: Patiala House Court में एक आर्मी मेजर ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के मामले में होटल की CCTV फुटेज निकलवाने के लिए याचिका दायर की थी. मेजर का आरोप है कि उनकी बीवी का किसी अन्य मेजर के साथ विवाहेतर संबंध हैं.

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Delhi: पटियाला हाउस कोर्ट ने आर्मी मेजर की याचिका खारिज की. (PTI)

एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर के एक मामले में अदालत ने 'निजता के अधिकार' (Right to Privacy) पर फिर मोहर लगाई है. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इंडियन आर्मी के एक मेजर की याचिका खारिज कर दी. मेजर ने आरोप लगाया था कि उनकी पत्नी का अफेयर दूसरे मेजर के साथ चल रहा है. याचिका में होटल से CCTV फुटेज जारी करने की मांग की गई, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, 22 मई के आदेश में कोर्ट ने कहा कि होटल में एक कपल का निजता का अधिकार होता है, और उनकी व्यक्तिगत जानकारी को तीसरे पक्ष से बचाकर रखा जाता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि होटल के कॉमन एरिया में भी इस निजता का अधिकार लागू होता है, और किसी तीसरे व्यक्ति को इनकी जानकारी हासिल करने का हक नहीं है.

जज वैभव प्रताप सिंह ने कहा कि पत्नी और उसके कथित प्रेमी का नाम मुकदमे में नहीं लिया गया था, जबकि पूरा मामला उन पर ही है. उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या कपल को केस में पार्टी बनाए बिना होटल को फुटेज देने के लिए मजबूर किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा,

"उन्हें अपने निजता अधिकारों की हिफाजत करने का मौका दिए बिना ऐसी निजी जानकारी जारी करना उनके प्राकृतिक न्याय के अधिकार और यहां तक ​​कि निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा और इससे उनके सम्मान को नुकसान पहुंच सकता है."

जज ने कोर्ट के दायरे को लेकर भी साफ किया कि अदालतें निजी विवादों के लिए जांच एजेंसी नहीं होतीं, और ऐसे मामलों में इंटरनल प्रोसेस का पालन करना जरूरी है.

अपने आदेश में जज ने यह भी बता दिया कि रिश्तों में 'बेवफा' कौन होता है. उन्होंने ग्रेहम ग्रीन के उपन्यास 'दी एंड ऑफ दी अफेयर' का हवाला दिया, जिस पर 1999 में इसी नाम से हॉलीवुड में एक फिल्म भी बनी थी. जज ने बताया कि 'वफादारी का बोझ' वादा करने वाले पर होता है. उन्होंने उपन्यास को याद करते हुए कहा,

"वो प्रेमी नहीं है, जिसने शादी में धोखा दिया, बल्कि वो है, जिसने वादा किया और उसे तोड़ दिया. बाहर वाला कभी भी इस वादे से बंधा नहीं था."

सुप्रीम कोर्ट के 2018 के 'जोसफ शिंदे वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया' फैसले का भी जिक्र करते हुए जज ने कहा कि अदालत ने यह मान्यता दी थी कि एक आदमी किसी दूसरे आदमी की पत्नी को 'चुरा' नहीं सकता, क्योंकि पत्नी का भी अपना अधिकार है कि वो किसे प्यार करे. जज ने यह भी कहा कि संसद ने भी 'व्यभिचार' (Adultery) के कानून को खत्म कर दिया था. यह दिखाता है कि आधुनिक भारत में अब पुरानी पितृसत्तात्मक सोच और लिंगभेद की कोई जगह नहीं है.

हालांकि, जज ने कहा कि मेजर कानूनी राहत पाने के लिए आर्मी एक्ट, 1950 और मौजूदा नियमों का सहारा ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि अदालत का इस्तेमाल इंटरनल सिस्टम को दरकिनार करने या उसकी पूर्ति करने के लिए नहीं किया जा सकता है.

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