कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 2025 (Bihar SIR) और 'वोट चोरी' के मुद्दे पर पूरी तरह मुखर है. लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव के साथ बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' भी निकाली थी. यह तो हुई राजनीति की बात. अब भारत के तीन पूर्व चुनाव अधिकारियों ने SIR, वोटर लिस्ट और ‘वोट चोरी’ जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी है.
SIR पर खुलकर बोले 3 पूर्व चुनाव आयुक्त, 'वोट चोरी' पर कांग्रेस-विपक्ष को दिया जोर का झटका
Bihar SIR: भारत के तीन पूर्व चुनाव आयुक्तों ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 2025 की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं. हालांकि, उन्होंने SIR का जरूर बचाव किया है. तीनों ने 'Vote Chori' पर भी अपनी राय रखी.


इंडिया टुडे साउथ कॉन्क्लेव 2025 में बोलते हुए दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों- एसवाई कुरैशी और ओपी रावत और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने जोर देकर कहा कि भारत के चुनाव 'काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष' हैं. उन्होंने यह भी कहा कि 'वोट चोरी' जैसे दावे राजनीतिक बयानबाजी हैं, जो हर चुनावी मौसम में सामने आते हैं.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, एसवाई कुरैशी ने निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए साफ-सुथरी वोटर लिस्ट पर जोर दिया. उन्होंने कॉन्क्लेव में कहा,
"वोटर लिस्ट को लेकर चिंताएं जायज हैं. मैंने हमेशा कहा है कि वोटर लिस्ट हमारी कमजोर रीढ़ हैं. ये भारत के चुनावों और उनकी विश्वसनीयता की नींव हैं. जब तक वोटर लिस्ट सटीक और साफ-सुथरी नहीं होंगी, चुनावों को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता."
उन्होंने आगे कहा,
"मैं अपने दोनों सहयोगियों से सहमत हूं. यह देखते हुए कि एक अरब से ज्यादा मतदाता हैं, ज्यादातर चीजें घड़ी की सुई की तरह सटीक चलती हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक मुद्दे साख को नुकसान पहुंचाते हैं, और हमें इसके बारे में चिंतित होना होगा."
भारत के चुनावों की निष्पक्षता पर ओपी रावत ने कहा,
“भारत के चुनावों को स्वर्णिम मानक माना जाता है, और दुनिया भर के ज्यादातर लोकतंत्र सबसे ज्यादा स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनावों के तौर पर इसकी तारीफ करते हैं.”
इस बीच तीनों पूर्व चुनाव अधिकारियों ने वोटर लिस्ट की व्यवस्थित जांच (SIR) के कॉन्सेप्ट का बचाव किया. लेकिन उन्होंने बिहार में इसकी टाइमिंग और प्रक्रिया पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में 'गलतियां होना स्वाभाविक है' और चुनाव से ठीक पहले इसे विवाद का मुद्दा नहीं बनना चाहिए.
तीनों ने माना कि वोटर लिस्ट कभी भी पूरी तरह सटीक नहीं होती हैं और ऐसा हमेशा से होता आया है. अशोक लवासा ने कहा कि लिस्ट में लगभग 99 करोड़ नामों के साथ,"कुछ गलतियां होना स्वाभाविक है. सवाल ये है कि क्या ये गलतियां असली हैं या बुरे इरादे से की गई हैं."
ओपी रावत ने SIR पर तर्क दिया कि लोगों से 11 दस्तावेजों (सिर्फ आधार नहीं) में से कोई एक जमा करने के लिए कहने से गरीब मतदाताओं पर बोझ पड़ने का खतरा है. उन्होंने पूछा,
"ऐसे समय में जब बाढ़ और मानसून भारी तबाही मचा रहे हैं, क्या गरीब लोग अपनी रोजी-रोटी की तलाश करेंगे या दस्तावेज लाने के लिए दफ्तर से दफ्तर, दर-दर भटकेंगे?"
उन्होंने आगे कहा कि SIR के समय पर सवाल उठाना वाजिब है क्योंकि जब चुनाव नजदीक होता है, तो बहुत कुछ दांव पर होता है. उन्होंने कहा कि इससे कॉल्पनिक मुद्दों को बढ़ावा मिलता है.
एसवाई कुरैशी ने 'नागरिकता साबित' और 'डबल वोटर' जैसे मुद्दों पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि उनके समय में चुनाव आयोग ने एक फॉर्म दिया था, जिसमें मतदाता लिस्ट में नाम जुड़वाते समय नई एप्लिकेशन में पुराने निर्वाचन क्षेत्र का नाम लिख देता था. फिर चुनाव आयोग खुद पुरानी वोटर लिस्ट में से उसका नाम हटा देता था, और नई जगह रहने देता था.
डबल वोटर मामले में ओपी रावत ने कहा कि मतदाताओं को दंडित ना किया जाए. उन्होंने कहा कि नोटिस देकर उनसे केवल यह पूछा जाए कि वे कौन से निर्वाचन क्षेत्र में अपना नाम रहने देना चाहते हैं. लवासा ने चुनाव आयोग के 24 जून के ऑर्डर में 'नागरिकता' पर चिंता जताते हुए कहा कि 75 सालों से चुनाव आयोग आर्टिकल 326 को ध्यान में रखते हुए वोटर लिस्ट तैयार करता रहा है.
उन्होंने बताया कि आर्टिकल 326 कहता है कि केवल भारत का नागरिक ही वोट डाल सकता है. लवासा ने पूछा, “क्या नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का काम है? यह विवादास्पद है.” उन्होंने कहा कि ऐसे में तो अगर एक क्लर्क फॉर्म पर साइन ना करे तो 1951 से वोटर लिस्ट में दर्ज मतदाता भी वोटर लिस्ट से बाहर हो सकता है.
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