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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खतरनाक हैं, फिर भी इन्हें खाने की लत क्यों लग जाती है?

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पोषण नहीं देते. ये केवल टेस्ट में अच्छे होते हैं और लंबे वक़्त तक ख़राब नहीं होते. इन्हें खाना खाने के बाद भी मन करता है कुछ चटर-पटर हो जाए. थोड़ा-सा पास्ता या पिज़्ज़ा मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए.

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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाने का मन बार-बार करता है (फोटो: Freepik)

चिप्स. पिज़्ज़ा. बर्गर. कोल्ड ड्रिंक. पास्ता. नगेट्स. नाम सुनते ही मुंह में पानी आ गया न! ये सब चीज़ें इतनी टेस्टी हैं कि इन्हें थोड़ा-सा खाकर मन और पेट, दोनों ही नहीं भरते. कौन भला सिर्फ़ एक चिप्स खाकर रुक जाता है. पूरा पैकेट चट हो जाता है और पता भी नहीं चलता.

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खाना खाने के बाद भी मन करता है कुछ चटर-पटर हो जाए. थोड़ा-सा पास्ता या पिज़्ज़ा मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए.

आपको क्या लगता है, क्यों होता है ऐसा? आपका जंक फ़ूड खाने का इतना मन क्यों करता है? इन चीज़ों की लत लगना इतना आसान क्यों है? पालक, मेथी, मटर, गोभी…जो चीज़ें फ़ायदा पहुंचाती हैं, उनकी तो ऐसे लत नहीं लगती.

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ये एवईं नहीं हो रहा! इसके पीछे एक राज़ है, और आज इसी राज़ से उठेगा पर्दा. ये सभी चीज़ें, जो आपको खाना इतना पसंद हैं, उन्हें कहते हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स. हम डॉक्टर से समझेंगे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स क्या होते हैं. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की लत क्यों लग जाती है. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने के क्या नुकसान हैं. और, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की लत कैसे छुड़ाएं.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स क्या होते हैं?

ये हमें बताया डॉ. ऋषभ शर्मा ने. 

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डॉ. ऋषभ शर्मा, कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल, जयपुर

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की वो चीज़ें हैं, जो रसोई में नहीं, फैक्ट्री में बनती हैं. WHO के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स में नेचुरल फ़ूड इंग्रीडिएंट बहुत कम होते हैं. रिफाइंड इंग्रीडिएंट, आर्टिफिशियल फ्लेवर, कलर, प्रिजर्वेटिव और इमल्सीफायर ज़्यादा होते हैं.

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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पोषण नहीं देते. ये केवल टेस्ट में अच्छे होते हैं और लंबे वक़्त तक ख़राब नहीं होते. अच्छे टेस्ट की वजह से इन्हें खाने की लत लग जाती है. जैसे पैकेट वाले चिप्स और नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स, पास्ता, कोल्ड ड्रिंक, पैक्ड फ्रूट जूस, बिस्किट, केक, बेकरी आइटम्स, फ्रोज़ेन पिज़्ज़ा, बर्गर, नगेट्स और फ्लेवर्ड योगर्ट. 

कई स्टडीज़ के मुताबिक, खाने की ये चीज़ें पेट नहीं भरतीं, बल्कि बार-बार खाने की तलब पैदा करती हैं. अगर किसी फ़ूड आइटम के लेबल पर 5-10 ऐसी चीज़ें लिखी हैं, जो आपके किचन में इस्तेमाल नहीं होतीं, तो खाने की वो चीज़ अल्ट्रा-प्रोसेस्ड है.

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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड दिमाग को टारगेट करते हैं, इसलिए इनकी लत लग जाती है (फोटो: Freepik)

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की लत क्यों लग जाती है?

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स भूख को नहीं, ब्रेन को टारगेट करते हैं. इसलिए इनकी लग लगती है. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स में रिफाइंड शुगर, एक्स्ट्रा नमक और अनहेल्दी फैट्स होते हैं. जब आप ये चीज़ें खाते हैं तो आपके दिमाग में डोपामीन रिलीज़ होता है. डोपामीन एक न्यूरोट्रांसमीटर और हॉर्मोन है, जो आपको 'अच्छा' महसूस करवाता है. स्मोकिंग, शराब और ड्रग्स की लत भी इसकी वजह से लगती है. लेकिन ये एहसास कुछ ही समय तक रहता है. 

जैसे ही शरीर में डोपामीन की कमी होने लगती है, ब्रेन सिग्नल देता है कि ‘मुझे और चाहिए’. साथ ही, इन चीज़ों में प्रोटीन और फाइबर कम मात्रा में होता है. इसलिए इन्हें खाने के बाद भी पेट पूरा भरा हुआ महसूस नहीं होता. कई स्टडीज़ ये मानती हैं कि ये पैटर्न एडिक्शन यानी लत जैसा होता है. ये विल पॉवर की कमज़ोरी का सिग्नल नहीं है. अगर किसी खाने को रोकना मुश्किल लगे तो समझ जाइए ये भूख नहीं है. बल्कि ये डोपामाइन की वजह से हो रही क्रेविंग है.

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अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड खाने से एसिडिटी, गैस, ब्लोटिंग हो सकती है (फोटो: Freepik)

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने के नुकसान

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के लगातार सेवन से एसिडिटी, गैस, ब्लोटिंग, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम और पेट में सूजन बढ़ती है. वेट गेन, इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज़ भी हो सकती है. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स से फैटी लिवर होता है. इससे कोलेस्ट्रॉल का बैलेंस बिगड़ता है और दिल की बीमारियों का भी ख़तरा रहता है. कई स्टडीज़ से पता चलता है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स से पेट के माइक्रोबायोम को नुकसान पहुंचता है.

नतीजा? हाज़मे से जुड़ी दिक्कतें. ये नुकसान धीरे-धीरे होता है, लेकिन बिना चेतावनी. इसलिए आपको पता भी नहीं चलता.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की लत कैसे छुड़ाएं?

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत छोड़ी जा सकती है. पहला रूल है, इसे झटके से बंद न करें. धीरे-धीरे मात्रा और फ्रीक्वेंसी कम करिए. हर जंक फ़ूड का रिप्लेसमेंट अपने पास रखिए. चिप्स की जगह रोस्टेड चना या मखाना खाइए. कोल्ड ड्रिंक की जगह नींबू-पानी या छाछ पीजिए. बिस्किट की जगह फल और नट्स खाइए.

हर मील में प्रोटीन और फाइबर की मात्रा बढ़ाइए. घर में जंक फ़ूड एकदम न रखें. स्टडीज़ बताती हैं कि 7-10 दिनों में हमारे टेस्ट बड्स रिसेट हो जाते हैं और क्रेविंग्स अपने आप कम हो जाती हैं. पहले 10 दिन डिसिप्लिन रखें. उसके बाद शरीर खुद साथ देने लगेगा.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स ज़हर नहीं हैं, पर अगर ये रोज़ की आदत बन जाएं तो ज़हर जैसा असर दिखाने लगते हैं. आपका पेट और लिवर नेचुरल फ़ूड के लिए बने हैं. ये फैक्ट्री फ़ूड के लिए नहीं बने हैं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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