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दिल की धड़कन अक्सर बहुत धीमी चलती है? डॉक्टर से जानिए ऐसा क्यों हो रहा है?

जब दिल की धड़कन बहुत धीमी हो जाए, तो इसे ब्रैडीकार्डिया कहते हैं. अगर एक एडल्ट में हार्ट रेट 60 बीट्स प्रति मिनट से कम हो, तो इसे ब्रैडीकार्डिया माना जाता है.

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दिल की धड़कन धीमी होने के साथ सिर भी घूमता है? (फोटो: Freepik)

आप कुर्सी पर आराम से बैठे थे. अचानक आपका सिर चकराने लगा. सांस लेने में तकलीफ होने लगी. सीने में दर्द शुरू हो गया. आप परेशान. तुरंत पानी लेने के लिए उठे कि शायद पानी पीकर कुछ आराम मिले. लेकिन जैसे ही खड़े हुए. आपको चक्कर आ गया. बेहोशी छाने लगी. घबराकर सीने पर हाथ रखा. तो महसूस हुआ कि धड़कनें बहुत धीमे चल रही हैं. नॉर्मल से बहुत ज़्यादा धीमे.

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याद आया कि ऐसा तो अक्सर होता है. लेकिन इस बार आपने इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया. तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचे. वहां कुछ टेस्ट हुए तो पता चला कि आपको ‘ब्रैडीकार्डिया’ है. ब्रैडीकार्डिया यानी दिल की धड़कन का बहुत ज़्यादा धीमा हो जाना. ‘ब्रैडीकार्डिया’ शब्द भले बहुत आम न हो. पर ये दिक्कत बड़ी आम है.

इसलिए आज ब्रैडीकार्डिया पर बात करेंगे. डॉक्टर से जानेंगे कि ब्रैडीकार्डिया क्या होता है. हार्ट रेट कितनी होने पर इसे ब्रैडीकार्डिया कहते हैं. इसके कारण क्या हैं. लक्षण क्या हैं. कौन-से ज़रूरी टेस्ट आपको कराने चाहिए. और, ब्रैडीकार्डिया से बचाव व इलाज कैसे किया जाए. 

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ब्रैडीकार्डिया क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर वीरभान बलई ने. 

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डॉ. वीरभान बलई, कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली

जब दिल की धड़कन बहुत धीमी हो जाए, तो इसे ब्रैडीकार्डिया कहते हैं. अगर एक एडल्ट में हार्ट रेट 60 बीट्स प्रति मिनट से कम हो, तो इसे ब्रैडीकार्डिया माना जाता है. हालांकि जो लोग इंटेंस वर्कआउट करते हैं या एथलीट होते हैं. उनमें हार्ट रेट 40–50 बीट्स प्रति मिनट भी नॉर्मल माना जाता है.

ब्रैडीकार्डिया के कारण क्या है?  

ब्रैडीकार्डिया कई वजहों से हो सकता है. इंटेंस वर्कआउट करने वाले एथलीट्स में आमतौर पर हार्ट रेट कम होता है. कई बार बीपी या दिल के मरीज़ों को दी जाने वाली दवाइयों से भी हार्ट रेट धीमा हो जाता है. जैसे मेटोप्रोलोल, कार्वेडिलोल, ऐमियोडैरोन, डिजॉक्सिन और इवाब्राडिन. कुछ मेडिकल कंडीशन्स में भी ब्रैडीकार्डिया होता है, जैसे हाइपोथायरॉयडिज्म. इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन होने, खासकर खून में पोटैशियम बढ़ने पर भी ऐसा हो सकता है. शरीर का तापमान बहुत कम होने पर भी ब्रैडीकार्डिया हो सकता है. दिल से जुड़ी बीमारियों जैसे साइनस नोड डिसफंक्शन, एवी ब्लॉक या पूरी तरह हार्ट ब्लॉक होने पर भी ऐसा हो सकता है. हार्ट ब्लॉक जन्मजात हो सकता है और बाद में भी. हार्ट अटैक के बाद भी कई बार हार्ट रेट असामान्य रूप से स्लो हो जाता है.

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ब्रैडीकार्डिया के लक्षण क्या हैं?

- कई बार ब्रैडीकार्डिया का कोई लक्षण महसूस नहीं होता

- कभी-कभी कुछ लक्षण दिख सकते हैं

- जैसे चक्कर आना या सिर घूमना

- बेहोश या अचानक ब्लैकआउट हो जाना

- दिल की धड़कन अनियमित महसूस होना, जिसे पैल्पिटेशन कहते हैं

- अगर पहले से दिल की कोई बीमारी है, तो हार्ट रेट कम होने से सीने में दर्द हो सकता है

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ब्रैडीकार्डिया जांचने के लिए सबसे कॉमन टेस्ट ECG है (फोटो: Freepik)

ब्रैडीकार्डिया से जुड़े टेस्ट

ब्रैडीकार्डिया जांचने के लिए सबसे कॉमन टेस्ट ECG (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) होता है. ईकोकार्डियोग्राम (Echo) भी किया जा सकता है. इसमें दिल की बनावट और वाल्व वगैरह को चेक जाता है, ताकि पता चल सके कि कहीं कोई दिक्कत तो नहीं. होल्टर मॉनिटरिंग से दिल की धड़कन को 24 से 48 घंटों के लिए मॉनिटर किया जाता है. 

आजकल लूप रिकॉर्डर्स भी मौजूद हैं, जैसे इंप्लांटेबल लूप रिकॉर्डर. इसे तब लगाते हैं, जब हार्ट रेट कई महीनों तक रिकॉर्ड करनी हो. एक्सटर्नल लूप रिकॉर्डर्स भी आते हैं. इसमें हफ्ते-दो हफ्ते के लिए दिल की धड़कन रिकॉर्ड की जाती है. अगर थायरॉइड का रिस्क हो, तो थायरॉइड प्रोफाइल टेस्ट किया जाता है. इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन चेक करने के लिए सीरम पोटैशियम जैसे टेस्ट किए जाते हैं. अगर हार्ट अटैक का शक हो, तो ज़रूरत पड़ने पर एंजियोग्राफी की जा सकती है.

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अगर मरीज़ बहुत धीमे हार्ट रेट और दूसरे लक्षणों के साथ इमरजेंसी में आता है, तो एट्रोपिन इंजेक्शन दिया जाता है (फोटो:Freepik)

ब्रैडीकार्डिया से बचाव और इलाज

इंटेंस एक्टिविटी करने वाले एथलीट्स, जिनका हार्ट रेट 40 से 50 बीट्स प्रति मिनट है. अगर उनमें कोई दूसरा लक्षण नहीं है, तो ऐसे लोगों को आमतौर पर किसी इलाज की ज़रूरत नहीं होती. अगर किसी दवा की वजह से हार्ट रेट धीमा हो रहा है, तो डॉक्टर की सलाह पर वो दवाई बंद कर सकते हैं. उस दवा की डोज़ भी घटाई जा सकती है. 

अगर मरीज़ बहुत धीमे हार्ट रेट और दूसरे लक्षणों के साथ इमरजेंसी में आता है, तो एट्रोपिन इंजेक्शन दिया जाता है. ज़रूरत पड़ने पर ट्रांसक्यूटेनियस पेसिंग की जाती है. इसमें छाती पर पैड लगाकर दिल को अस्थायी इलेक्ट्रिक सिग्नल दिए जाते हैं. 

आजकल इमरजेंसी में टेम्पररी पेसिंग भी तुरंत की जा सकती है. कई बार ऐसे मरीज़ों में आगे चलकर हमेशा के लिए पेसमेकर लगाना पड़ता है. पेसमेकर लगाने के बाद ज़्यादातर मरीज़ों की ज़िंदगी बेहतर हो जाती है.

अगर आपकी हार्टबीट अक्सर इर्रेगुलर रहती है. कभी बहुत धीमी, तो अचानक कभी तेज़ हो जाती है. तो इसे इग्नोर न करें. ये दिल से जुड़ी किसी दिक्कत का इशारा हो सकता है. आप तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और ज़रूरी इलाज कराएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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