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सर्दी में घबराहट, उदासी रहती है, ना सोया जाता है ना खाया जाता है तो जान लें क्या है 'SAD'

ऐसा देखा गया है कि सर्दियों में डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं. इसी तरह, गर्मियों में मेनिया के मामलों में बढ़ोत्तरी होती है. जिन्हें सर्दियों में डिप्रेशन और गर्मियों में मेनिया होता है, उन्हें सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर हो सकता है.

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सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर का असर सर्दियों में ज़्यादा होता है

मौसम बदलते ही मूड भी बदल गया? क्या सर्दियां आते ही आपको घबराहट होने लगती है? आप उदास रहने लगते हैं? हमेशा थकान रहती है? न ठीक से सो पाते हैं, न ठीक से खा पाते हैं? अगर जवाब है ‘हां', और, हर बार सर्दियों आते ही आपको ये लक्षण महसूस होने लगते हैं. तो हो सकता है, आपको ‘सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर’ हो.

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वैसे तो ‘सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर’ (SAD) किसी भी मौसम में हो सकता है. मगर सर्दियों में ये ज़्यादा आम है. आखिर मौसम का हमारे मूड से क्या कनेक्शन है, ये जानेंगे डॉक्टर साहब से. समझेंगे कि सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर क्या है. ये क्यों होता है. इसके लक्षण क्या हैं. और, इससे बचाव और इलाज का तरीका क्या है. 

SAD क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर राजीव मेहता ने. 

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डॉ. राजीव मेहता, वाइस-चेयरपर्सन, साइकेट्री, सर गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली

जब मौसम बदलता है, तब हमारे मूड में कुछ बदलाव हो सकता है. इसे सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) कहते हैं. यहां अफेक्टिव का मतलब है मूड से जुड़े बदलाव. ऐसा देखा गया है कि सर्दियों में डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं. इसी तरह, गर्मियों में मेनिया (Mania) के मामलों में बढ़ोत्तरी होती है. जिन्हें केवल सर्दियों में डिप्रेशन होता है और गर्मियों में मेनिया होता है, उन्हें SAD होता है.

सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण

SAD के लक्षण वही होते हैं, जो आमतौर पर डिप्रेशन, एंग्जायटी और मेनिया में देखने को मिलते हैं.

- मन उदास रहना.

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- हर समय परेशान रहना.

- चिड़चिड़ापन महसूस करना.

- किसी भी काम में मन नहीं लगना या पहले से कम लगना.

- नींद कम आना.

- भूख कम लगना.

- सेक्स की इच्छा में कमी.

- फोकस करने में परेशानी.

- बातें भूल जाना.

- खुद को कमज़ोर या हीन समझना.

- बेवजह रोना.

- अपराधबोध होना.

- भविष्य अंधकार में लगना.

- निराशाजनक विचार आना.

- खुद को नुकसान पहुंचाने की इच्छा होना.

- हर समय चिंता में रहना.

वहीं मेनिया के लक्षण इससे बिल्कुल उलट होते हैं.

- जैसे बहुत ज़्यादा बातें करना.

- बड़ी-बड़ी बातें करना.

- ज़्यादा रुपये खर्च करना.

- सेक्स करने की इच्छा बढ़ जाना.

- खुद को दूसरों से बेहतर समझना.

- ज़्यादा गाने सुनना.

- दूसरों को उपदेश देना.

- खुद को सबसे बड़ा और ताकतवर समझना.

ये गर्मियों में होने वाला SAD है.

कहने का मतलब है कि ये डिसऑर्डर दो तरह का होता है. एक सर्दियों में और दूसरा गर्मियों में. 

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सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर का कारण रोशनी में बदलाव होना है (फोटो: Getty Images)

SAD का कारण

SAD का कारण रोशनी में बदलाव होना है. अक्सर देखा गया है कि सूरज की रोशनी का हमारे मूड पर गहरा असर पड़ता है. जैसे-जैसे सर्दियां आती हैं, सूरज की रोशनी की तीव्रता (इंटेसिटी) कम होती जाती है. लोग घरों के अंदर रहते हैं, पर्दे बंद कर लेते हैं. सूरज की रोशनी की कमी और अंधेरा बढ़ने से उदासी का भाव बढ़ता है. इसी तरह, जब गर्मियों में सूरज की रोशनी बहुत ज़्यादा होती है, तब मेनिया हो सकता है.

सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर से बचाव और इलाज

सर्दियों वाले SADसे कुछ हद तक बचाव किया जा सकता है. इसके लिए धूप में बैठें. जब धूप न हो, तो घर के अंदर पूरी लाइट जलाकर रखें. जितनी ज़्यादा रोशनी मिलेगी, उतना SAD कम होने का चांस है. अगर डिसऑर्डर हो चुका है, तो इसका इलाज एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां हैं. डॉक्टर की सलाह पर एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां लेनी चाहिए. 

अगर ऐसा लगता है कि हर सीज़न में आपको SAD होता है. तब शुरुआत से ही एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां लेना शुरू कर दें, इससे लक्षण कम होने का चांस बढ़ जाता है. साथ ही, अच्छा खाना खाएं. पर्याप्त नींद लें. रात में बहुत देर तक फोन न चलाएं. योग और एक्सरसाइज़ जारी रखें. ये उपाय SAD से बचाव में मदद कर सकते हैं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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