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Saina Nehwal की तरह युवाओं में क्यों बढ़ रहे हैं अर्थराइटिस के मामले, बचाव और इलाज क्या हैं?

अर्थराइटिस में सबसे ज़्यादा असर घुटनों और कूल्हों की हड्डियों पर पड़ता है. अब तक इसे उम्रदराज़ लोगों की बीमारी माना जाता था. लेकिन, अब युवाओं में भी इसके मामले खूब देखे जा रहे हैं.

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अर्थराइटिस में शरीर के अलग-अलग जोड़ों में सूजन आ जाती है और बहुत दर्द होता है

Badminton Star Saina Nehwal अर्थराइटिस से जूझ रही हैं. कुछ समय पहले, एक पॉडकास्ट में उन्होंने ये जानकारी दी. अर्थराइटिस (Arthritis) यानी गठिया. इसमें शरीर के अलग-अलग जोड़ों में सूजन आ जाती है. अकड़न होती है. बहुत दर्द होता है. सबसे ज़्यादा असर घुटनों और कूल्हों की हड्डियों पर पड़ता है. अब तक अर्थराइटिस को उम्रदराज़ लोगों की बीमारी माना जाता था. लेकिन, अब युवाओं में भी इसके मामले खूब देखे जा रहे हैं.

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ऐसे में आज डॉक्टर से समझिए कि अर्थराइटिस क्यों होता है. आजकल युवाओं में अर्थराइटिस की समस्या क्यों हो रही है. और, अर्थराइटिस से बचाव और इलाज कैसे किया जाए. 

अर्थराइटिस क्यों होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर स्वप्निल केनी ने. 

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डॉ. स्वप्निल केनी, कंसल्टेंट, ऑर्थोपेडिक्स, फोर्टिस हॉस्पिटल, कल्याण

अर्थराइटिस यानी गठिया होने के कई कारण हैं. सबसे आम तरह का अर्थराइटिस है ऑस्टियोअर्थराइटिस (Osteoarthritis). ये बढ़ती उम्र की बीमारी है, जो घुटनों या जोड़ों में टूट-फूट के कारण होती है. मोटापे से ग्रसित लोगों में ये ज़्यादा देखी जाती है. वहीं, ऑस्टियोअर्थराइटिस की फैमिली हिस्ट्री वालों में भी ये देखी जाती है. 

रूमेटाइड अर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) भी बहुत ही आम गठिया है. ये तब होता है जब शरीर की इम्यूनिटी, शरीर की ही दुश्मन बन जाती है. इससे जोड़ों को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा, गाउटी अर्थराइटिस (Gouty arthritis) भी कई लोगों को होता है. ये एक खास तरह का अर्थराइटिस है, जिसमें जोड़ों के अंदर यूरिक एसिड (uric acid) के क्रिस्टल यानी टुकड़े जमा हो जाते हैं. 

एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing spondylitis) भी एक प्रकार का गठिया है. ये कम उम्र में होने वाला अर्थराइटिस है, जो पीठ के निचले हिस्सों को तकलीफ देता है. वहीं जिन लोगों को ‘सोरायसिस’ (psoriasis) नाम की स्किन की बीमारी है. उन्हें भी अर्थराइटिस हो सकता है, इसे सोरियाटिक अर्थराइटिस (Psoriatic arthritis) कहते हैं. 

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कम उम्र में होने वाला एक और अर्थराइटिस है, जिसे जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस (Juvenile idiopathic arthritis) कहते हैं. ये 16 से 18 साल में होता है. कुछ स्थितियों में अर्थराइटिस होने का कोई पुख्ता कारण नहीं होता, इसे इडियोपैथिक अर्थराइटिस कहा जाता है. 

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अब कम उम्र में भी गठिया की दिक्कत देखी जा रही है

आजकल युवाओं में अर्थराइटिस की समस्या क्यों हो रही है?

अर्थराइटिस या गठिया की तकलीफ कम उम्र में भी देखी जा सकती है. इसकी कई वजहें हैं. पहली वजह है पोस्ट-ट्रॉमेटिक अर्थराइटिस (post traumatic arthritis). ये घुटने के अंदर मौजूद कार्टिलेज को चोट लगने के कारण होता है. रूमेटाइड अर्थराइटिस भी कम उम्र में देखा जाता है. खासकर 30 से 40 साल की उम्र में. ये महिलाओं में ज़्यादा आम है. रूमेटाइड अर्थराइटिस तब होता है, जब शरीर की इम्यूनिटी अपने ही जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है. सोरियाटिक अर्थराइटिस सोरायसिस के मरीज़ों में देखा जाता है. ये भी कम उम्र में होता है.

अर्थराइटिस से बचाव और इलाज

अर्थराइटिस या गठिया का इलाज कुछ चीज़ों पर निर्भर करता है. जैसे आपको कौन-सा गठिया हुआ है, कौन-सा जोड़ प्रभावित है और लक्षण क्या हैं. अर्थराइटिस के इलाज के लिए सबसे पहले आपको दवाइयां दी जाती हैं. जैसे पेनकिलर्स. ये जोड़ों के दर्द को कम कर सकती हैं. जोड़ों की सूजन कम करने के लिए भी कुछ दवाइयां दी जाती हैं.

रूमेटाइड अर्थराइटिस या दूसरे खास तरह के अर्थराइटिस में डिज़ीज़-मॉडिफाइंग एंटी-रूमेटिक ड्रग्स यानी DMARDs जैसा स्पेशल इलाज दिया जाता है. जो आपकी इम्यूनिटी के काम करने का तरीका बदलकर, घुटने या जोड़ों में होने वाले दर्द को कम करता है. इसके साथ ही, फिज़ियोथेरेपी लेना बहुत ज़रूरी है ताकि आपके जोड़ों का मूवमेंट सही रहे. अगर जोड़ पूरी तरह खराब हो जाए या काम न करे, तब जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की जाती है. ये अर्थराइटिस के आखिरी स्टेज में होती है.

अर्थराइटिस को रोकने के लिए कुछ टिप्स बहुत ज़रूरी हैं. जैसे खाना पौष्टिक होना चाहिए. वज़न कंट्रोल में रहना चाहिए. आपको एक्सरसाइज़ करनी चाहिए. एक्सरसाइज़ और हेल्दी वज़न मेंटेन करना बहुत ज़रूरी है. साथ ही, ज़रूरी है अच्छी डाइट. अर्थराइटिस के मरीज़ों को अपने खाने में अदरक, अखरोट, बेरीज़, अंगूर, ब्रॉकली, पालक और फैटी फिश शामिल करनी चाहिए.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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