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ओरल सेक्स से हो सकता है गले का कैंसर, बचने के तरीके ये रहे

Oral Sex Throat Cancer: एक स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों के 6 या उससे ज़्यादा ओरल सेक्स पार्टनर्स होते हैं, उन्हें गले में कैंसर होने का खतरा 8.5 गुना अधिक होता है.

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ओरल सेक्स से ऑरोफैरिंजियल कैंसर हो सकता है

आज का सेहत शुरू करने से पहले एक सवाल. ऑरोफैरिंजियल कैंसर के बारे में कितना जानते हैं आप? क्या आपने कभी इसका नाम सुना है?

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ये कैंसर गले में होता है. गले के उस हिस्से में, जो मुंह से जुड़ा होता है. इस हिस्से को ऑरोफैरिंक्स कहते हैं. इसमें जीभ का पिछला भाग, तालु, टॉन्सिल्स और गले का पिछला हिस्सा आते हैं. ऑरोफैरिंजियल कैंसर का रिस्क पुरुषों को ज़्यादा होता है.

एक खास बात. ओरल सेक्स से इस कैंसर का चांस बढ़ जाता है. The New England Journal Of Medicine में छपी स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों के 6 या उससे ज़्यादा ओरल सेक्स पार्टनर्स होते हैं, उन्हें ऑरोफैरिंजियल कैंसर होने का खतरा 8.5 गुना अधिक रहता है. वहीं वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एजेंसी International Agency For Research On Cancer के मुताबिक, साल 2022 में, भारत में ऑरोफैरिंजियल कैंसर के 23 हज़ार से ज़्यादा नए मामले सामने आए थे. वहीं इससे 14 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी.

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ओरल सेक्स और ऑरोफैरिंजियल कैंसर के बीच क्या कनेक्शन है, ये डॉक्टर से जानेंगे. समझेंगे कि क्या ओरल सेक्स से कैंसर हो सकता है? अगर हां, तो ओरल सेक्स से किस तरह के कैंसर का रिस्क है. इसके पीछे क्या कारण है. और, ऐसे कैंसर को रोकने के लिए क्या करें. 

क्या ओरल सेक्स से कैंसर हो सकता है?

ये हमें बताया डॉक्टर दीपक खन्ना ने.

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डॉ. दीपक खन्ना, हेड एंड नेक सर्जन. मेडिकवर हॉस्पिटल्स, महाराष्ट्र

ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) पुरुषों और महिलाओं के रिप्रोडक्टिव सिस्टम (प्रजनन तंत्र) में पाया जाने वाला एक सामान्य वायरस है. आमतौर पर ये वायरस हानिकारक नहीं होता है. लेकिन, इसके कुछ खास टाइप, जैसे HPV-16 और HPV-18 खतरनाक माने जाते हैं. HPV के लगभग 200 प्रकार होते हैं. इनमें से HPV-16 और HPV-18 कैंसर के रिस्क से जुड़े होते हैं. 

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अगर कोई व्यक्ति एक से ज़्यादा पार्टनर्स के साथ संबंध बनाता है, तो उनमें ह्यूमन पैपिलोमा वायरस फैल सकता है. ये डीप किंसिंग और ओरल सेक्स के ज़रिए भी फैल सकता है. हालांकि, ज़रूरी नहीं कि हर बार ऐसा हो. जब किसी व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर होती है और उसके शरीर में HPV मौजूद होता है. तब ये वायरस उनके नॉर्मल सेल्स के DNA में बदलाव कर सकता है. इस बदलाव के कारण कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है.

ओरल सेक्स से किस तरह के कैंसर का रिस्क है?

इससे होने वाले कैंसर को ऑरोफैरिंजल कैंसर कहा जाता है. ये कैंसर तालु, जीभ के निचले हिस्से, गले के पीछे वाले भाग और ऑरोफरीनक्स (ये बोलने, निगलने में मदद करता है) में हो सकता है.

इसके पीछे क्या कारण है?

जब HPV वायरस शरीर में प्रवेश करता है, तो ये नॉर्मल सेल्स के DNA को बदल देता है. DNA में ये बदलाव नॉर्मल सेल्स को कैंसर सेल्स में बदल सकता है. DNA बदलने के बाद, सेल्स का विकास और विभाजन अनियंत्रित हो जाता है. हमारे शरीर में p53 ट्यूमर सप्रेसिव जीन होता है. ये कैंसर बनाने वाले HPV-16 और HPV-18 को रोक देता है. दरअसल, ह्यूमन पैपिलोमा वायरस E6 और E7 प्रोटीन रिलीज़ करता है. जिससे ये ट्यूमर सप्रेसिव जीन कमज़ोर हो जाता है. जीन के ठीक तरह काम न कर पाने के कारण, शरीर में कैंसर को रोकने वाला कोई नहीं बचता. 

आमतौर पर, ट्यूमर सप्रेसिव जीन सबके शरीर में होते हैं. जब हम तला-भुना खाना खाते हैं. या जब हम बहुत ज़्यादा प्रदूषण में रहते हैं. तब p53 जीन शरीर को कैंसर से बचाने में मदद करता है. लेकिन, जब HPV-16 और HPV-18 मुंह के ज़रिए शरीर में पहुंचते हैं. तब E6 और E7 प्रोटीन रिलीज़ होता है. जिससे ट्यूमर सप्रेसिव जीन p53 अपना काम सही से नहीं कर पाता और शरीर में कैंसर बनना शुरू हो जाता है.

ये कैंसर तुरंत नहीं बनता, बल्कि इसे विकसित होने में साल-डेढ़ साल लगता है. HPV इंफेक्शन होने के बाद शुरुआत में कोई लक्षण नज़र नहीं आते. जब कैंसर विकसित होने लगता है, तो कुछ लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे खाना निगलने में तकलीफ होना. गले में दर्द होना. मरीज़ को लगता है कि वो साधारण दवाओं से ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं होता.

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सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान कॉन्डम का इस्तेमाल करें
कैंसर को रोकने के लिए क्या करें?

सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान सावधानी बरतें. कॉन्डम का इस्तेमाल करें. ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) की वैक्सीन लगवाएं. बच्चों को 11-12 साल की उम्र तक ये वैक्सीन लगवा देनी चाहिए. अगर ये उम्र निकल गई है, तो 18-25 साल की उम्र तक इसे लिया जा सकता है, बशर्ते पहले से HPV इंफेक्शन न हुआ हो. 30-32 साल तक भी ये वैक्सीन प्रभावी हो सकती है. HPV की वैक्सीन आसानी से उपलब्ध है और सभी को लगवानी चाहिए. इलाज के लिए कभी भी घरेलू दवाइयों पर निर्भर न रहें. अगर कुछ खास लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. जैसे खाना निगलने में तकलीफ होना. मुंह या तालु में आने वाला छाला, जो ठीक नहीं हो रहा.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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