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दवाइयां नहीं करेंगी असर, 4 करोड़ मौतों की आशंका! जानिए सुपरबग्स क्या हैं और ये कैसे फैलाएंगे आतंक?

बैक्टीरिया, वायरस, फंगाई और पैरासाइट्स. ये सारे माइक्रोऑर्गेनिज़्म कहलाते हैं. जब ये माइक्रोऑर्गेनिज़्म दवाओं के खिलाफ खुद की इम्यूनिटी पैदा कर लेते हैं. तो ये सुपरबग्स कहलाते हैं.

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सुपरबग्स से बचना है तो बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयां न खाएं

सुपर. हमारे यहां जिस भी चीज़ के साथ ये शब्द जुड़ जाए. वो अपने आप हिट हो जाती है. फिर चाहें वो फ़िल्म हो या खाना. लेकिन, हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती. जैसे सुपरबग्स (Superbugs).

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सुपरबग्स सुनने में किसी साइंस फिक्शन पिक्चर का हिस्सा लगते हैं, पर ये हैं मौत के सौदागर. The Lancet नाम के जर्नल में एक रिसर्च छपी है. इसके मुताबिक, साल 2050 तक इन सुपरबग्स से करीब 4 करोड़ जानें जा सकती हैं.

लेकिन, क्या हैं ये सुपरबग्स? ये समझाने के लिए आपको एक छोटी-सी साइंस क्लास दे देते हैं.

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हर सुपरबग माइक्रोऑर्गेनिज़्म है लेकिन हर माइक्रोऑर्गेनिज़्म सुपरबग नहीं है

देखिए, बैक्टीरिया, वायरस, फंगाई और पैरासाइट्स. ये सारे माइक्रोऑर्गेनिज़्म (Microorganism) कहलाते हैं. जब ये माइक्रोऑर्गेनिज़्म दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं. यानी, दवा के खिलाफ खुद की इम्यूनिटी पैदा कर लेते हैं. तो ये सुपरबग्स कहलाते हैं.

इसे एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस यानी AMR भी कहा जाता है. ऐसा होने पर, जब हम किसी बैक्टीरिया या वायरस को मारने वाली दवा खाते हैं. तो वो असर ही नहीं करती. इससे इंफेक्शन या बीमारी ठीक होने के बजाय बिगड़ जाती है. The Lancet की स्टडी से कुछ और डराने वाली बातें पता चलीं हैं. जैसे 25 साल से ऊपर के लोगों में एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस की वजह से मौतों की संख्या बढ़ी हैं. जो 70 साल से ज़्यादा के उम्र के बुज़ुर्ग हैं, उनमें एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस के कारण होने वाली मौतें में 80% से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है.

ये आंकड़ा बहुत बड़ा और डराने वाला है. लेकिन, ऐसा हो क्यों रहा है? क्यों इंफेक्शंस पर दवाइयां असर नहीं करेंगी? ये डॉक्टर से जानेंगे. समझेंगे कि सुपरबग्स क्या हैं. ये इंसानों के लिए इतने खतरनाक क्यों हैं. और, इनसे बचाव और इलाज कैसे किया जाए. 

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सुपरबग्स क्या होते हैं?

ये हमें बताया डॉक्टर पूजा वाधवा ने. 

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डॉ. पूजा वाधवा, क्लीनिकल डायरेक्टर, क्रिटिकल केयर एंड इमरजेंसी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम

सुपरबग्स ऐसे बैक्टीरिया हैं, जिन्हें ग्राम-पॉज़िटिव या ग्राम-निगेटिव बैक्टीरिया कहा जाता है. पहले ये बैक्टीरिया सिर्फ अस्पतालों के ICU में पाए जाते थे. अब इन सुपरबग्स की संख्या इतनी बढ़ गई है कि ये आम लोगों में भी पाए जाते हैं. आपने सुना होगा कि किसी को इंफेक्शन हुआ और वो इंफेक्शन धीरे-धीरे बढ़ गया. इंफेक्शन इस हद तक बढ़ गया कि एंटीबायोटिक्स लेने और इलाज कराने का भी कोई फायदा नहीं हुआ. फिर मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, जहां या तो बहुत खर्चे के बाद वो ठीक हुआ या उसकी मौत हो गई. ऐसे मरीज़ ज़्यादातर सुपरबग्स से संक्रमित होते हैं.

सुपरबग्स इंसानों के लिए ख़तरनाक क्यों?

दरअसल, सुपरबग्स पर कोई भी एंटीबायोटिक काम नहीं करती. वजह? एंटीबायोटिक्स का गलत और बेतहाशा इस्तेमाल. आम लोग एंटीबायोटिक्स का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं. जैसे ही हल्का खांसी-जुकाम, बुखार, पेट दर्द हुआ, लोग तुरंत एंटीबायोटिक्स खाना शुरू कर देते हैं. अगर घर पर दवा नहीं है, तो लोग मेडिकल स्टोर से एंटीबायोटिक्स खरीदकर खा लेते हैं. मगर, कई बार वायरल इन्फेक्शन होते हैं, जिनमें एंटीबायोटिक काम नहीं करतीं. जब वायरल इंफेक्शन में एंटीबायोटिक्स खाई जाती हैं, तो शरीर में पहले से मौजूद अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं और बुरे बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिन्हें सुपरबग्स कहा जाता है. बच्चों, बुज़ुर्गों और कमज़ोर इम्यूनिटी वालों में इन इंफेक्शंस का खतरा ज़्यादा होता है.

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बेवजह दवा खाने से बचें

बचाव और इलाज

पहला, एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कम करें. एंटीबायोटिक्स तभी खाएं, जब डॉक्टर कहे. दवा उतनी ही डोज़ और दिनों तक लें, जितनी डॉक्टर ने बताई हो. अगर एंटीबायोटिक्स के साइड इफेक्ट्स दिखें या आप इन्हें सहन न कर पाएं, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. बिना डॉक्टर की सलाह के खुद से एंटीबायोटिक्स खरीदकर न खाएं. जितने दिनों का एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट दिया गया है, उसे पूरा ज़रूर करें. अगर आप कोर्स पूरा नहीं करेंगे, तो शरीर के अंदर सुपरबग्स बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. 

दूसरा, जानवरों को भी इंफेक्शन होने पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं. जब आप इनके दूध या मांस का सेवन करते हैं, तो ये एंटीबायोटिक्स आपके अंदर भी चले जाते हैं. लिहाज़ा, इनके सेवन और इस्तेमाल में सावधानी बरतें.

तीसरा, अपने आसपास और खुद की सफाई रखें. अगर आपको खांसी-जुकाम या कोई इंफेक्शन है तो घर पर आराम करें. बाहर निकलने से ये दूसरों में भी फैल सकता है. खांसते या छींकते समय रुमाल का इस्तेमाल करें. अपने हाथ साफ रखें. खाना खाने से पहले और शौच के बाद हाथ ज़रूर धोएं. आसपास कूड़ा या गंदा पानी इकट्ठा न होने दें. खाने का सामान ढककर रखें और सही तरीके से स्टोर करें. ऐसा करके खुद को इंफेक्शन से बचाया जा सकता है

चौथा, कुछ इंफेक्शंस से बचने के लिए वैक्सीन मौजूद है. बच्चों और बुजुर्गों को ये वैक्सीन ज़रूर लगवाएं. इससे न केवल इंफेक्शन, बल्कि गंभीर कॉम्प्लिकेशंस से भी बचा जा सकता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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