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अलग ब्लड ग्रुप की समस्या होगी खत्म, ये किडनी किसी भी मरीज में ट्रांसप्लांट होगी

साइंटिस्ट्स ने पहली बार एक ऐसी किडनी को ट्रांसप्लांट किया है, जिसमें ब्लड ग्रुप A को बदलकर ब्लड ग्रुप O कर दिया गया है.

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किडनी के मरीजों के लिए सबसे बड़ी खबर. (तस्वीर- Unsplash.com)

भारत में हर साल हज़ारों लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन, डोनर न मिलने की वजह से ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता. इसकी वजह से हज़ारों जानें चली जाती हैं. कई मामलों में ऐसा देखने को मिला है कि डोनर तैयार होता है, पर मरीज़ और डोनर का ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता. इसकी वजह से कई कॉम्प्लिकेशंस खड़े हो जाते हैं और सफ़ल ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता है.

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लेकिन अगर कुछ ऐसा हो जाए, जिससे ब्लड ग्रुप मैच करने की ज़रूरत ही न पड़े. यानी ब्लड ग्रुप कोई भी हो, लेकिन किडनी ट्रांसप्लांट फिर भी हो जाए. ऐसे मरीजों के लिए अच्छी ख़बर यह है कि साइंटिस्ट्स ने एक ऐसी किडनी बनाई है, जो किसी भी ब्लड ग्रुप के साथ मैच की जा सकती है.

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (UBC) के साइंटिस्ट्स ने पहली बार एक ऐसी किडनी को ट्रांसप्लांट किया है, जिसमें ब्लड ग्रुप A को बदलकर ब्लड ग्रुप O कर दिया गया है. इस ट्रांसप्लांट के बारे में  ‘Nature Biomedical Engineering’ नाम के मेडिकल साइंस जर्नल में बताया गया है.

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दरअसल, UBC के साइंटिस्ट्स, डॉ. स्टीफन विथर्स और डॉ. जया चंद्रन ने 2019 में दो खास एंजाइम की खोज की थी. आपको बता दें कि एंजाइम एक ख़ास प्रकार के प्रोटीन होते हैं. ये एंजाइम A ग्रुप की सतह पर मौजूद शुगर मॉलिक्यूल को हटा देते हैं. नीचे बचता है टाइप O, जो न्यूट्रल ब्लड ग्रुप होता है.

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डॉ. जया चंद्रन और डॉ. स्टीफन विथर्स.

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इस ब्लड ग्रुप का अंग किसी भी पेशेंट में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. इस टेक्नीक को पहली बार एक ब्रेन-डेड इंसान पर आजमाया गया. हालांकि, ऐसा करने से पहले उनकी फैमिली से परमिशन ली गई और उसके बाद ट्रायल किया गया.

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पहले दो दिन किडनी ने अच्छी तरह काम किया और कोई खतरनाक रिएक्शन नहीं हुआ. तीसरे दिन कुछ A ब्लड ग्रुप के मार्कर वापस आए, लेकिन बॉडी में बहुत हल्का रिएक्शन हुआ. साइंटिस्ट्स ने देखा कि शरीर इस नई किडनी को स्वीकार कर रहा था. और ये बहुत अच्छी बात है.

इस टेक्निक से बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है. O ब्लड ग्रुप वाले मरीजों को सिर्फ O ब्लड ग्रुप की किडनी ही मिल सकती है, जो बहुत कम होती है. इसलिए उन्हें ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है. अगर डोनर किडनियों को O ब्लड ग्रुप में बदला जा सके, तो ज़्यादा से ज़्यादा मरीज़ों का किडनी ट्रांसप्लांट आसानी से हो सकता है.

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ब्लड ग्रुप मैच न होने पर भी हो सकता है किडनी ट्रांसप्लांट.

यह प्रोजेक्ट यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, वेस्ट चाइना हॉस्पिटल और Avivo Biomedical नाम की कंपनी ने मिलकर किया है. अब यह कंपनी आगे और भी ट्रायल करेगी. इस एक्सपेरिमेंट में शामिल डॉ. विथर्स का कहना है कि उनका रिसर्च अब लोगों की जिंदगी बदल सकता है.

अगर आगे होने वाले ट्रायल भी सफ़ल रहते हैं, तो ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट मरीज़ों के लिए आसान बन सकता है. लाखों जानें बच सकती हैं. 

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