क्या आपने सैयारा फिल्म देखी? सोशल मीडिया पर हर-तरफ़ इसके चर्चे हैं. मूवी देखने के बाद रोते-बिलखते फैंस की रील्स भी खूब वायरल हो रही हैं. हम आपको पूरी कहानी नहीं बताएंगे. बस इतना बता देते हैं कि फिल्म की लीड एक्ट्रेस को पिक्चर में अल्जाइमर है. ये भूलने की बीमारी होती है.
इस हॉर्मोन से होगा अल्ज़ाइमर का इलाज? नए रिसर्च में किया जा रहा टेस्ट
ओज़ेम्पिक और मोंजारो टाइप-2 डायबिटीज़ की दवाएं हैं. इन्हें वज़न घटाने के लिए भी लिया जाता है. इनमें ऐसे तत्व होते हैं, जो GLP-1 हॉर्मोन से जुड़कर काम करते हैं. अब इसी GLP-1 हॉर्मोन को अल्ज़ाइमर के इलाज के लिए भी टेस्ट किया जा रहा है.
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अब आप सोच रहे होंगे कि हम सेहत में सैयारा की बात क्यों कर रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि इस बीमारी के इलाज से जुड़ी एक नई जानकारी ख़बरों में है. पर पहले ये बताइए कि क्या आपने ओज़ेम्पिक और मोंजारो का नाम सुना है? ये असल में टाइप-2 डायबिटीज़ की दवाएं हैं. पर इन्हें वज़न घटाने के लिए भी लिया जाता है. ये दवाएं असरदार हैं, क्योंकि इनमें ऐसे तत्व होते हैं, जो GLP-1 हॉर्मोन से जुड़कर काम करते हैं. इसलिए इन दवाओं के साथ-साथ GLP-1 हॉर्मोन के भी खूब चर्चे हैं.
अपडेट ये है कि इसी GLP-1 हॉर्मोन को अल्ज़ाइमर जैसी बीमारी के इलाज के लिए भी टेस्ट किया जा रहा है. अल्ज़ाइमर में याद्दाश्त कमज़ोर हो जाती है. इंसान चीज़ें भूलने लगता है. ये व्यक्ति के सीखने-समझने, सोचने की क्षमता और व्यवहार पर भी असर डालती है.
अब GLP-1 हॉर्मोन, अल्ज़ाइमर के इलाज में कैसे मदद कर सकता है, इस पर रिसर्च चल रही है. डेनमार्क की साइंटिस्ट और नोवो नॉर्डिस्क दवा कंपनी में चीफ साइंटिफिक एडवाइज़र हैं- Lotte Bjerre Knudsen.
इनका एक इंटरव्यू Indian Express में छपा है. इसमें उन्होंने GLP-1 हॉर्मोन, उसका कामकाज, शरीर पर असर और आगे की संभावनाएं बताई हैं. इसे समझने के लिए हमने बात की मैरिंगो एशिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो एंड स्पाइन, गुरुग्राम के चेयरमैन डॉक्टर प्रवीण गुप्ता से.

डॉक्टर प्रवीण ने बताया कि GLP-1 यानी ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड-1 हॉर्मोन. ये एक न्यूरोट्रांसमीटर और इनक्रेटिन हॉर्मोन है. थोड़ा आसान करके समझते हैं. न्यूरोट्रांसमीटर को केमिकल मेसेंजर कहा जाता है यानी एक तरह का 'डाकिया'. वहीं इनक्रेटिन हॉर्मोन, पाचन से जुड़ा हॉर्मोन हैं. हमारे खाना खाने के बाद, ये खून में शुगर का लेवल ठीक रखने में मदद करता है. दो मुख्य इनक्रेटिन हॉर्मोन होते हैं. पहला, GLP-1 और दूसरा GIP.
GLP-1 हॉर्मोन छोटी आंत और दिमाग के पिछले हिस्से से निकलता है. ये सिर्फ ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने में ही मदद नहीं करता. ये पेट भरा हुआ महसूस कराता है. इससे व्यक्ति कम खाता है और वेट लॉस में मदद मिलती है. पर शरीर में नेचुरली जो GLP-1 बनता है, वो खाना खाने के बाद, कुछ ही मिनटों तक काम करता है. ज़्यादा से ज़्यादा आधा घंटा.
लेकिन जब इसी GLP-1 से जुड़ी दवाएं बनाई जाती हैं. जिन्हें GLP-1 एनालॉग्स या GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट्स कहते हैं. तो ये लगातार अपना असर डालती हैं. ये दवाएं GLP-1 हॉर्मोन की नकल उतारती हैं. इससे शरीर को लगता है जैसे असली GLP-1 हॉर्मोन आया है.

ऐसा करके ये दवाएं डायबिटीज़ के मरीज़ों में दिनभर ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रखती हैं. खासकर खाने के बाद. वहीं जो मोटापे से परेशान हैं. उनमें ये दिमाग को सिग्नल भेजती हैं कि अभी भूख नहीं लग रही. जिससे व्यक्ति अपने खाने पर कंट्रोल रखता है. ये शरीर की अंदरूनी सूजन घटाने में मदद करती हैं. साथ ही, दिल, किडनी और दिमाग के दूसरे हिस्सों पर भी अपना असर छोड़ती हैं.
अब GLP-1 के इतने फायदे हैं, तो फिलहाल रिसर्च चल रही है कि ये अल्ज़ाइमर के ट्रीटमेंट में कैसे काम आ सकता है. इसके पीछे आइडिया ये है कि ये शरीर की सूजन कम करता है. इसमें दिमाग में होने वाली सूजन भी शामिल है. अल्ज़ाइमर होने पर दिमाग के सेल्स में सूजन आ सकती है.
दरअसल, अल्ज़ाइमर होने पर दिमाग में एमिलॉयड प्लैक और टाउ टैंगल्स नाम के प्रोटीन ग्रुप्स जमा होने लगते हैं. जमे हुए इन प्रोटीन ग्रुप्स को दिमाग के इम्यून सेल्स ख़तरा समझते हैं और इन्हें हटाने के लिए अपनी प्रतिक्रिया शुरू कर देते हैं. इसे इंफ्लेमेट्री रिस्पॉन्स कहते हैं. यानी वो सूजन पैदा करना शुरू कर देते हैं. ये सूजन अगर लंबे वक्त तक बनी रहे, तो दिमाग के सेल्स को नुकसान पहुंचने लगता है और बीमारी बढ़ती जाती है.
GLP-1 से जुड़ी रिसर्च का फोकस दिमाग की सूजन कम करने और सेल्स में आई गड़बड़ियों को ठीक करना है. रिसर्च का नतीजा आने में थोड़ा वक्त लगेगा, क्योंकि अल्ज़ाइमर पर ट्रायल करना बहुत मुश्किल होता है. अगर रिज़ल्ट पॉज़िटिव आता है. तो आने वाले कुछ सालों में अल्ज़ाइमर का इलाज GLP-1 हॉर्मोन की नकल उतारने वाली दवाओं से हो सकता है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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