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कहानी जय संतोषी माता की, जिसने शोले को टक्कर दी, करोड़ों छापे और बनाने वालों का दिवाला निकल गया

'जय संतोषी मां' पर काम करने वाले लोगों के साथ आगे चलकर कुछ-न-कुछ ट्रैजेडी घटती चली गई. लोगों का मानना था कि फिल्म से देवी नाराज़ हो गईं.

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तारीख 30 मई, 1975. भारतीय लोकतंत्र पर लगने वाले कलंक को अभी कुछ समय था. इंदिरा गांधी 25 जून को इमरजेंसी लागू करने वाली थीं. तब तक सिनेमा जैसे अभिव्यक्ति के माध्यमों पर कोई सरकारी रोक नहीं थी. खैर, उस दिन मुंबई और आसपास के इलाकों में एक फिल्म रिलीज़ हुई. कोई बड़ा स्टार नहीं जुड़ा. बनाने वालों के नाम भी ज़्यादा लोगों ने नहीं सुने थे. हां, कवि प्रदीप ने फिल्म के लिए गीत ज़रूर लिखे थे. वही कवि प्रदीप, जिन्होंने सिगरेट के डिब्बे से कागज़ फाड़कर उस पर ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की पहली पंक्तियां लिखी थीं. देखें वीडियो. 

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