साल 2015. एक दोपहर मेरा फ्लैटमेट फुर्ती से अपने कॉलेज से लौटा. कहा कि यार कुछ तगड़ा देखा है आज. तुम लोगों को भी दिखाता हूं. एक लैपटॉप अरेंज कर उसे साउंडबार से कनेक्ट किया गया. हम सब TVF का शो Pitchers देखना शुरू कर चुके थे. शो के सारे एपिसोड देखने के बाद लगा कि ऐसा कुछ तो अब तक नहीं देखा था. तब तक मेरा अमेरिकन शो Silicon Valley से परिचय नहीं हुआ था. खैर, फिर भी इंडियन स्पेस में स्टार्टअप कल्चर को अंदर तक दिखाने वाला शो नहीं बना था.
वेब सीरीज़ रिव्यू: TVF पिचर्स 2
अगर एक लाइन में पिचर्स के दूसरे सीज़न को लिखना हो तो मैं यही कहूंगा, एक मज़बूत शो का मज़बूत सीक्वल.

पहले सीज़न का आखिरी एपिसोड खत्म हुआ. कयास लगने लगे कि अगला सीज़न कब आएगा. कास्ट और टीम के इंटरव्यू देखे, कि क्या पता ये बता ही दें कि आगे क्या होने वाला है. दूसरे सीज़न का ये इंतज़ार करीब सात साल तक खिंचा. अब जाकर TVF Picthers का दूसरा सीज़न ज़ी5 पर आया है. किसी भी कामयाब फिल्म या सीरीज़ के सीक्वल पर बहुत दबाव होता है, कि पहले वाले से बेहतर कर पाएंगे या नहीं. अगर एक लाइन में पिचर्स के दूसरे सीज़न को लिखना हो तो मैं यही कहूंगा, एक मज़बूत शो का मज़बूत सीक्वल. बिल्कुल देखा जाना चाहिए. हालांकि कुछ खामियां ज़रूर हैं, फिर भी ये सीज़न आपको पसंद आएगा. मैंने ऐसी राय क्यों बनाई, आगे विस्तार से उसी पर बात करेंगे.
# तू बीयर नहीं है
दूसरे सीज़न की कहानी खुलती है पहले वाले के करीब चार साल बाद. प्रगति नाम की जो कंपनी चार लोगों ने शुरू की थी, वो अब 24 लोगों की टीम बन चुकी है. ऊपर से देखने पर लगता है कि कंपनी बड़ी हो गई, पैसा आ गया, अब तो सब कुछ बढ़िया ही होगा. बस ऐसा होता नहीं है. यहीं से नवीन और उसकी टीम के लिए मुश्किलें खड़ी होना शुरू हो जाती हैं. ज़िम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं. मार्केट में कॉम्पीटिशन को बीट करना है, ज़रूरी लोगों से पार्टनरशिप करनी हैं, पैसा संभाल कर इस्तेमाल करना है, साथ ही आगे के लिए फंडिंग जुटानी है.
कुल जमा बात ये है कि ‘तू बीयर है’ वाला फॉर्मूला अब नहीं चलेगा. पहले सीज़न के राइटर बिस्वपति सरकार ने एक इंटरव्यू में पहले सीज़न को लेकर एक बात कही थी. Pitchers देखने के बाद यदि कोई एक शख्स भी स्टार्टअप के प्रति इंस्पायर हो जाए तो उनका काम हो जाएगा. यही पहले और दूसरे सीज़न का मूल फर्क है. पहला सीज़न जादुई किस्म था. एक लड़के ने कॉलेज में एक आइडिया सोचा. अचानक से अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ उस पर काम करने में लग जाता है. उसके दोस्त साथ आ जाते हैं. अपनी धुन में निकल पड़ते हैं. इस सफर में किसी का दिल टूटता है तो किसी के पिता निराश होते हैं. लेकिन ये ‘मुकद्दर के सिकंदर’ अपनी जगह ढूंढ ही लेते हैं.
दूसरा सीज़न उसकी तुलना में वास्तविकता के करीब है. नवीन और उसकी टीम के हालात अब बेहतर हैं. लगता है कि हाथ में सब कुछ है. लेकिन फिर हाथों से सब कुछ फिसलने लगता है. स्पाइडरमैन की एक फेमस लाइन है, With great power, comes great responsibilty. यानी कोई भी पावर अपने साथ बड़ी ज़िम्मेदारी लेकर आती है. असली हीरो वो नहीं जिसके पास पावर है, बल्कि वो है जो उसके साथ आने वाली ज़िम्मेदारी को समझ सके. यहीं नवीन और उसकी टीम के कंधे कमज़ोर पड़ने लगते हैं. किसी भी हीरो का सफर उसके रास्ते में आने वाली रुकावटों की वजह से ही इंट्रेस्टिंग बनता है. पिचर्स 2 लिखने वाले अरुणाभ कुमार, प्रशांत और शुभम शर्मा ने ये बात अच्छे से समझी है. नवीन और उसकी टीम के लिए एक मसला बाद में सुलझता है, दूसरा उससे पहले आकर खड़ा हो जाता है. ऐसे में आप हीरो से जुड़ाव महसूस करते हैं. जानना चाहते हैं कि आगे क्या होने वाला है.
# वन स्टेप ऐट अ टाइम
पिचर्स 2 का सबसे ज़रूरी नायक है उसकी लिखाई. लोगों का पहले सीज़न और उसके किरदारों से जो जुड़ाव है, राइटर्स को उसका ध्यान रखना था. साथ ही बार को थोड़ा ऊंचा लेकर भी जाना था. यहां दोनों बातों के बीच का बैलेंस बनाने में कामयाब रहे. आप योगी को गुस्से में फोन फेंकते हुए देखते हैं, मंडल की ज़ेब में पेनड्राइव पाते हैं, किसी भी इम्पॉर्टेंट पिच से पहले नवीन के ब्लेज़र की ज़ेब में सिक्का पाते हैं. लेकिन इन सभी चीज़ों के मायने यहां बदल चुके हैं. नवीन अब ऐसे ही सिक्का उछालकर बड़े फैसले नहीं ले सकता. किरदारों की आदतों को रखा गया है, लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्हें भुना सकें. समय के साथ उनमें चीज़ें जुड़ी भी हैं.
जैसे मंडल का किरदार. जो समय और दुनियादारी देखकर मैच्योर हुआ है. अभय महाजन ने उसे वैसे ही निभाया भी है. हल्का सा मुंह खोलकर, गर्दन झुकाकर जिस तरह उन्होंने किरदार की बौखलाहट दिखाई, उसे उम्दा काम ही कहा जा सकता है. नवीन बंसल कहानी का सेंट्रल कैरेक्टर है. उसी के आइडिया की बदौलत प्रगति खड़ी होती है. एक फाउंडर होने के नाते नवीन में सबसे ज़्यादा बदलाव आते हैं. पोज़िशन का नशा सिर पर चढ़ता है, अपने साथ ऐरोगेंस लाता है. नवीन उसे ऐसे प्ले करते हैं कि किरदार का ये ट्रान्ज़िशन खटकता नहीं. चौथे एपिसोड में एक सीन है जहां नवीन किसी पर फट पड़ता है. चिल्लाता है. उस पूरे सीन में नवीन की आवाज़ एक रेंज में नहीं बनी रहती. सीन खत्म होने तक ऐसा लगता है कि उस शख्स को शायद खुद सामने वाले पर यूं फटना रास नहीं आ रहा. शुरुआत में खोखला गुस्सा, फिर बात खत्म होते-होते गला रुंधने लगता है.
योगी बने अरुणाभ कुमार एक्टिंग के लेवल पर कुछ आउट ऑफ द बॉक्स नहीं करते. जितना उनके किरदार से एक्स्पेक्ट किया जाता है, उतना वो डिलीवर करते हैं. इन तीनों एक्टर्स के अलावा यहां ऋद्धि डोगरा की बात भी की जानी ज़रूरी है. उन्होंने प्राची नाम का किरदार निभाया है. उसका इन लोगों से क्या कनेक्शन है, वो आपको शो में ही पता चलेगा. बस ऋद्धि को देखकर इतना कहा जा सकता है कि वो एक अवेयर एक्टर हैं. किरदार की मनोदशा आसानी से समझती हैं और उसे उसी हिसाब से डिलीवर भी कर पाती हैं. उनके अलावा आशीष विद्यार्थी और सिकंदर खेर भी इस सीज़न से जुड़े हैं.
शो के सभी किरदारों ने अपनी डायलॉग डिलीवरी में मज़बूत काम किया है. डायलॉग्स का ज़िक्र छिड़ा है तो यहां एक बात मेंशन करनी ज़रूरी है. पिचर्स 2 के डायलॉग कोई साहित्यिक उपलब्धि नहीं. बिल्कुल आम और सरल हैं, और शायद यही उनकी उपलब्धि है. आप जिस किरदार से जिस तरह की बातचीत एक्स्पेक्ट करते हैं, वो उसी तरह बोलता है. कोई किरदार हताश है और दूसरे के पास गया, तो ऐसा नहीं होगा कि दूसरा वाला लंबे-लंबे मोटिवेशनल कोट फेंकने लगे. वो उसी तरह समझाएगा जैसा वो है.
# जीतू कहां है?
पिचर्स 2 की तमाम तारीफ़ों के बाद अब बात खामियों की. वो चीज़ें जो मेरे लिए काम नहीं कर पाईं. सबसे पहला तो शो का फिनाले. एक समय पर चीज़ें भव्य स्तर पर बर्बाद होने के कगार पर हैं. लंबे समय से उस ओर बढ़े जा रही थीं. इस रास्ते पर जाते-जाते शो अचानक से अपने हाथ खींच लेता है. आखिरी एपिसोड में जल्दबाज़ी दिखती है. किरदारों की दुनिया जिस तरह बिखरी थी, उसे ध्यान में रखते हुए एक और एपिसोड की जगह आराम से बचती थी.
पूरे रिव्यू में मैंने प्रगति के फाउंडर्स में तीन लोगों की बात की – नवीन, मंडल और योगी. ट्रेलर में टीज़ किया गया कि जीतू अब टीम का हिस्सा नहीं. जीतू वॉल्डेमॉर्ट की तरह है. कहानी से गायब और कोई उसका नाम नहीं लेता. उसका किरदार अपने रास्ते क्यों गया, शो उस वजह में शब्द नहीं भरता. उसके चले जाने की वजह को सतही रखा गया. शायद तीसरे सीज़न को सोचकर ऐसा किया गया हो. बहरहाल, बहुत कम ही ऐसा होता है कि किसी भी सफल फिल्म या सीरीज़ का सीक्वल पहले वाले की लेगेसी में कुछ नया जोड़ पाए. Pitchers 2 स्टार्टअप की जादुई लगने वाली दुनिया की वास्तविकता को एक्स्प्लोर करने में इच्छुक दिखता है. अपने पैशन का पीछा कर जो हासिल होगा वो बाद की कहानी है, लेकिन उस रास्ते कितने धक्के आएंगे, शो उसमें इच्छुक दिखता है. कामयाबी कोई मंज़िल नहीं बल्कि सफर है, इस बात में इच्छुक दिखता है. इसी वजह से मैं रिकमेंड करूंगा कि पिचर्स 2 देखा जाना चाहिए.
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