Yash Chopra ने अपने करियर में कई यादगार फिल्में दीं. इन फिल्मों को यादगार बनाने में इनकी स्टारकास्ट और गानों के अलावा डायलॉग का बड़ा हाथ रहा. इनमें Kabhi Kabhie, Noorie, Silsila और Chandni जैसी फिल्में शामिल हैं. इन फिल्मों के डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले अपने ज़माने में काफी पॉपुलर हुए. मगर बहुत कम लोगों को पता है कि इन्हें Sagar Sarhadi ने लिखा था. सागर ने ना केवल यशराज की इन फिल्मों के स्क्रीनप्ले लिखे. साथ ही Shah Rukh Khan की डेब्यू फिल्म Deewana और Hrithik Roshan की पहली फिल्म Kaho Naa Pyar Hai के डायलॉग्स भी उन्होंने लिखे थे. बावजूद इसके एक दौर ऐसा आया, जब उन्हें अपना घर बेचकर सड़क पर आना पड़ा. इसके बाद अकेलेपन ने उन्हें इस मकाम पर ला खड़ा किया कि अपनी अंतिम सांस मुंबई के एक छोटे से कमरे में ली.
जब शाहरुख-ऋतिक की फिल्मों के डायलॉग राइटर को घर बेचकर फुटपाथ पर आना पड़ा
'बाज़ार' के लिए सागर को पैसे तक उधार लेने पड़े थे. उन्होंने फिल्म के इक्विपमेंट तक शशि कपूर से मांगे थे.
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सागर सरहदी का जन्म 11 मई 1933 को पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था. घरवालों ने नाम रखा, गंगा सागर तलवार. जब वो 12 साल के थे, उस वक्त एबटाबाद में दंगे जैसी स्थिति पैदा हो गई. ऐसा में केवल 12 साल की उम्र में उन्हें पाकिस्तान से दिल्ली आना पड़ा. दिल्ली आते वक्त उनके पास केवल झोला भर सामान था. यहां वो एक रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे. कैंप का माहौल सुरक्षित नहीं था. एक रात उनके घर में एक आदमी खंजर लेकर आ गया. इस वजह से उनके परिवार को वो पूरी रात पास के एक गुरुद्वारे में बितानी पड़ी.
दिल्ली में रहने के दौरान सागर ने बेसिक एजुकेशन ली. फिर वो बॉम्बे अपने बड़े भाई के पास चले गए. उन्हें लिखने का शौक था. मगर गुज़ारे के लिए उन्होंने टैक्सी चलानी शुरू की. और पहले ही दिन टैक्सी ठोक दी. तब समझ आया कि वो इस काम के लिए नहीं बने हैं. उनके भाई ने उन्हें दोपहर में अपने कपड़े की दुकान संभालने का काम दिया. लेकिन सागर वहां बैठकर किताबें पढ़ते रहते. एक दिन तो एक ग्राहक पूरा थान (कपड़े का गट्ठर) लेकर चला गया और उन्हें पता तक नहीं चला. बाद में उन्होंने एक एडवरटाइजिंग कंपनी में नौकरी कर ली. लेकिन दो साल बाद छोड़ दिया. क्योंकि वो जॉब उनके मार्क्सवादी विचारधारा से मेल नहीं खाती थी.
किसी तरह सागर को फिल्मों में लिखने का मौका मिला. कुछ समय के लिए वो थिएटर से भी जुड़े रहे. उनके एक नाटक को देखने के बाद यश चोपड़ा ने उन्हें अमिताभ बच्चन स्टारर 'कभी कभी' का स्क्रिप्ट लिखने का ऑफर दिया. यहीं से उनकी जिंदगी बदल गई. स्क्रॉल से हुई बातचीत में उन्होंने कहा,
“यश ने मुझे घर-घर का नाम बना दिया. इतने बड़े डायरेक्टर होने के बावजूद उन्होंने कभी मेरी स्क्रिप्ट और डायलॉग्स में दखल नहीं दिया. सिर्फ एक बार उन्होंने एक सीन की कुछ लाइनें हटाईं, लेकिन वो भी मेरी इजाज़त से.”
संसद TV से हुई बातचीत में सागर ने बताया कि फिल्म के फाइनेंसर गुलशन राय को 'कभी-कभी' के डायलॉग पसंद नहीं आए थे. उन्हें लगा था कि डायलॉग्स बहुत ‘किताबी’ हैं. लेकिन वही डायलॉग्स बाद में हिट हुए. खुद दिलीप कुमार भी सागर के फैन बन गए और उन्हें अपनी फिल्मों के लिए लिखने का ऑफर दे डाला.
यश चोपड़ा के लिए कुछ फिल्में लिखने के बाद सागर ने एक फिल्म बनाई. 'बाज़ार' नाम की इस मूवी की प्रेरणा उन्हें एक न्यूज आर्टिकल से मिली थी. उन्होंने पढ़ा कि औरतों को पैसे के लिए जबरदस्ती ब्याह दिया जाता है. इस बात से प्रेरित होकर उन्होंने ये फिल्म बनाई, जो बाद में क्लासिक बन गई. नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक और फारूक शेख की इस मूवी के लिए उन्हें उधार लेना पड़ा था. उन्होंने फिल्म के इक्विपमेंट शशि कपूर से मांगे थे. उनसे परमिशन मिलने के बाद उन्होंने किसी तरह ये फिल्म तैयार की.
'बाज़ार' को लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला. मगर एक सीमित क्षेत्र में. इसके बाद उन्होंने 'तेरे शहर में' नाम की फिल्म पर काम शुरू किया. इस फिल्म के प्रोड्यूसर ने एक लोन शार्क से पैसे उधार लिए. मगर वो पैसे चुका नहीं सके. ऐसे में उस लोन शार्क ने सागर से पैसे निकलवाने के लिए ज़ोर-जबरदस्ती शुरू कर दी. एक इंटरव्यू में वो कहते हैं,
"जब प्रोड्यूसर उन्हें पैसे नहीं दे पाया, तो फाइनेंसर ने मुझसे पैसे निकलवाए. उसने धोखे से मुझसे एक गारंटी लेटर पर साइन करवा लिए. इसके कारण मुझे अपना फ्लैट तक बेचना पड़ा. वो फाइनेंसर मुझे धमकी देता था कि वो मुझे सड़क पर ले आएगा. और उसने वाकई ऐसा ही किया."
इसके बाद सागर ने और फिल्में बनाने की कोशिश की. मगर हर बार कोई-न-कोई दिक्कत आ ही जाती. कुछेक कोशिशों के बाद वो दोबारा फिल्मों के डायलॉग लिखने लगे. आगे उन्होंने ऋषि कपूर-श्रीदेवी की ' चांदनी', शाहरुख की 'दीवाना' और ऋतिक की 'कहो ना...प्यार है' जैसी फिल्मों के संवाद लिखे. मगर कुछ समय के बाद उन्होंने यशराज फिल्म्स से खुद को अलग कर लिया. क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि YRF केवल रोमैंटिक फिल्में बना रही है. इससे बतौर राइटर उन्हें कुछ अलग करने का मौका नहीं मिल पाएगा.
समय के साथ सागर इधर-उधर काम करते रहे. धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना भी बंद हो गया. साल 2000 की शुरुआत में उन्होंने नवाजुद्दीन सिद्दकी को लेकर एक फिल्म बनाई. मगर 'चौसर' नाम की ये मूवी कभी रिलीज नहीं हो सकी. उनकी आर्थिक स्थिति चरमरा गई. वो काफी बीमार रहने लगे और 2021 में लंबी बीमारी के चलते मुंबई में 88 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
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