डायरेक्टर प्रकाश मेहरा, अमिताभ बच्चन और मनमोहन देसाई; "कुली" फिल्म के सेट पर डायरेक्टर मनमोहन देसाई के साथ अमिताभ बच्चन.
बॉलीवुड को कमर्शियल मायनों और फॉर्मूला फिल्मों से परिभाषित करने वाली फिल्मों के लैजेंड थे राइटर-डायरेक्टर मनमोहन देसाई. जैसे अमर अकबर एंथनी जिसमें तीन भाई बिछड़ जाते हैं और अलग-अलग धर्मों में परवरिश पाते हैं और फिर उतने ही नाटकीय अंदाज में एक दिन मिलते हैं. ऐसी ही सेंटीमेंटल, नायकीय, अविश्वसनीय कहानियां वे कहते थे. उनकी फिल्में एक के बाद आती थीं और जोरदार हिट्स ही होती थीं. वे कहते थे कि उन्होंने फिल्मों को हिट करवाने का फॉर्मूला ईजाद कर लिया था. वहीं से फॉर्मूला फिल्म शब्द आया बताते हैं. 'सच्चा-झूठा', 'नसीब', 'धरमवीर', 'परवरिश' और 'मर्द' जैसी हिट फ़िल्में थोक में उन्होंने दी थी. बंबई में 1937 में जन्म लेने वाले देने वाले देसाई का आज के ही दिन1 मार्च को 1994 में निधन हो गया था.
उनकी बरसी पर उनकी ज़िंदगी के किस्सों से उन्हें याद कर रहे हैं. ऐसे किस्से जो बताते हैं कि अपनी फिल्मों जितने नाटकीय वे अपनी असल ज़िंदगी में भी थेः #1. मनमोहन देसाई ने रीयल लाइफ में भी शादी वैसे ही की जैसे फिल्मों में उनके हीरो करते थे. घर के सामने रहने वाली लड़की से उन्हें प्यार था. रोज़ टाइम देखकर उस लड़की के साथ ही निकलते थे और बस में भी उसके पीछे वाली सीट पर बैठा करते थे. एक बार हिम्मत जुटा कर बात की और पहली ही मुलाकात में बोल गए कि आपसे शादी करना चाहता हूं. लड़की के घर वालों ने मना किया तो वहां जाकर बोल आए कि अगर उन दोनों की शादी नहीं हुई तो जिस भी लड़के का रिश्ता आएगा, उसे अपने दोस्तों के साथ मिलकर भगा देंगे. इसके बाद लड़की के मां बाप ने शादी के लिए हां कर दी! #2. अपनी पहली फिल्म उन्होंने अपनी ड्रीम कास्ट राजकपूर और नूतन के साथ ही की थी. पहला सीक्वेंस एक गाने का था. लेकिन शुरुआत में ही राजकपूर किसी बात से नाराज़ हो गए. बहुत मनाने के बाद शूटिंग हुई. लेकिन उसी सीक्वेंस को एडिट होने पर राजकपूर ने देखा तो मनमोहन पर भरोसा हो गया. मनमोहन को गले लगाकर बोले कि बहुत बड़े डायरेक्टर बनोगे. गाना था 'डम-डम डिगा-डिगा' जिसे आज तक याद किया जाता है. इसके बाद फिल्म आराम से बनकर तैयार हुई और 'छलिया' नाम से रिलीज़ हुई.
#3. उन्होंने शम्मी कपूर को लेकर एक फिल्म बनाई 'ब्लफ मास्टर'. तब अधिकतर फ़िल्में स्टूडियो में ही शूट कर ली जाती थीं. लेकिन मनमोहन इस फिल्म का एक गाना 'गोविंदा आला रे' रीयल लोकेशन पर शूट करना चाहते थे. गाने का बैकग्राउंड जन्माष्टमी का था, तो रीयल लोकेशन मतलब हुआ रोड. शूटिंग में सेफ्टी के लिए पुलिस की मदद भी ली, और लोकल गुंडों की भी. यह बॉलीवुड का पहला गाना था जिसे रियल लोकेशन पर शूट किया गया था. फिल्म पिट गई पर गाना बहुत बड़ा हिट हुआ. #4. एक वक्त मनमोहन देसाई दो साल तक बेरोजगार रहे. फिर शम्मी कपूर के कहने पर एक अधूरी फिल्म को पूरा करने का ऑफर उन्हें मिला जिसका डायरेक्टर फिल्म छोड़ कर चला गया था. मनमोहन ने 500 रुपये की दिहाड़ी पर फिल्म को पूरा किया. फिल्म पूरी होने को आई तो मनमोहन ने कहा की मेरी फ़ीस के पैसों से वे सीन रीशूट करवा लिए जाएं जो पिछले डायरेक्टर ने शूट किए थे. बनकर तैयार हुई ये फिल्म औसत चली लेकिन मनमोहन का करियर फिर चल पड़ा. फिल्म थी शम्मी कपूर के लीड रोल वाली 'बदतमीज़'. इसके बाद एक वक्त वो भी आया जब मनमोहन ने एक साथ चार-चार फिल्में शूट कीं.
#5. एक बार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने मनमोहन देसाई को 'ये पब्लिक है सब जानती है' गाना सुनाया तब वे राजेश खन्ना के साथ फिल्म 'रोटी' की शूटिंग कर रहे थे. उन्हें यह गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने हाथों-हाथ फिल्म की स्क्रिप्ट में बदलाव करके गाने के लिए सिचुएशन बनाई और उस गाने को फिल्म में फिट कर दिया. ये गाना भी हिट रहा.
#6. मनमोहन फिल्म के लिए आइडिया कहीं से भी निकाल लाते थे. 'अमर अकबर एंथनी' एक असल खबर से आया था जिसमें एक बाप अपने तीन नवजात बच्चों को पार्क में छोड़ कर चला गया था. इसके बाद स्क्रिप्टराइटर प्रयागराज के साथ मिलकर अगले तीन दिनों में स्क्रिप्ट भी लिख दी. 'आ गले लग जा' का स्टोरी आइडिया उन्हें अपने बेटे के स्कूल में आया था जहां उन्होंने कुछ बच्चों को स्केटिंग करते हुए देखा था. उसके बाद उन्होंने अगले सात दिनों में फिल्म की कहानी लिख दी.
लगातार सफलता के बाद मनमोहन की ज़िंदगी में कुछ ठहराव आने लगा. 1979 उनके लिए बेहद बुरा साबित हुआ. उनकी पत्नी की मौत उस साल अप्रैल में हुई थी. फिल्में भी नहीं चल रही थी. 1981 में 'नसीब' आई. कामयाब रही. लेकिन करियर ने दोबारा रफ्तार नहीं पकड़ी. 1994 में अपनी बालकनी से गिरकर उनकी मौत हो गई.