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वेब सीरीज़ रिव्यू: ''फिज़िक्स वाला''

कहानी का पहला हिस्सा ज़्यादा इंटरेस्टिंग नज़र आता है. बिना किसी बड़े चेहरे के मेकर्स बड़ी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.

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अमेज़न प्राइम की मिनी टीवी पर आप ये सीरीज़ देख सकते हैं.

इंसान का दिमाग एक बहुत ही विचित्र सी चीज़ है और किसी भी जानवर के पास ऐसा दिमाग नहीं है. और ये विचित्र इसलिए है क्यूंकि ये सवाल करता है. ह्यूमन माइंड  इस क्यूरियस. आसमान में इंद्र धनुष निकला सबने देखा पर बस इंसान ने सोचा कि ये बनता कैसे है? बादल आया, पानी बरसा, सब भीगे पर बस इंसान ने सोचा बारिश होती कैसे है? हम हर चीज़ को सवाल करते हैं. हमें उसके पीछे कि सच्चाई जाननी होती है. we want to know the truth and Science is nothing but realisation of truth.

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यह लाइन्स बस एक छोटा सा हिस्सा है अमेज़न मिनी टीवी पर रिलीज़ हुई सीरीज  Physics Wallah का. यह सीरीज भारत के सबसे बड़े ऐड-टेक प्लेटफॉर्म्स में से एक Physics Wallah के संस्थापक अलख पांडेय के संघर्ष पर आधारित है.

कहानी शुरू होती इलाहाबाद से. अलख पांडेय ग्रेजुएशन कर रहे हैं लेकिन वो पढ़ाए जाने के तरीके से सहमत नहीं है. उन्हें लगता है कि इस तरह की पढ़ाई करके सब एक ही तरह की नौकरी करते हैं. उन्हें इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है. लेकिन घर की फाइनेंशियल कंडीशन भी कुछ ज़्यादा अच्छी नहीं है. उनके परिवार में माता-पिता के अलावा एक छोटा भाई और एक बड़ी बहन भी है. जो चाहती है कि अलख जल्दी से जल्दी कमाना शुरू करे और घर चलाने का दबाव उनपर से कुछ कम हो. लेकिन अलख को कुछ अलग करना है और इसी खोज में वो पहुँच जाते हैं एक कोचिंग सेंटर तक. जहां उन्हें उनकी फिजिक्स की नॉलेज के दम पर नौकरी तो मिल जाती है लेकिन कोचिंग सेंटर के मालिक उपाध्याय सर अलख को इसलिए काम से निकाल देते हैं क्यूंकि पहले से फिजिक्स पढ़ा रहे एक सीनियर फिजिक्स के टीचर अलख से insecure  फील करने लगते है और वो नहीं चाहते कि अलख इस कोचिंग सेंटर में पढ़ाए.

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लेकिन अब कोचिंग सेंटर के स्टूडेंट्स को अलख से पढ़ने में मज़ा आने लगा था. और अलख भी अब अपना खुद का कोचिंग सेण्टर शुरू करने का मन बना चुके थे. कुछ ही दिन में अलख ने एक दूसरे कोचिंग सेंटर के साथ पार्टनरशिप कर ली. पार्टनर के ढुल-मुल रवैये के चलते कोचिंग सेंटर की जगह को बेचना पड़ा. अलख के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. यहीं से शुरुआत होती है इस दुनिया के सबसे बड़े सवाल के मन में पनपने की. 'आखिर इस ज़िन्दगी का मकसद क्या है?' इसी सवाल की तलाश में अलख अकेले ही किसी को बिना बताए घर से निकल पड़ते हैं. अपनी इस खोज के दौरान वो सृष्टि के उस छोर तक पहुंचते हैं जहाँ मेल होता है विज्ञान और फिलॉसफी का, जहां उन्हें अपने जीवन का मकसद समझ आता है. इसके बाद कई मुसीबतों का सामना करने के बाद भी अलख पीछे मुड़कर नहीं देखते.

सफलता के रास्ते में क्या-क्या मुसीबत आती हैं? सफल होने के बाद भी अलख को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और सीरीज का सबसे इंटरेस्टिंग और सबसे ज़रूरी हिस्सा- अलख को उनकी ज़िन्दगी का मकसद कैसे पता चलता है?  ये जानने के लिए आपको Physics Wallah ज़रूर देखनी चाहिए.

यह सीरीज आपको फिजिक्स के कुछ कॉन्सेप्ट्स बहुत ही इंटरस्टिंग तरीके से समझाती है. इसे सुनकर हो सकता है कि आपकी आँखें फटी की फटी रह जाएं या आपके रोंगटे खड़े हो जाएं. जैसे pi की वैल्यू की खोज कैसे हुई और उससे हमें क्या सीख मिलती है? इसी तरह के कुछ और सवाल जो हमें विज्ञान की गहराइयों में  झाँकने के लिए उत्सुक करते हैं.  

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कहानी का पहला हिस्सा ज़्यादा इंटरेस्टिंग नज़र आता है. जब अलख अपना रास्ता खोजने के लिए संघर्ष कर रहे होते है. अलख के सफल होने के बाद उनकी ज़िन्दगी में काफी उतार चढ़ाव आते रहते हैं जो आपको सीरीज के साथ बने रहने के लिए मजबूर करेंगे.  

अलख पांडेय के किरदार में श्रीधर दुबे ने बहुत अच्छा काम किया है. एक लोअर मिडिल क्लास परिवार से आने वाले लड़के से लेकर एक सफल शिक्षक बनने तक उनका ट्रांसफॉर्मेशन देखने लायक है. उनकी बॉडी लैंग्वेज हो या उनके एक्सप्रेशंस, श्रीधर हर जगह अपनी भावनाओं को अपने चेहरे पर दिखा पाने में सफल रहे हैं.

श्रीधर के आलावा अलख के प्रतिद्वंदी उपाध्याय सर के किरदार में अनुराग अरोड़ा  ने अच्छा काम किया है. उन्हें आप जब भी अपने लैपटॉप या मोबाइल फ़ोन की स्क्रीन पर देखते हैं, आपका मन गुस्से से भर जाता है. अलख की ज़िन्दगी जब भी ट्रैक पर लौट रही होती है उपाध्याय सर बीच में टांग अड़ाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.

अलख की बहन के किरदार में राधा भट्ट और भाई के किरदार में अनुराग ठाकुर,  इसके लावा अलख की शुरूआती स्टूडेंट्स में से एक शिवांगी का किरदार निभा रही इशिका गगनेजा ने भी ठीक काम किया है.

लेकिन श्रीधर दुबे के अलावा अगर किसी ने असर छोड़ा है तो वो है पेन-पेंसिल नाम से स्टार्ट-अप के फाउंडर प्रतीक के किरदार में सैफ हैदर. सिर्फ रियल लाइफ में ही नहीं बल्कि इस सीरीज में भी इस किरदार ने अलख पांडेय का बखूबी साथ निभाया है. अलख के पॉपुलर होने के शुरूआती दौर से लेकर सफलता के आसमान तक पहुंचने में हर कदम पर प्रतीक उनके साथ दिखाए देते हैं.

डायरेक्टर और प्रोडूसर अभिषेक ढंढारिया ने रिसोर्सेज का इस्तेमाल बहोत अच्छे से किया है. बिना किसी बड़े चेहरे के अभिषेक एक बड़ी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.

लेखक समीर मिश्रा ने जिस तरह से साइंस और फिलॉसफी को कनेक्ट किया है, वही सीरीज के पहले हिस्से में जान फूंकने का काम करता है. और इस लेखन को उतने ही रोचक ढंग से दर्शाने का काम किया है सिनेमेटोग्राफर मणिकंदन राममूर्ति ने.

प्रोडक्शन डिज़ाइन की बात करें तो अलख का लोअर मिडिल क्लास घर हो या Physics Wallah का आलिशान दफ्तर सबकुछ कहानी का साथ देते हुए नज़र आता है.

जाते-जाते इस सीरीज के बारे में एक बात और मेंशन करना ज़रूरी है. हम स्कूल या कॉलेज में शिक्षकों को सिर्फ एक शिक्षक की तरह ही देखते हैं. हम भूल जाते हैं कि वो इंसान भी हैं जो सबकी तरह जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. एक शिक्षक क्लास में स्टूडेंट्स के सामने खड़े होकर किसी भी टॉपिक को पढ़ाने से पहले कितनी मेहनत करता है ये जानने के लिए हर स्टूडेंट को और एक 'अच्छा टीचर' कैसा होता है ये जानने के लिए हर शिक्षक को ये सीरीज ज़रूर देखनी चाहिए.

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