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मूवी रिव्यू: निकम्मा

फिल्म ने अपना सेकंड हाफ पूरा अपने एक्शन को डेडिकेट किया है. वो एक्शन जिसे देखकर अंदर कोई थ्रिल महसूस नहीं होता.

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जब पूरा रास्ता है तो आग पर से कूदने की क्या ज़रूरत थी मेरे भाई.

साबिर खान. 'हीरोपंती' और 'बागी' जैसी फिल्में बना चुके हैं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सॉलिड कलेक्शन किया था. अब उनकी नयी फिल्म रिलीज़ हुई है, 'निकम्मा'. जहां लीड में अभिमन्यु दसानी, शर्ली सेतिया और शिल्पा शेट्टी जैसे एक्टर्स हैं. साबिर अपनी फिल्म के ज़रिए एक एंटरटेनिंग एक्सपीरियेंस क्रिएट करना चाहता थे. ऐसा कर पाए या नहीं, आज के रिव्यू में उसी पर बात करेंगे.

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अभिमन्यु ने आदी नाम के लड़के का कैरेक्टर निभाया है. फिल्म का टाइटल उसी की हरकतों पर रखा गया है. आदी का किसी काम में मन नहीं लगता, जी चुराता है. ऐसे में उसे अपनी भाभी के पास रहने को भेज दिया जाता है. शिल्पा शेट्टी ने उसकी भाभी का रोल निभाया है, जिनका फिल्म में नाम अवनी है. आदी की अपनी भाभी से बिलकुल नहीं बनती. उसे लगता है कि वो उसे नौकर की तरह ट्रीट करती है, पूरे दिन बस घर का काम करवाती है. वो उसे अपनी लाइफ की विलेन मानता है. दूसरी ओर अवनी एक ईमानदार सरकारी ऑफिसर है. अपनी ईमानदारी की वजह से उसका पंगा पड़ जाता है एक लोकल गुंडे से, जो एमएलए बनने के ख्वाब देख रहा है.

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आदी को लगता है कि उसकी भाभी सिर्फ उसे नौकर समझती है.

अब उसे डर है कि उसके कांड बाहर आ गए तो एमएलए का सपना टाटा बाय-बाय. इसलिए फिर वही ड्रामा शुरू होता है. अवनी को रास्ते से हटाना है. यहां आदी के अंदर का हीरो जाग जाता है. अब उसकी लड़ाई सीधा विक्रमजीत से है. यही उस गुंडे का नाम है. आगे फिर वही घटता है जो होता आ रहा है. आदी अपने परिवार को कैसे बचाएगा, क्या करेगा, यही फिल्म की कहानी है.

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अक्सर आप लोग हमारे रिव्यू वीडियो के कमेंट्स में एक शिकायत करते हैं. कि यार तुम ये क्यों नहीं बताते कि ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं, इतने डिप्लोमेटिक क्यों बनते हो. तो हमारा कहना है कि हम किसी भी फिल्म के अच्छे और बुरे, दोनों पहलू आपको बताते हैं. उसके बाद आप खुद चुनाव कर लें कि फिल्म आपको देखनी चाहिए या नहीं. लेकिन 'निकम्मा' के केस में ऐसा नहीं है, क्योंकि यहां अच्छा बताने के लिए कुछ है ही नहीं. मुझे नहीं पता कि फिल्म के डायरेक्टर साबिर खान की अपने एक्टर्स को क्या ब्रीफ थी, लेकिन नियरली हर एक्टर एक दूसरे से ओवर एक्टिंग करने का कम्पटीशन कर रहा है. अभिमन्यु को देखकर लगता है कि वो हर डायलॉग पर ज़ोर लगा रहे हैं. उनकी आईब्रो हमेशा टाइट रहती है. ये कहने का मन करता है कि ब्रो चिल.

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फिल्म का एक्शन भी उसकी कोई हेल्प नहीं करता.

शर्ली सेतिया भी ओवरएक्टिंग के बार को एक स्टेप ऊपर ले जाने का ही काम करती हैं. अपना हर डायलॉग, हर सीन एक ही टोन में डिलीवर करती हैं. देखकर कंफ्यूजन होता है कि उनके कैरेक्टर के दिमाग में क्या चल रहा है. फिल्म के विलेन विक्रमजीत बने अभिमन्यु सिंह को टिपिकल विलेन वाले सांचे में फिट किया गया है. इंटीमिडेट करने की कोशिश करता है. बाकी विलेंस की लिस्ट में अपनी नयी पहचान नहीं बना पाता. रही बात अवनी बनी शिल्पा शेट्टी की, तो उनका काम ऐसा नहीं जो इस डूबती नाव को बचा सके.
  
फिल्म ने अपना सेकंड हाफ पूरा अपने एक्शन को डेडिकेट किया है. वो एक्शन जिसे देखकर अंदर कोई थ्रिल महसूस नहीं होता. हर किक, हर मुक्का स्लो मोशन में चलेगा. इतनी बार आप स्लो मोशन में मुक्कालात देख लेते हैं, तो बड़ा घिसा हुआ सा लगता है. ऊपर से हर एक्शन सीन को हीरो का एंट्री सीन क्यों बनाते हैं, जहां हीरो का गुस्से वाला फेस दिखेगा. उसकी ज़ुल्फ़ें लहराएंगी.    

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समझ नहीं आता कि फिल्म में  शर्ली के कैरेक्टर की क्या ज़रूरत थी. 

मसाला फिल्म से अपने को कोई बैर नहीं. आखिर आप हर फिल्म से ये एक्सपेक्ट नहीं कर सकते कि आपके मन पर कोई गहरा असर छोड़ जाए. लेकिन आप मसाला फिल्में बनाने के लिए पुरानी रेसिपी लाते रहेंगे, तो गुरु दिक्कत है. सोचने पर भी फिल्म से एक एलिमेंट याद नहीं आता, जो काम कर गया हो. लंबे समय बाद मैंने कोई फिल्म देखी, जहां हर थोड़ी देर में फ़ोन चेक करना पड़ रहा था, कि कहानी कब एंड तक पहुंचेगी. बाकी आप समझ ही जाइये.

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अपना रिव्यू रैप अप करते हुए मैं एक बात कहना चाहता हूं. कुछ समय पहले 'हीरोपंती 2' रिलीज़ हुई थी. जिसका रिव्यू हमारे साथी श्वेतांक ने किया था. तब मैंने मज़ाक में उन पर कुछ कमेंट कर दिया था. अब आज जाकर मुझे वो 'कर्मा' वाले शब्द का कॉन्सेप्ट समझ आ रहा है.

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