फिल्म की मोटा-मोटी कहानी
केरल में एक मछुआरे के जाल में एक काली पन्नी फंस जाती है. खोलने पर पता चलता है कि उसके अंदर स्कल यानी खोपड़ी है. इस मामले की जांच करने के लिए केरल पुलिस की एक टीम बनाई जाती है, जिसके हेड हैं ACP सत्यजीत. सत्यजीत के सामने दो चुनौतियां हैं. पहली, उन्हें ये पता लगाना कि वो खोपड़ी किसकी है. अगली चुनौती है उस खोपड़ी वाले व्यक्ति का कातिल ढूंढना. दूसरी तरफ एक इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट है मेधा. वो अपने पति से अलग होकर बिटिया की कस्टडी की लड़ाई लड़ रही है. मेधा अपनी मां का घर छोड़कर एक नए मकान में किराए पर रहने आती है. मगर कुछ ही समय बाद उसे इस घर में किसी साया के होने का भान होता है. एसीपी सत्यजीत और मेधा एक दूसरे से अंजान अपने तरीके से इन दोनों मामलों की जांच कर रहे हैं. मगर उन्हें ये नहीं पता कि उनकी मंज़िल एक की है.

मछुआरे को मिली वो खोपड़ी, जिसने पुलिस महकमे में तहलका मचा दिया है.
एक्टर्स और उनकी परफॉर्मेंस
'कोल्ड केस' में एसीपी सत्यजीत का रोल किया है पृथ्वीराज सुकुमारन ने. पृथ्वीराज को हम रानी मुखर्जी के साथ हिंदी फिल्म 'अय्या' मे देख चुके हैं. खैर, पृथ्वीराज का किरदार एक गंभीर पुलिसवाले का है, जिसे इस मामले की छानबीन के लिए लाया जाता है. पृथ्वीराज लंबे समय से फिल्म बिज़नेस में हैं. अलग-अलग तरह के जटिल किरदार निभा चुके हैं. मगर इस फिल्म में उनका कैरेक्टर बड़ा वन टोन है. उस किरदार का कोई आर्क भी हमें देखने को नहीं मिलता. न ही उसकी कोई बैकस्टोरी बताई जाती है. बावजूद इसके पृथ्वीराज की परफॉर्मेंस और स्क्रीनप्रेज़ेंस आपको इतनी हिम्मत देते हैं कि आप वो फिल्म पूरी कर सकें. 'अरुवी' जैसी चर्चित फिल्म में टाइटल रोल प्ले करने वाली अदिति बालन ने 'कोल्ड केस' से अपना मलयालम फिल्म डेब्यू किया है. मगर उन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो दर्शकों की ही तरह, वो भी अपने प्लॉट से कंविंस्ड नहीं हैं. वो तकरीबन पूरी फिल्म में कंफ्यूज़ नज़र आती हैं. बाकी कई एक्टर्स छोटे-मोटे किरदारों में नज़र आते हैं मगर कोई भी प्रभाव नहीं छोड़ पाता.

इस मामले की छानबीन के लिए बनाई गई टीम के हेड एसीपी सत्यजीत.
ये फिल्म थ्रिलर या हॉरर?
'कोल्ड केस' एक फिल्म में दो जॉनरों को मिलाने की कोशिश करती है. एक तरफ पुलिस प्रोसीजरल सिनेमा चल रहा है और दूसरी तरफ फुल ऑन हॉरर मूवी. अगर आप सोचकर देखें, तो ये बड़ा एक्साइटिंग प्रयोग है. मगर जिस तरह से ये फिल्म अपने अंजाम तक पहुंचती है, उसके बाद मान लेना चाहिए कि ये प्रयोग असफल रहा. ये फिल्म अपने सब्जेक्ट को लेकर थोड़ी और क्लैरिटी मांगती है. कॉन्सेप्ट की ही तरह इसकी राइटिंग भी स्मार्ट होती. और क्लीशे सीन्स और सिचुएशन अवॉयड किए जाते, तो बात कुछ और होती. फिल्म में जब आप मुख्य किरदारों के अलावा जिन्हें भी बात करते सुनेंगे, वो बहुत ऑब्वियस साउंड करता है. जो बात दर्शकों को दिखाई दे रही है. उसे कहलवाने की क्या ज़रूरत है. कई बार ऐसा लगता है मानों दूसरे किरदारों को डायलॉग देने के फेर में जबरदस्ती ऐसा किया गया है. मगर ये चीज़ फिल्म के साथ अन्याय करती है. फिल्म की एक्स्ट्रा लंबाई उसके बचे-खुचे पैनेपन को मार देती है. और दर्शकों को निराश करके छोड़ देती है.

केरल पुलिस के साथ-साथ मेधा भी इस मामले की पैरलल इनवेस्टिगेशन में लगी हुई हैं. मगर उनकी वजह पर्सनल है.
अच्छी बात क्या है?
'कोल्ड केस' से जुड़ी अच्छी चीज़ ये है कि उसके मेकर्स कुछ नया ट्राय करने का हिम्मत रखे हुए हैं. वो बात अलग है कि वो इस नए आइडिया को पूरी तरह से एग्ज़ीक्यूट न कर पाए. मलयाली फिल्मों को देखकर लगता है कि केरल बड़ा सुंदर होगा. इस फिल्म का कैमरा कहानी में तो कुछ खास नहीं जोड़ता मगर फिल्म देखने को अनुभव को रिच बनाता है. तमाम कोशिशों के बावजूद पृथ्वीराज के अलावा आप कोई और अच्छी चीज़ इस फिल्म में नहीं ढूंढ पाते हैं.

केरल की वो खूबसूरती, जिसकी चर्चा हमने ऊपर वाले पैराग्राफ में की थी.
ओवरऑल एक्सपीरियंस
'कोल्ड केस' को ऐसा सिनेमा नहीं कह सकते, जो बहुत नया हो. या जैसे कुछ आपने पहले नहीं देखा हो. हर फिल्म को देखने के बाद एक भाव आता है, जो आपके साथ रह जाता है. मगर 'कोल्ड केस' को देखने के बाद आप श्योर नहीं हो पाते कि वो भाव क्या है.
'कोल्ड केस' एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम किया जा सकता है.