फिल्म ने ऐसा टॉपिक चुना जो दुर्भाग्यवश आज से पांच साल बाद भी रेलवेंट रहेगा.
ज़ी5 पर एक कॉमेडी फिल्म रिलीज़ हुई है. नाम है ‘हेलमेट’. बतौर लीड, ये अपारशक्त्ति खुराना की पहली फिल्म है. कुछ दिनों पहले फिल्म का ट्रेलर आया था. जिसे देखकर लग रहा था कि अपारशक्त्ति अपने भाई आयुष्मान की राह पर चल पड़े हैं. मतलब ‘हेलमेट’ का जो सब्जेक्ट है, ऐसे टॉपिक्स पर आयुष्मान बैक टू बैक फिल्में बना रहे थे. आज के रिव्यू में जानेंगे कि ‘हेलमेट’ में कितना दम है. ये अपनी अलग पहचान बना पाती है या आयुष्मान खुराना टाइप फिल्म के लेबल तले दब जाती है.
# Helmet की कहानी क्या है?
‘हमारे देश में कंडोम खरीदना एक राष्ट्रीय समस्या है’. ये डायलॉग अपारशक्त्ति का किरदार लकी फिल्म में एक जगह यूज़ करता है. जिसे सुनकर लगता है कि अगर पांच साल बाद भी कोई फिल्म बने जहां यही लाइन यूज़ हो, तो पुरानी नहीं लगेगी. हमें नकारात्मक या निराशावादी कहने से पहले आप खुद इमैजिन कर लीजिए. अभी भी स्कूलों में रिप्रोडक्शन वाले चैप्टर पर खीं-खीं मची रहती है. परिवार के साथ टीवी देख रहे हों और अचानक कंडोम का ऐड आ जाए, तो रिमोट टटोलने लगते हैं. ऐसे ही समाज में सेट है ये फिल्म.

मोबाईल का ट्रक समझकर चोरी करते हैं, लेकिन यहीं खेल हो जाता है.
तीन लड़के हैं. तीनों कड़के. ‘धड़कन’ के सुनील शेट्टी की तरह चल चलकर पांच से पचास करोड़ बनाने में यकीन नहीं रखते. न ही हीरा ठाकुर वाली बस चलानी है. इनको जल्दी अमीर बनना है. शॉर्टकट अपनाते हैं. मोबाईल से भरा ट्रक लूट लेते हैं. डिब्बे खोलने पर पता चलता है कि ट्रक में मोबाईल नहीं कंडोम थे. इतने सारे कंडोम्स हैं कि जला नहीं सकते. ऊपर से पैसा भी चाहिए. इसलिए तीनों कंडोम की होम डिलीवरी शुरू कर देते हैं. मुंह पर हेलमेट लगाकर कंडोम बेचते हैं. इसलिए कंपनी का नाम भी हेलमेट ही रख देते हैं. आगे इनके हेलमेट वाले सिर पर कैदी की टोपी लगती है या मुकुट, ये फिल्म देखकर पता चलेगा.