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जब SD बर्मन ने हॉस्पिटल बेड से हिंदी सिनेमा का सबसे महान एल्बम बना दिया

कहानी Guide के म्यूज़िक की, जब हसरत जयपुरी ने Dev Anand के किरदार को गाली दी और उन्हें फिल्म से निकाल दिया गया.

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'गाइड' के बनने से पहले फिल्म इंडस्ट्री का इसे लेकर नेगेटिव रवैया था.

राजू जेल से रिहा हुआ है. जेल के बड़े दरवाज़े को पीठ दिखाकर आगे बढ़ रहा है. सफेद शर्ट और अपने काले कोट में. चेहरे पर एक नवीन ऊर्जा लिए. कदम जानी-मानी राह पर बढ़ते हैं. तभी मन में विचार कौंधता है, “एक बार फिर से सोच ले राजू, वही शहर जो एक दिन तेरे नाम पर झुका हुआ था, आज कहीं तेरी हंसी ना उड़ाये”. राजू सोचता है कि इस शहर में उसके लिए बदनामी के सिवा कुछ भी नहीं है. इसी सोच के साथ राजू ‘रोड नॉट टेकन’ की तरफ कदम बढ़ा देता है. स्क्रीन पर अनजानपुर का साइन दिखता है. एस.डी. बर्मन के संगीत में पिरोये शैलेन्द्र के बोल सुनाई पड़ते हैं, ‘वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जाएगा कहां’. ये हिंदी सिनेमा की सबसे आइकॉनिक फिल्मों में से एक Guide का ओपनिंग सीन है. 

Dev Anand फिल्म के प्रोड्यूसर और एक्टर थे. वहीं Vijay Anand डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठे थे. दोनों भाइयों के विज़न ने मिलकर इस फिल्म को कल्ट क्लासिक बना दिया. तनुजा चतुर्वेदी ने अपनी किताब ‘हम दोनों’ में दोनों भाइयों की पार्टनरशिप पर बात की. कैसे उनकी जोड़ी ने वो फिल्में बनाई जिन्होंने हिंदी सिनेमा का रुख बदल दिया. किताब में ‘गाइड’ पर भी चैप्टर हैं. तनुजा ने ‘वहां कौन है तेरा’ गाने के उस हिस्से का ज़िक्र किया जो फिल्म में शामिल नहीं हो सका. वो बोल थे:                   

तूने तो सबको राह बताई,
तू अपनी मंज़िल क्यों भूला?
सुलझा के राजा औरों की उलझन,
क्यों कच्चे धागों में झूला?
क्यों कच्चे धागों में झूला?
क्यों नाचे सपेरा? 

जावेद अख्तर ने शैलेन्द्र की जन्म शताब्दी पर आयोजित एक इवेंट में कहा था कि अगर वो ‘क्यों नाचे सपेरा’ जैसे तीन शब्द अपने जीवन में लिख पाए, तो समझेंगे कि उनका निर्वाण हो गया. ये था शैलेन्द्र के शब्दों का जादू, वो शब्द जिनमें जीवन जीने का फलसफा था और जो सीधे आम इंसान से बात करते थे. ‘गाइड’ को आज बहुत सेलिब्रेट किया जाता है, लेकिन उसके बनने की कहानी भी किसी फिल्म से कम नहीं थी. देव आनंद फिल्म के दो वर्ज़न बनाना चाहते थे. अंग्रेज़ी और हिंदी में. ये बात जगत विदित है कि ‘गाइड’ इसी नाम से लिखे आर. के. नारायण के नॉवल पर बनी थी. 

देव ने इंग्लिश वाला वर्ज़न डायरेक्ट करने की ज़िम्मेदारी Tad Danielewski को दी. टैड के अलावा पूरा क्रू भारतीय था. सेट पर बहुत झगड़े हुआ करते थे. किसी तरह फिल्म बनकर पूरी हुई. यूनाइटेड नेशन्स में इसका प्रीमियर रखा गया. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने भी ‘गाइड’ देखने की इच्छा जताई. लेकिन कुछ समय बाद उनकी हत्या कर दी गई थी. अंग्रेज़ी वाली ‘गाइड’ किताब के बहुत करीब थी. ये वर्ज़न बुरी तरह पिटा, लेकिन फिर भी देव ने कंधे नहीं झुकाए. अभी भी वो हिंदी वर्ज़न बनाना चाहते थे. फिल्म इंडस्ट्री के दोस्तों के राय दी कि क्यों करियर का सत्यानाश करने पर तुले हो. बर्बाद हो जाओगे. देव ने किसी की नहीं सुनी. 

अब हिंदी वाली ‘गाइड’ बनाने की बारी थी. तय हुआ कि इंग्लिश वाले वर्ज़न से कुछ भी इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. नए सिरे से फिल्म बनेगी. भाई चेतन आनंद से बात की. वो फिल्म को डायरेक्ट करने का सोचते, इसलिए पहले उनके दफ्तर पर चिट्ठी आ पहुंची. उनको लद्दाख में शूट करने की परमिशन मिल गई थी. चेतन आनंद अपनी ड्रीम फिल्म ‘हकीकत’ बनाने लद्दाख चले गए. डायरेक्टर की तलाश फिर से शुरू हुई. राज खोसला से बात हुई. लेकिन वहीदा रहमान इससे खुश नहीं थी. साफ कह दिया कि अगर राज फिल्म बनाएंगे तो मैं ये फिल्म नहीं करूंगी. राज को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 
अंत में फिल्म की बागड़ोर संभाली गोल्डी ने. देव के भाई विजय आनंद का निकनेम गोल्डी था. विजय ने कुछ शर्तें रखीं. कि वो इंडियन सेंसीबिलिटी के हिसाब से फिल्म का नया स्क्रीनप्ले लिखेंगे. देव को सब कुछ मंज़ूर था. लगने लगा कि ‘गाइड’ ट्रैक पर आ रही है. तभी देव भाइयों को बुरी खबर मिली. उनके दादा यानी एस.डी. बर्मन को स्ट्रोक आया है. दादा फिल्म का म्यूज़िक करने वाले थे. डॉक्टर ने साफ कह दिया कि अगले कुछ महीने पूरी तरह बेड रेस्ट पर रहना पड़ेगा. दादा मन ही मन मान चुके थे कि वो ‘गाइड’ का म्यूज़िक नहीं बना पाएंगे. उन्होंने देव को घर पर बुलाया. कहा कि देव, मैं ‘गाइड’ नहीं कर पाऊंगा. तुम किसी और को ले लो. देव के लिए ये अकल्पनीय था. उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा,

दादा, सिर्फ आप ही ‘गाइड’ को कम्पोज़ करेंगे. मैं जितने चाहे उतने महीनों के लिए इंतज़ार करने को तैयार हूं. आप ठीक हो जाइए. बस मुझसे वादा कीजिए कि आप इंडियन सिनेमा का सबसे महान म्यूज़िक बनाएंगे. 

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‘गाइड’ के इंग्लिश वर्ज़न में देव आनंद और वहीदा रहमान.

नम आंखों के साथ दादा ने अपनी गर्दन हां में हिलाई. तनुजा की किताब में गोल्डी बताते हैं कि दादा ने हॉस्पिटल बेड से ही म्यूज़िक बनाना शुरू कर दिया. समय के साथ दादा बर्मन की तबियत सही हुई और उन्होंने ‘गाइड’ का पूरा एल्बम कम्पोज़ किया. हसरत जयपुरी ने फिल्म के गाने लिखे. रफी की आवाज़ में पहला गाना रिकॉर्ड किया गया. ये फिल्म में वो पॉइंट था जहां राजू (देव आनंद) को एहसास होता है कि वो सदा के लिए रोज़ी (वहीदा रहमान) का प्यार हो चुका है. इस गाने को लेकर गोल्डी के दिमाग में एक नज़्म थी,

‘ना तुम वो तुम रहे... ना हम वो हम रहे.... दो कदम चले नहीं कि रास्ते बदल गए.’

इसी की तर्ज़ पर हसरत जयपुरी ने गाना लिखा था. ये गाना रिकॉर्ड हुआ. हालांकि रिकॉर्डिंग के बाद गोल्डी को कुछ अजीब सा महसूस हुआ. उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था. वो पूरी रात सो नहीं सके. सुबह तक दिल में ये बेचैनी बनी रही. देव को अपनी समस्या बताई. आश्चर्य से उनके मन में भी कुछ ऐसी ही उथल-पुथल चल रही थी. दोनों गाने पर विचार करने लगे. म्यूज़िक सही था. रफी ने बहुत अच्छे से गाया भी. तो क्या लीरिक्स में दिक्कत थी? गोल्डी हसरत से मिलने पहुंचे. अपनी चिंता बताई. इस पर हसरत चिढ़ गए. वो गाना देव के किरदार राजू पर फिल्माया जाना था. हसरत ने उस किरदार को भद्दी गाली देते हुए कहा, 

‘ऐसे आदमी के लिए तुम मुझसे क्या उम्मीद करते हो?’ 

गोल्डी स्तब्ध थे. देव आनंद को ये कहानी सुनाई. उनका कहना था कि अगर हसरत का राजू को लेकर यही मानना है तो हमने अपनी फिल्म के लिए गलत आदमी को चुन लिया. हसरत फिल्म से अलग हो गए. उसके बाद People’s Poet शैलेन्द्र की एंट्री हुई. उन्होंने उस गाने पर काम किया और आज हम सभी उसे ‘दिन ढल जाए’ के टाइटल से जानते हैं. शैलेन्द्र के ‘गाइड’ के लिए लिखे गाने बम्पर हिट हुए. क्रिटिक्स, फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को गलत साबित करते हुए ‘गाइड’ हिंदी सिनेमा का मील का पत्थर बनी.                                       
 

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