The Lallantop

मूवी रिव्यू - गोविंदा नाम मेरा

'गोविंदा नाम मेरा' मुंबई शहर में बसने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और वहां अपने सपने लेकर आए लोगों को ट्रिब्यूट देती है.

Advertisement
post-main-image
'गोविंदा नाम मेरा' कॉमेडी और थ्रिलर, दोनों ही पक्षों पर कमज़ोर साबित होती है.

‘गोविंदा नाम मेरा’ डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो गई है. फिल्म को बनाया है शशांक खेतान ने. इससे पहले वो Humpty Sharma Ki Dulhania जैसी फिल्म भी बना चुके हैं. विकी कौशल, भूमि पेड़णेकर, कियारा आड़वाणी, अमेय वाघ, सयाजी शिंदे और रेणुका शहाणे जैसे एक्टर्स फिल्म का हिस्सा हैं. ‘गोविंदा नाम मेरा’ को एक कॉमेडी-थ्रिलर फिल्म बताया जा रहा था. मैंने फिल्म देखी और ये मेरे लिए काम नहीं कर पाई. अगर मुझे किसी दोस्त को वीकेंड पर देखने के लिए कोई फिल्म रिकमेंड करनी होती तो मैं ‘गोविंदा नाम मेरा’ का नाम नहीं लूँगा. ऐसा क्यों है, उन सभी पॉइंट्स पर बात करेंगे.

Advertisement

# ‘गोविंदा नाम मेरा, चोरी है काम मेरा’

गोविंदा वाघमारे एक डांसर है, फिल्मों में बतौर बैकग्राउंड डांसर काम करता है. काम भले ही कर रहा है लेकिन कुछ बड़ा नहीं कर पा रहा. ऊपर से घर पर अपनी पत्नी गौरी के साथ चिल्लम चिल्ली मची रहती है. सीधे स्पष्ट शब्दों में गौरी उसकी बिल्कुल भी इज़्ज़त नहीं करती. बीवी के साथ नहीं बनती लेकिन अपनी गर्लफ्रेंड सुकु के साथ उसके शादी के फुल प्लान हैं. शादीशुदा होते हुए अपनी गर्लफ्रेंड होने से उसे कोई दिक्कत नहीं. बस अपनी पत्नी के बॉयफ्रेंड बलदेव पर चिढ़ता है.

Advertisement
govinda vicky kaushal
विकी कौशल का किरदार गोविंदा हमेशा लाइफ से परेशान रहता है. 

खैर, पत्नी से तलाक नहीं ले पा रहा क्योंकि उसके लिए चाहिए उसे पैसा. दूसरी ओर अपना घर भी बचाना है, उसके लिए भी पैसा चाहिए. जावेद नाम के पुलिसवाले से बंदूक खरीदी थी, उसे भी पैसा चुकाना है. गोविंदा के पास किसी को लौटाने के लिए कुछ भी नहीं. पैसे का झोल चल रहा था कि अचानक से एक मर्डर हो जाता है. उस मर्डर केस के बीचों-बीच फंस जाता है गोविंदा. उससे कैसे बाहर आता है, क्या करता है, ये फिल्म की कहानी है.

# फिल्म के अंदर फिल्में हैं

फिल्म के टाइटल ‘गोविंदा नाम मेरा’ सुनते ही सबसे पहले गोविंदा की इमेज दिमाग में आती है. नाइंटीज़ वाले गोविंदा, नाचते-थिरकते. विकी कौशल का किरदार गोविंदा उन्हीं को ट्रिब्यूट देता है. नाम है गोविंदा और डांस करता है. और फिल्म सिर्फ गोविंदा को ही ट्रिब्यूट नहीं देती. बल्कि मुंबई शहर और उसमें बसने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी ट्रिब्यूट देती है. उन लोगों को ट्रिब्यूट देती है जो छोटे-छोटे शहरों से, खाली बोर दोपहरों से, अपना झोला उठाके मुंबई पहुंच गए. पैसा लगाने वाला प्रोड्यूसर देखते हैं जिसके पास क्रिएटिव सेंस नहीं.  

Advertisement
kiara advani
कियारा आड़वाणी को यहां सिर्फ ग्लैमर अपील बढ़ाने के लिए नहीं लिया गया.  

एक सीन है जहां गोविंदा टैक्सी में सफर कर रहा है. साथ ही उसका वकील और मां भी हैं. किसी बात पर बहस चल रही है. कि एक गाना मिलने वाला है कोरियोग्राफ करने के लिए. फिर खूब पैसा होगा. इतने में तपाक से टैक्सी ड्राइवर बोल पड़ता है कि सिंगर की ज़रूरत हो तो बताना. बिना किसी के कुछ कहे वो तुरंत अपना सिंगिंग ऑडिशन भी देने लगता है. ये पार्ट सीन की टोन बदल देता है. आपको हंसाता है पर साथ ही फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल करने आए लोगों का हाल भी दिखाता है. फिल्म में ऐसे कई रेफ्रेंस हैं जहां या तो उसने सिनेमा पर कमेंट्री की हो, या अपने एक्टर्स पर ही. एक जगह इंस्पेक्टर जावेद एक शख्स से पूछते हैं कि तू CID है क्या? CID में दया का किरदार निभाने वाले दयानंद शेट्टी ने ही यहां जावेद का रोल किया है. फिल्म में बताया गया कि गोविंदा के पिता एक्शन डायरेक्टर थे, और वो कोरियोग्राफर बनना चाहता है. एक सीन में वो कहता है,

मुझे एक्शन से डर लगता है, तभी तो डांसर बना. वरना अपने पप्पा की तरह फाइट मास्टर नहीं बन जाता.

ये सीन चल रहा है और आपको याद आता है कि विकी कौशल के पिता श्याम कौशल भी फाइट मास्टर रह चुके हैं. जब भी फिल्म ऐसी ट्रिब्यूट ड्रॉप करती है तो अच्छा लगता है. मगर दुर्भाग्यवश मेरे लिए ये रेफ्रेंस और ट्रिब्यूट ही उसके सबसे मज़बूत पक्ष रहे.  

# लाइट कॉमेडी जो हल्की निकली

‘गोविंदा नाम मेरा’ एक लाइट हार्टेड एंटरटेनर की तरह बनाई गई फिल्म है. ऐसी फिल्म जहां अगर इधर-उधर ध्यान चला जाए तो कोई अहम डीटेल मिस नहीं होगी. हालांकि फिल्म के साथ एक बड़ा मसला है. कि लाइट हार्टेड बनने की जगह ये कॉमेडी और थ्रिलर, दोनों ही पक्षों पर हल्की निकलती है. फर्स्ट हाफ में कुछ जगह सिचुएशनल कॉमेडी निकाली गई, पर उसके बाद सब लगभग फ्लैट चलता है.

कॉमेडी के बाद दूसरा पक्ष बचता है थ्रिलर वाला. मर्डर होने के बाद किसने किया, क्यों किया, गोविंदा कैसे बचेगा जैसे सवाल सेकंड हाफ को कैरी करते हैं. किरदार की कहानी में आने वाली अड़चनों से ही उसकी कहानी मज़ेदार बनती है. आपको जिज्ञासा रहती है जानने में कि अब क्या होने वाला है. फिल्म गोविंदा की लाइफ में आने वाली रुकावटों को बस उनके होने के लिए घुसा देती है. उन्हें आपस में ऐसे जोड़ा गया कि कॉम्प्लिकेट होने लगती हैं. आप धागों को सुलझाने लगते हैं लेकिन तब तक धैर्य जवाब दे देता है.

renuka shahane
रेणुका शहाणे का किरदार मेरे लिए हाइलाइट था.  

लिखाई के स्तर पर मज़बूत काम नहीं हुआ. रही बात एक्टिंग की तो यहां फिल्म शिकायत का मौका नहीं देती. गोविंदा बने विकी को देखना फन था. वो दुखी हो या मज़े मार रहा हो, वो अपने किरदार में रहते हैं. उनके बाद सबसे ज़्यादा स्क्रीन टाइम मिला कियारा आड़वाणी के किरदार सुकु को. जितनी ज़रूरत थीं, उतना वो डिलीवर कर पाती हैं. भूमि पेड़णेकर के किरदार गौरी को लगभग एक शेड में दिखाया गया, जिस कारण भूमि के लिए ज़्यादा स्कोप नहीं बचता. कास्ट में सरप्राइज़ रहीं रेणुका शहाणे. उन्होंने गोविंदा की मां का किरदार निभाया. जितने भी सीन में वो हैं, मेरा ध्यान उनकी छोटी-से-छोटी हरकतों के अलावा कहीं और नहीं गया.

‘गोविंदा नाम मेरा’ ऐसी फिल्म नहीं जो छूट जाए तो आप कुछ बड़ा मिस कर देंगे. फिल्म की कहानी के बीच आने वाले गाने भी उसे किसी भी तरह यादगार बनाने का काम नहीं करते.

मूवी रिव्यू : Doctor G

Advertisement