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फिल्म रिव्यू: मनमर्ज़ियां

तापसी पन्नू और विकी कौशल ने कहर ढा दिया है मितरों...

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नए ज़माने की लव स्टोरी जिसमें शर्मिंदा होने का रिवाज नहीं है.
इंडियन सिनेमा को लव स्टोरीज़ से तगड़ा लगाव रहा है. यही वजह है कि हर साल सिल्वर स्क्रीन पर लव स्टोरीज़ का ढेर लग जाता है. लेकिन कुछ ही होती हैं जो अलग से चमकती हैं. जो उतनी फ्रेश होती हैं जितनी कि 'मनमर्ज़ियां' है. अगर आप प्रेम का रियलिस्टिक, रॉ रूप देखने के ख्वाहिशमंद हैं तो ये फिल्म आपके लिए है.
जैसा कि टाइटल से ही ज़ाहिर है ये फिल्म मन की मर्ज़ी करने की ख्वाहिश का कलरफुल कैनवास है. इसमें सारे रंग मिलेंगे आपको. सब्ज़ भी, सुर्ख भी और ग्रे भी.
फिल्म का पोस्टर.
फिल्म का पोस्टर.

ये कहानी है प्यार में गले-गले तक डूबे विक्की और रूमी की. रूमी, जिसका नाम तेरहवीं सदी के महान फिलॉसफर के नाम पर है लेकिन जिसका कुछ भी उनसे नहीं मिलता. किसी सूफी के शांत स्वभाव से बिल्कुल उलट अपनी रूमी एग्रेशन से भरी हुई है. जो मन में आए करती है, कहती है. पक्की ढीठ है. गुस्सा आने पर खूब तीखे गोलगप्पे खाती है और किसी भी सवाल से मुंह चुराने की जगह उसका गिरेबान पकड़ने में विश्वास रखती है. ज़िंदगी में अगर किसी एक चीज़ को शिद्दत से चाहती है तो वो है विक्की.
विक्की, जो एक छोटे से शहर का डीजे है. छतें टापता, रूमी के बेडरूम में बिंदास घुसता विकी यूं तो भतेरा कूल है लेकिन कमिटमेंट से डरता है. शादी के नाम से ही घबराता है. सारी ज़िंदगी रूमी के साथ रहना चाहता है लेकिन उसका हाथ मांगने उसके घर जाने की हिम्मत नहीं है उसमें. रूमी के भयानक ज़ोर देने पर तैयार होता भी है तो ऐन वक़्त पर दगा दे जाता है. अपमानित महसूस करती रूमी इरादा कर लेती है कि जो भी रिश्ता आएगा उसे हां बोल देगी. रिश्ता आता भी है. रॉबी का.
अभिषेक बच्चन को इस फिल्म में देखना अच्छा लगता है.
अभिषेक बच्चन को इस फिल्म में देखना अच्छा लगता है.

रॉबी, जो विदेश से लौटा है और जिसे उसकी मां शादी के लिए लडकियां दिखा रही है. जो न तो खुद वर्जिन है न ही पत्नी के वर्जिन होने की ख्वाहिश रखता है. जिसे मेड या नर्स नहीं बल्कि लाइफ पार्टनर चाहिए. जो रूमी और विक्की की पूरी कहानी पता होने के बावजूद उससे शादी करना चाहता है. क्यों? क्योंकि उसे भी रूमी से प्यार हो गया है.
लव ट्रायंगल का ये बड़ा ही अजीब लेकिन बिलिवेबल सिनेरियो है. क्या रूमी 'धड़कन' की शिल्पा शेट्टी है जो अपने प्यार को भुलाकर पति की बनके रहती है? या रॉबी 'हम दिल दे चुके सनम' का अजय देवगन है जो अपनी बीवी को उसके प्रेमी के पास छोड़ आता है? या 'कभी अलविदा न कहना' की तरह आखिर में सब तनहा रह जाते हैं? या इनसे हटकर कोई और सलूशन निकलता है? ये फिल्म देखकर जानिएगा. हम तो बस इतना कह सकते हैं कि जो भी होगा, आपको अखरेगा नहीं.
फिल्म की कहानी और ट्रीटमेंट जानदार है ही. इसे और उम्दा लीड एक्टर्स की परफॉरमेंसेस बनाती है. तीनों अपनी-अपनी जगह कमाल हैं. ख़ास तौर से तापसी. एक एग्रेसिव पंजाबी लड़की रूमी को उन्होंने निभाया नहीं, जिया है. उनका एग्रेशन ज़बरदस्ती का नहीं लगता. अंदर से बहता हुआ आता है. रूमी है ही ऐसी. मुंहफट, ज़िद्दी, मैनीपुलेटिव. तापसी ये सब एफर्टलेसली लगती हैं. तापसी पन्नू के करियर का ये बिलाशक सबसे शानदार रोल है.
रूमी, जिसके खून में पंजाबियत दौड़ती है.
रूमी, जिसके खून में पंजाबियत दौड़ती है.

अगर तापसी शानदार हैं तो विकी कौशल कम्माल हैं. गैर-ज़िम्मेदार, लापरवाह, ज़िंदगी में क्या करना है इसके प्रति कतई क्लू लेस लड़का है विक्की. स्वैग से भरा है और रूमी पर दिलोजान से फ़िदा है. विकी कौशल के सिनेमाई सफर की वरायटी चकित करने वाली है. बनारस के ठेठ देसी लड़के से लेकर, 'संजू' के गुज्जू भाई कमलेश से होते हुए वो इस रॉ पंजाबी पुत्तर विक्की तक आ पहुंचे हैं. कमिटमेंट से घबराता लेकिन आशिकी में तबाह हो जाने का हौसला रखता विक्की उन्होंने भयानक सफाई से पेश किया है. उनके स्टाइल से, उनके अंदाज़ से दर्शकों को यकीनन प्यार हो जाएगा. कोई बड़ी बात नहीं कि इस फिल्म के बाद उनका हेयर-स्टाइल कॉपी होने लग जाए. इतना इम्पैक्ट है उनके किरदार का.
अभिषेक बच्चन का निभाया रॉबी रूमी और विक्की से ऐन उलट है. शांत, सौम्य और सब्र से भरा हुआ आदमी. जो प्यार में भी है और प्रैक्टिकल भी. अभिषेक के हिस्से जितना भी स्क्रीन स्पेस आया है उसे उन्होंने उम्दा अभिनय से चमकाकर रख दिया है. रॉबी ऐसा शख्स है जो प्यार में तो है लेकिन कुर्बानी देने का जिसका कोई इरादा नहीं है. दरअसल इस कहानी में कुर्बानी का कोई स्कोप है ही नहीं. चीज़ें स्ट्रेट करने के लिए कोई भले ही पीछे हट जाए लेकिन कोई महान बनने का ख्वाहिशमंद नहीं है. यही इस कहानी की सबसे बड़ी ताकत है. फिल्म यहीं स्कोर करती है.
विकी कौशल का हेयर स्टाइल हिट होने वाला है.
विकी कौशल का हेयर स्टाइल हिट होने वाला है.

फिल्म के डायलॉग्स फिल्म की जान है. कनिका ढिल्लों के लिखे संवाद कहीं पर आपको गुदगुदाते हैं तो कहीं अंदर तक उतरकर खलबली मचाते हैं. उन्हीं की लिखी स्क्रिप्ट भी लाजवाब है. और उसे उतनी ही कलात्मकता से परदे पर उतारा है अनुराग कश्यप ने. 'देव डी' के बाद एक बार फिर प्रेम की रपटीली राहों पर अनुराग ने कदम रखे हैं. और नतीजा उतना ही शानदार है. वो इश्क को रूमानियत की सपनीली दुनिया से खींच कर ले आते हैं और ग्राउंड रियलिटी की पथरीली ज़मीन पर ज़ोर से पटक देते हैं. अनुराग की ऐसी फ़िल्में देखकर लगता है कि उन्हें साल में एक लव स्टोरी ज़रूर ज़रूर बनानी चाहिए.
और आखिर में फिल्म के सबसे सशक्त, सबसे चमकदार पहलू की बात. म्यूजिक. कायदे से तो 'मनमर्ज़ियां' के अल्बम का एक अलग से रिव्यू होना चाहिए. अमित मिडास त्रिवेदी जिस चीज़ को छू लें, वो सोना बन जाती है. चाहे वो रैप नंबर हो, सैड सॉंग हो या सॉफ्ट रोमांटिक गीत. सब कुछ एफर्टलेसली होता रहता है. ये अद्भुत है. कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर सेक्रेड गेम्स के गायतोंडे के अनुसार सिर्फ त्रिवेदी ही बचेगा तो वो त्रिवेदी अमित त्रिवेदी होना चाहिए.
यही त्रिवेदी बचेगा सिर्फ.
यही त्रिवेदी बचेगा सिर्फ.

लगभग हर गीत बेहतरीन बन पड़ा है. ऐसा बहुत कम बार होता है कि बोल, संगीत और आवाज़ मिलकर कुछ ऐसा बन जाए कि आपके रोंगटे खड़े हो जाएं. इस म्यूजिक में वो बात यकीनन है. इसका क्रेडिट जितना अमित त्रिवेदी को जाता है उतना ही गीतकार शेली को भी. इस आदमी ने इतने शानदार लिरिक्स लिखे हैं कि आप चमत्कृत रह जाते हैं. 'सतलुज में समंदर नाचे, अप्रैल मई विच दिसंबर नाचे'. क्या ही अभिव्यक्ति है यार! या फिर वो गाना. 'साड़ी सच्ची मुहब्बत कच्ची रह गई'. जितना उम्दा लिखा गया उतनी ही उम्दा धुनें बनाई गईं. और उतना ही डूबकर गाया गया है. ख़ास तौर से हर्षदीप कौर और जाज़िम शर्मा अपनी गायकी में कोहिनूर की तरह चमकते हैं. कुल मिलाकर 'मनमर्ज़ियां' का अल्बम इस साल का सबसे शानदार अल्बम होने वाला है इसमें कोई शक नहीं.
फिल्म का दूसरा हाफ थोडा स्लो है. एडिटिंग थोड़ी सी और टाइट होनी चाहिए थी. दूसरे हाफ में थोडा सा मेलोड्रामा भी है जिससे बचा जा सकता था. बावजूद इन कमियों के 'मनमर्ज़ियां' मन मोह लेती है.
'मनमर्ज़ियां' मन की मर्ज़ी की महत्ता को रेखांकित करती है. ये अपने फैसलों पर शर्मिंदा न होने का पाठ पढ़ाती है. इस वीकेंड समय निकालकर ज़रूर देखिएगा. और समय न हो तो जबरन निकालिएगा.


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