
भारतीय सिनेमा की एक ऐतिहासिक फिल्म आई थी. 1975 में. शोले! ठाकुर साहब दो चोरों का सहारा लेते हैं. गब्बर की रीढ़ तोड़ने के लिए. सफल भी होते हैं. असैसिन्स क्रीड में भी ऐसा ही कुछ हुआ. कैलंम लिंच को ऐब्सटर्गो इंडस्ट्रीज़ ठीक उस वक़्त भगा ले जाती है जब उसकी मौत की सज़ा पर अमल किया जा रहा था. दो मिनट की देरी और बंट जाती कद्दू पूड़ी. सोफ़िया रिकिन (ऐब्सटर्गो के मालिक की बेटी और साइंटिस्ट) कहती है कि कैलम एक सीक्रेट सोसायटी का मेंबर हुआ करता था. वो भी पिछले जनम में. होते थे असैसिन. उनका काम था एक सेब को बचाना. वही सेब जो डॉक्टर को दूर रखता है. मगर ये वाला सेब कुछ स्पेशल था. इस सेब में इंसानी नस्ल के पहले पाप के बीज थे. ये सेब जिसके भी पास होता, वो इंसानों को काबू में रख सभी करप्ट चीज़ों को ख़त्म कर सकता था. और यही सें की जिम्मेदारी की रक्षा पिछले जन्म में कैलम के ऊपर डाल दी गयी थी.
कैलम को ऐब्सटर्गो वाले ले जाते हैं और उसको एक ऐसी मशीन के हवाले कर देते हैं जिससे उसकी पिछली जिंदगी को दोबारा सामने लाया जा सके. साथ ही रिकॉर्डिंग भी हो जाती थी. यानी कैलम के दिमाग में जो-जो चल रहा था, उसकी सबकी फिल्म बंटी जा रही थी. ऐसा समझो कि कोई टाइम मशीन में वीडियो कैमरा लेकर घुस गया हो. असल में ऐब्सटर्गो को भी वही सेब चाहिए था. कहावत बदलती नज़र आ रही थी. 'एक सेब सौ बीमार' टाइप कुछ लग रहा था.

सारी कहानी इतनी सी ही है. कैलम अपनी यादों में लड़ रहा था, खप रहा था. वो पिछले जन्म में सेब को बचा रहा था और ये सब कुछ सोफ़िया के पास रिकॉर्ड हो रहा था. मगर फिर कैलम को समझ में आ जाता है कि उसका किस तरह से फ़ायदा उठाया जा रहा है. और फिर होता है दंगल! एकदम गजब वाला. खूब मार-कुटाई होती है. और कहानी अपने अंत तक पहुंचती है.
गेम के उलट इस फ़िल्म में असली कहानी और पूरी कहानी दिखाई गयी है. माइकल फैसबैंडर कैलम बने हैं. फैसबैंडर को मैं अब तक सिर्फ मैग्नीटो के रूप में ही देख पाया हूं. इस फिल्म में भी पूरे वक़्त बस उनके मुकुट का इंतज़ार रहता है. फिल्म कुछ सीरियस बना दी गयी है. इतनी सीरियस की कहीं-कहीं बोरिंग लगने लगती है. बुद्धिजीवी वाला मामला ज़्यादा लगा दिया गया है. फ़िल्म में जो है, वो नहीं, उसके पीछे की बातों में व्याख्या ढूंढनी पड़ती है. जबकि मेरे हिसाब से कम से कम 'ऐसी फिल्मों' में ये बात नहीं होनी चाहिए. ये फ़िल्में एकदम कट-टू-कट हों, सब खुले में हो (सिवाय मिस्ट्री के) तो बेहतर रहता है. मार्वल इसीलिए दिन-दूनी-रात-चौगुनी तरक्की कर रहा है.

Marion Cotillard and Michael Fassbender
फ़िल्म आईमैक्स थ्री-डी में देखी. नॉर्मल देखी होती तो बेहतर होता. कोई थ्री-डी इफेक्ट नहीं है. ऐक्शन कुछ जगहों पर बहुत ख़ास है क्यूंकि हम पुराने ज़माने के सेटअप में तीर और खंजरों को हवा में उड़ता हुआ और लोगों को उससे बचता हुआ देखते हैं. वरना सब कुछ बहुत ही ऐवरेज है. इस गेम ने जो तूफ़ान मचाया था, उसका आधा भी ये फिल्म नहीं मचा पायी. या शायद मेरा हैंडीकैप ही यही हो कि मैंने गेम खेल रखा था इसलिए फ़िल्म थोड़ी सुस्त रही.
https://www.youtube.com/watch?v=4haJD6W136c