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फिल्म सेंसर बोर्ड की कानूनी मान्यता पर सवाल! 'होमबाउंड' और 'पंजाब 95' के बाद फिर उठा विवाद

CBFC के एक सदस्य ने बोर्ड के भीतर कई अनियमितताओं को उजागर किया है. उन्होंने बोर्ड की कानूनी मान्यता पर भी सवाल उठाए हैं. सदस्य ने यहां तक कहा है कि CBFC अपने अध्यक्ष की मर्जी से चल रहा है.

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CBFC की कार्यप्रणाली और कानूनी मान्यता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. (फाइल फोटो: CBFC/सोशल मीडिया)

विश्व स्तर पर चर्चित फिल्म ‘होमबाउंड’ (Homebound) को भारत ने ऑस्कर 2026 के लिए नॉमिनेट किया है. अमेरिकी फिल्म निर्माता मार्टिन स्कॉर्सेसे भी इससे जुड़े हैं. लेकिन इसको केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से पास कराने में इतनी मुश्किलें आईं कि शुरुआत में फिल्म के पोस्टर से स्कॉर्सेसी का नाम ही हटा दिया गया था. उनका नाम बाद में फिर से जोड़ा गया. फिल्म मे कई कट्स लगाने पड़े थे.

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ऐसे ही दिलजीत दोसांझ की, पंजाब के उग्रवाद के दिनों पर आधारित फिल्म 'पंजाब 95' तीन सालों से अधर में लटकी है. क्योंकि बोर्ड ने फिल्म में 100 अधिक कट्स लगाने को कहा है. लेकिन मेकर्स ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है.

ये केवल दो उदाहरण हैं, जिससे भारत की फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर सेंसरशिप को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं, खासकर CBFC की कार्यप्रणाली को लेकर. इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इस मामले को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसमें टॉप फिल्ममेकर्स और बोर्ड मेंबर्स के हवाले से लिखा गया है कि फिल्म बिरादरी के भीतर और CBFC के अंदर भी मतभेद की स्थिति बन गई है और सेंसरशिप को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं. कई लोग इसको ‘वन-मैन शो’ कहने लगे हैं, जो एक ‘सुपर सेंसरशिप राज’ में बदल गया है. रिपोर्ट में कई दूसरी समस्याओं के बारे में भी बताया गया है,

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  • ‘सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स, 2024’ के तहत, बोर्ड को हर तीन महीने पर एक बार बैठक करनी चाहिए. लेकिन 12 सदस्यीय बोर्ड ने आखिरी बार 31 अगस्त, 2019 को बैठक की थी.
  • CBFC की आखिरी वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 की है. नियमों के अनुसार, बोर्ड को हर साल अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होती है और इसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में प्रस्तुत करना होता है.
  • बोर्ड को आखिरी बार 1 अगस्त, 2017 को पुनर्गठित किया गया था. इसका गठन तीन साल के लिए या जब तक आगे आदेश न हो, या जो भी पहले हो… इसके आधार पर किया गया. 2020 में निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद, बोर्ड के कार्यकाल का नवीनीकरण नहीं हुआ है, जिससे वर्तमान बोर्ड की कानूनी स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं.

2015 में नियुक्त एक सदस्य ने अखबार को बताया कि उन्हें इस बात पर भी स्पष्टता नहीं है कि वो अब भी बोर्ड के सदस्य हैं या बोर्ड कानूनी रूप से काम कर रहा है. उन्होंने कहा,

हमारा कार्यकाल समयबद्ध (टाइम-बाउंड) (तीन साल) है, लेकिन 2017 के बाद से किसी की भी आधिकारिक तौर पर पुनर्नियुक्ति नहीं हुई है. यहां तक कि मेरे पहचान पत्र की वैधता समाप्त होने के बाद उसे बदला भी नहीं गया. कोई (बोर्ड) बैठक नहीं होती, कोई वार्षिक रिपोर्ट नहीं होती, हममें से ज्यादातर लोगों के लिए कोई काम नहीं होता, कोई अपीलीय प्राधिकरण (फिल्म निर्माताओं के लिए) नहीं होता... CBFC अपने अध्यक्ष की मर्जी से चल रहा है.

ये भी पढ़ें: 'होमबाउंड' चुनी गई 2026 के ऑस्कर में भारत की ऑफिशियल एंट्री

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इन अनियमितताओं के बारे में पूछे जाने पर, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रवक्ता ने अखबार को बताया, 

बोर्ड सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स, 1983 और 2024 के अनुसार काम कर रहा है. CBFC हर साल मंत्रालय को अपनी वार्षिक रिपोर्ट देता है, जिसे बाद में मंत्रालय की समेकित वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया जाता है.

CBFC द्वारा अगस्त 2019 से अनिवार्य तिमाही बोर्ड बैठकें आयोजित नहीं करने पर, सूचना एवं प्रसारण प्रवक्ता ने कहा,

CBFC के ऑनलाइन सर्टिफिकेशन सिस्टम, ई-सिनेमाप्रमाण को 1 अप्रैल, 2017 को लॉन्च किया गया था. वो सुचारू रूप से चल रहा है, जो पारदर्शिता और व्यापार के लिए ऑनलाइन सर्टिफिकेशन और भुगतान के लिए पूरी तरह से सक्षम है.

CBFC की अनियमितताओं और फैसलों से फिल्म निर्माताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है. फिल्म बिरादरी ने चिंता जताई है कि यदि ऐसी स्थिति बनी रहती है तो इससे इंडस्ट्री की वैश्विक छवि को और अधिक नुकसान पहुंचेगा.

वीडियो: ऑस्कर 2026 की रेस में शामिल हुई 'होमबाउंड', नीरज घायवान की फिल्म को मिली ऑफिशियल एंट्री

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