
शेरलॉक होम्स का पता.
बनेश फेणे उर्फ़ फास्टर फेणे के गांव 'फुरसुंगी' लोग ख़ासतौर से उसका घर ढूंढते हुए जाते थे.
फुरसुंगी पुणे के पास एक छोटा सा कस्बा है. सेवंटीज़ के महाराष्ट्र में फास्टर फेणे की लोकप्रियता का आलम ही अलग था. कहने को ये बाल साहित्य था लेकिन इसको पसंद करनेवालों में बड़ों की भरमार थी. किसी ज़माने में फास्टर फेणे को इंडिया का टिनटिन बोला जाता था. अब इस पर फिल्म आ गई है, जिसने धूम मचा रखी है.

बहुत ज़्यादा पॉपुलर रही थी ये सीरीज़.
क्या है कहानी?
बनेश फेणे उर्फ़ फास्टर फेणे के मुकद्दर में ही लिखा है पंगे को आमंत्रित करना. वो जहां भी जाता है, कोई न कोई बवाल उसके गले आ पड़ता है. इस बार भी वो एक ऐसे सुसाइड केस में जा उलझा है, जो सुसाइड से ज़्यादा कुछ प्रतीत होता है. नर्मदिल लेकिन ज़िद्दी बनेश केस की तह तक जाने का इरादा कर लेता है. क्योंकि आदत से मजबूर है. सवालों के जवाब हासिल करने का जो चस्का उसे लगा है, वो उसे खामोश बैठने ही नहीं देता. एक किशोर बड़े-बड़े लोगों से जा उलझता है और केस सॉल्व करके ही दम लेता है.
अमेय वाघ मुख्य भूमिका में हैं.
किसने लिखी है मूलरूप से?
इस सीरीज के लेखक भा. रा. भागवत मराठी साहित्य का बड़ा नाम है. भास्कर रामचंद्र भागवत. बाल-साहित्य में उन्होंने ज़बरदस्त काम किया है. जासूसी साहित्य के साथ-साथ विज्ञान कथाओं की दुनिया को भी समृद्ध किया. 2001 में उनकी मौत हो गई. अब उनके जाने के 16 साल बाद उनके सबसे चहेते किरदार पर फिल्म आई है. फिल्म में उनके नाम का किरदार भी है. वेटरन एक्टर दिलीप प्रभावळकर ने उनका रोल किया है.
किसने बनाई फिल्म?
हिंदी सिनेमा में आंशिक सफल अभिनेता रितेश देशमुख मराठी सिनेमा के लिए बेहतरीन काम कर रहे हैं. कई अच्छी फिल्मों के निर्माण में उनका और उनकी पत्नी जेनेलिया का हाथ है. इस फिल्म को भी उन्होंने ही बनाया है. डायरेक्टर हैं आदित्य सरपोतदार जिन्होंने 'नारबाची वाडी' और 'क्लासमेट्स' जैसी शानदार फ़िल्में बनाई हैं.कौन-कौन है फिल्म में?
फास्टर फेणे का रोल अमेय वाघ निभा रहे हैं. वो तो शानदार हैं ही, लेकिन मराठी सिनेमा के दो अद्भुत अदाकारों पर ख़ास नज़र रहेगी. तजुर्बेकार एक्टर दिलीप प्रभावळकर ने दर्जनों बार साबित किया है कि अभिनय उनकी नस-नस में भिना हुआ है. गिरीश कुलकर्णी नई पौध का वो नुमाइंदा है, जो किसी भी पिच पर सेंचुरी मारने में सिद्धहस्त हो गया है. इन दोनों को एक ही फिल्म में देखना ज़बरदस्त अनुभव रहेगा.ट्रेलर जब्बर है बॉस!
ये भी पढ़ें:
क्या दलित महिला के साथ हमबिस्तर होते वक़्त छुआछूत छुट्टी पर चला जाता है?
जोगवा: वो मराठी फिल्म जो विचलित भी करती है और हिम्मत भी देती है
महाराष्ट्र की लोककला ‘तमाशा’, जिसे अगर बच्चे देखने की ज़िद करें तो मांएं कूट देती थीं