The Lallantop

फ़िल्म रिव्यूः भोंसले

मनोज बाजपेयी की ये अवॉर्ड विनिंग फिल्म कैसी है? और कहां देख सकते हैं?

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भोंसले और बग़ैर कुछ उद्घाटित किए किसी को देखती उसकी नज़रें. समंदर की तरह. (फोटोः सोनी लिव)

फ़िल्म: भोंसले । डायरेक्टर: देवाशीष मखीजा । कलाकार: मनोज बाजपेयी, इप्शिता चक्रवर्ती सिंह, संतोष जुवेकर और विराट वैभव । अवधि: 1 घंटा 58 मिनट । प्लेटफॉर्मः सोनी लिव

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ये कहानी मुंबई की एक चॉल से शुरू होती है. इसमें रहते हैं गणपतराव भोंसले. एक बुजुर्ग पुलिस कॉन्सटेबल जो अब रिटायर हो चुके हैं. पूरी जिंदगी ड्यूटी की. इस शहर का शोर, शून्य, इसकी निरर्थकता को देखते हुए. इसलिए हमेशा चुप रहते हैं. अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं. कोई समाज या परिवार नहीं है. उनके बगल वाले कमरे में एक नॉर्थ इंडियन लड़की सीता आकर रहने लगती है, अपने छोटे भाई लालू के साथ. खत्म होते जा रहे जीवन में भोंसले का कैसे इनसे अपनेपन का एक धागा जुड़ता है. और कैसे भोंसले इनके प्रति अपनी ड्यूटी पूरी करते हैं, ये फ़िल्म में आगे दिखता है.
Manoj Bajpayee Ipshita Chakraborty Singh Virat Vaibhav In Bhonsle Movie The Lallantop Review
भोंसले. ड्यूटी / घर. सीता और लालू की देखभाल. (फोटोः सोनी लिव)

'भोंसले' को डायरेक्ट किया है देवाशीष मखीजा ने. चार साल पहले उन्होंने 11 मिनट की एक शॉर्ट फिल्म बनाई थी - 'तांडव'. 'भोंसले' उसी का विस्तार कही जा सकती है, या 'तांडव' का पार्ट 2 कही जा सकती है. 'तांडव' में वो एलीमेंट भी हैं जो हमें 'भोंसले' में दिखाई देते हैं और 'भोंसले' की बैकस्टोरी का अंदाजा भी. कैसे उसका एक परिवार था, एक बेटी थी. कैसे वो एक नॉन-करप्ट आदमी था इस वजह से साथी पुलिसवाले उससे परेशान होते थे. ड्यूटी के दौरान शहर के शोर और लाइफ के कोलाहल के उसके दिमाग पर पड़ने वाले असर को भी देख सकते हैं.
'भोंसले' में पोलिटिकल एलीमेंट मराठी मानूस का मसला उठा रहे होते हैं, वहीं 'तांडव' में वे हिंदुस्तान को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कर रहे होते हैं. दोनों फिल्मों में बस मेन कैरेक्टर के नाम का फर्क है, 'तांडव' में उसका नाम तांबे था, और अब आई फीचर फिल्म में गणपतराव भोंसले.
Manoj Bajpayee In Tandav Directed By Devashish Makhija Short Film
'तांडव' का तांबे. गणपत भोंसले का प्रीक्वल.

'तांडव' का सार वॉल्टेयर का ये कथन था कि आदमी हर उस पल में आज़ाद है, जिसमें वो होना चाहता है.
एक्टर्स की बात करें तो मनोज बाजपेयी ने फ़िल्म में गणपत भोंसले का रोल किया है. उनका खामोश प्रदर्शन अचूक है. 'शूल' और 'गली गुलियां' से लेकर भोंसले तक उनका फेस स्ट्रक्चर साइलेंट कैरेक्टर्स को प्ले करने में अतिरिक्त मदद करता है. पात्र अंदर से कैसे घुट रहा है, उसका दिमाग तनाव से फट रहा है, ये सिर्फ चेहरा देखकर पता चलता है. इप्शिता चक्रवर्ती सिंह ने सीता का रोल किया है. ये किरदार एक किस्म की उर्वरकता और सृजनात्मकता से भरा है. ठीक भोंसले के उलट जो बंजर ज़मीन जैसा है, जिसमें कुछ उगता दिखता नहीं. लालू का रोल विराट वैभव नाम के यंग एक्टर ने किया है. चॉल में मराठी मानूस के नाम पर लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते टैक्सी ड्राइवर विलास का रोल संतोष जुवेकर ने किया है.
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इन ऑर्डर ऑफ डिसअपीयरेंस. द इक्वलाइज़र. अज्जी.

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Video: ‘भोंसले’ का रिव्यू यहां देखें

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