इस लिस्ट में हैः - क्योंकि 2017 की ये बेहद उत्कृष्ट बाल फिल्म है. और बाल फिल्मों का बनना ही किसी समाज के सिनेमा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. साल की बेस्ट फिल्मों की सूचियां ऐसा नहीं सोचती लेकिन उन्हें सोचना चाहिए, हम दर्शकों को भी. - क्योंकि बड़ों को भी बच्चों की ये दुनिया उतनी ही विस्मयकारी लगेगी होगी जितनी किसी दूजी बड़ी-वयस्क मूवी की दुनिया उन्हें लग सकती है. - क्योंकि ये बहुत हल्की, शांत, प्यारी और आनंद देने वाली फिल्म है. एंटरटेनमेंट, सूचनाओं और सोशल मीडिया की बौधार से अशांत और विषाक्त हो चुके ब्रेन को detox यानी निर्विषीकृत कर देगी.#1. उबुंटू
मराठी भाषा वाली फिल्म. 'उबुंटू' अफ्रीकी शब्द है जिसका अर्थ होता है - मानवता या दूसरों के प्रति प्रेम-परोपकार की भावना.

शिक्षक के रोल में सांरग. इस फिल्म को डायरेक्ट किया है पुष्कर श्रोत्री ने.
कहानी हैः महाराष्ट्र के एक गांव के स्कूल की जहां के बच्चे बहुत चंचल और लाइफ से भरे हैं. बहुत बदमाशियां करते हैं, इससे गांववाले चिढ़ते हैं. लेकिन उनका शिक्षक (सारंग साठ्ये) उनके इस विकास में अवरोध नहीं बनता. वो उन्हें प्रोत्साहित करता है, उन्हें कोमलता से ट्रीट करता है. उन्हें पाठ्यक्रम के साथ व्यावहारिक चीजों के बारे में भी सिखाता है. दिक्कत तब हो जाती है जब बच्चों की उपस्थिति पूरी न होने की वजह से स्कूल को बंद करने का अल्टीमेटम दे दिया जाता है. अब अगर स्कूल चालू रखनी है तो बच्चों को उपस्थिति पूरी करनी है और जो बच्चे नहीं आ रहे उन्हें स्कूल लाना है. वो इस काम में जुटते हैं और उनके प्रयास हैरान करते हैं.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि 2017 में साउथ की उन विरली फिल्मों में 'अरम' शायद सबसे ऊपर है जिनमें कोई हीरो नहीं है और लीड कैरेक्टर किसी ऐसी महिला का है जो मजबूत, आत्मनिर्भर, कुशल और निर्भीक है. - क्योंकि जिन ग्लैमरस नयनतारा के नाम से कमर्शियल तमिल फिल्मों का बॉक्स ऑफिस चलता है, वो यहां एक जिला कलेक्टर के गंभीर रोल में नजर आती हैं और पूरी फिल्म में उन्होंने मुश्किल से दो ही अलग-अलग साड़ियां पहनी हैं. - क्योंकि गांवों में पानी की किल्लत के विषय पर ये फिल्म बहुत ईमानदारी और मजबूत तरीके से बात करती है. देखते हुए खुशी होती है कि जिस रियल इश्यू से देश के हज़ारों गांव दुखी हैं उसे हम समझदार तरीके से इस ग्रिपिंग फिल्म में देख पा रहे हैं.#2. अरम
तमिल भाषा. 'अरम' का हिंदी अर्थ होता है - अच्छे कर्म या भला काम.

डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के रोल में नयनतारा. गोपी नैनर ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है.
कहानी हैः मधिवदनी (नयनतारा) की जो एक आईएएस ऑफिसर है. तमिलनाडु के उस ग्रामीण इलाके में वो तैनात है जहां पानी की रोंगटे खड़े करने वाली किल्लत है. यहां खड़े होकर दिखाई देता है कि विकास के दावे कितने खोखले हैं. अंतरिक्ष में रॉकेट छोड़े जा रहे हैं लेकिन उसके पास ही में गांव हैं जो पीने के पानी को तरस रहे हैं. वो तरस रहे हैं बूंद-बूंद को और मल्टीनेशनल कंपनियां जमीन के नीचे से पानी निकालकर बोतलों में बंद करके अरबों कमा रही हैं. मधिवदनी एक ईमानदार और निर्भीक जिला कलेक्टर है और खुद को बड़े अधिकारियों व राजनेताओं से ज्यादा जनता का साथी मानती है. एक दिन गांव में एक बच्ची खो जाती है और उसके लिए बड़ा बचाव अभियान चलता है. ये समय मधिवदनी के फौलाद की कड़ी परीक्षा लेता है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि ये साल की सबसे फनी, ठहाकों से भरपूर स्वादिष्ट फिल्मों में से एक है. - क्योंकि इसमें ग्रामीण जीवन का ब्यौरों से भरा आनंददायक रूप से बांध देने वाला प्रस्तुतिकरण मस्ट वॉच है. इसे देखते हुए कन्नड़ फिल्म 'तिथि' याद आती है.#3. ओरु किडायिन करुनय मनु
तमिल भाषी फिल्म. इसके टाइटल का मतलब है - 'एक बकरी की दया याचिका'.

फिल्म का एक दृश्य. इसे डायरेक्ट किया है सुरेश संगैया ने.
कहानी हैः विरुद्धनगर गांव के लोगों की जो करीब करीब सारे ही मुनियांदीसामी भगवान के मंदिर जा रहे हैं. उनके लिए ये बड़ा जलसा है. इन भगवान के प्रसाद के लिए बकरे चढ़ाए जाते हैं. राममूर्ति (विधार्थ) और सीता (रवीना रवि) की नई-नई शादी हुई है तो उनका परिवार भी मंदिर की जर्नी पर निकला है. अब आगे की कहानी इस एनिमेटेड, पागलपन, फन, गप्पों, हादसों और थ्रिल भरी जर्नी के बारे में है. ये पूरी कहानी एक बकरी (या बकरा) की नजर से दिखाई जाती है जिसकी बलि चढ़ाई जानी है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की ये कहानी हमें हिला जाती है. - क्योंकि 2017 का साल विश्व स्तर पर महिलाओं के मुखर होकर यौन उत्पीड़न का विरोध करने के लिए जाना गया और भारत में इसे डिसकस करने वाली चंद फिल्मों में एक ये थी.#4. द साइलेंस
मराठी भाषा. इस शीर्ष का हिंदी मतलब होता है - चुप्पी या मौन.

अपने किरदारों में रघुबीर यादव, नागराज मंजुले और वेदश्री. डायरेक्टर हैं गजेंद्र अहीरे.
कहानी हैः चिनी (वेदश्री) की जो अपने खूब दुलार करने वाले पिता (रघुबीर यादव) के साथ कोंकण में रहती है. पिता बच्चों के खाने वाले टेस्टी-मीठे बुढ़िया के बाल बेचता है. इन बेहद कम संसाधनों से युक्त जिंदगी बहुत खुशहाल होती है. वो अपने मामा (नागराज मंजुले) और मामी (अंजलि पाटिल) के पास भी जाया करती है. कहानी में तीन फीमेल कैरेक्टर्स हैं जो पुरुषों के हाथों तरह-तरह के उत्पीड़न झेलती हैं. लेकिन इनमें सबसे शॉकिंग चिनी के साथ होता है जो कल्पना से भी परे है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि इसकी मासूमियत मन मोह ले जाती है. ये ऐसा एक्सपीरियंस है जो मिस नहीं करना चाहिए. - क्योंकि हंसी-हंसी में ये हमारे सौंदर्यबोध और भौतिक जीवन की हमारी धारणाओं पर ज़रूरी कमेंट करके चली जाती है. - क्योंकि इस में अंडे जैसे सिर वाले आदमी का लीड रोल जिसने किया है वो ही इस फिल्म का डायरेक्टर भी है. उनकी रियलिस्टिक एक्टिंग को देखना आश्चर्य भरा है.#5. ओंदू मोट्टेया कथे
कन्नड़ भाषा की फिल्म. इसके नाम का मतलब कुछ यूं होता है - अंडे जैसे सिर/मुंह वाले आदमी की कथा.

लीड रोल में राज शेट्टी जो फिल्म के डायरेक्टर भी हैं.
कहानी हैः जनार्दन (राज बी. शेट्टी) की जो मैंगलोर से हैं. वो कन्नड़ भाषा के लेक्चरर हैं और उनका मानना है कि जो कोई अपनी मातृ भाषा (कन्नड़) में पास नहीं हो सकता, उसके दूसरी भाषाओं में पास होने का अर्थ ही क्या है? अब बात ये है कि वो 28 साल के हो गए हैं लेकिन उनके जीवन में कोई स्त्री नहीं है. शादी हो नहीं पा रही. क्योंकि उनके सिर के बाल झड़ गए हैं. ज्योतिष से उन्हें बताया जाता है कि 29 को क्रॉस करने तक शादी नहीं की तो वो वैरागी भी हो सकते हैं. भविष्य बचाने के लिए वो कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाली लेक्चरर को रिझाने की कोशिश करते हैं. कॉलेज का पीयून उन्हें टिप्स देता है. कहानी आगे और चलती है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि फिल्ममेकिंग के सब प्रमुख विभागों के लिहाज से ये एक उत्कृष्ट फिल्म है. और वो भी तब जब इसके डायरेक्टर-राइटर अरुण प्रभु पुरुषोत्तमन की ये पहली फिल्म है और गहरी छाप छोड़ने वाली इसकी लीड एक्टर अदिति बालन की भी ये पहली फिल्म है. - क्योंकि इस कहानी का नेतृत्व 24-25 साल की स्वतंत्र विचारों और अदम्य हौसले वाली ऐसी लड़की करती है जैसी साउथ के सिनेमा में ढूंढे से नहीं मिलती. उसे इंडियन सिनेमा की मजबूत महिला किरदारों में भी रख सकते हैं. - क्योंकि ये फिल्म महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा और दुर्व्यवहार के विषय़ पर बात करती है जो आज के समय में बहुत रेलेवेंट है.#6. अरुवि
तमिल भाषा की फिल्म. अरुवि का अर्थ होता है - झरने की तरह (गिरना और बहना).

फिल्म के दृश्य में अदिति बालन अपने किरदार में.
कहानी हैः अरुवि (अदिति बालन) नाम की युवती की जिसे पुलिस ने आतंकवाद के आरोपों में हिरासत में ले लिया है और पूछताछ कर रही है. इस बातचीत के दौरान और अरुवि के परिचितों के वर्जन से उसका अतीत टुकड़ों-टुकड़ों में सामने आता है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि इसे इससे बाहर नहीं रखा जा सकता था. - क्योंकि सिनेमा जैसे, एंटरटेनमेंट के जनतांत्रिक और सहज-सरल, माध्यम के जरिए 'कासव' हमें जीवन की अर्थपूर्णता और नैराश्य के जानलेवा प्रश्नों के वो सरल उत्तर दे जाती है जिन्हें पाने के लिए लोग जटिल धर्मगुरुओं, दार्शनिकों और मनोचिकित्सकों के पास जाते हैं. - क्योंकि ये उन all time must watch फिल्मों में जुड़ जाती है जिन्हें हम मुश्किल वक्त में शांति पाने के लिए बार-बार देख सकते हैं. क्योंकि ये उन संवेदनशील फिल्मों में है जिसे हमें अपने बच्चों, विद्यालयों, परिवार के लोगों और समुदायों को अनिवार्य रूप से दिखाना चाहिए.#7. कासव
मराठी भाषा की फिल्म. शीर्षक का अर्थ है - कछुआ.

एक दृश्य में आलोक और इरावती. इस फिल्म को डायरेक्ट किया है सुमित्रा भावे और सुनील सुक्थंकर ने.
कहानी हैः जानकी (इरावती हर्षे) की जिसे एक दिन सड़क के किनारे एक युवक मानव (आलोक राजवाडे) बेहोश मिलता है. वो उसे अपने गोवा स्थित घर पर लाती है और डॉक्टर से उसका इलाज करवाती है. वो होश में आ जाता है लेकिन कुछ भी बोलता नहीं है और गुमसुम रहता है. वो दरअसल जीवन से जुड़े सवालों की उधेड़-बुन में लगा है. इसीलिए उसने जान देने की कोशिश भी की थी. अब आगे की कहानी इसी बारे में है कि क्या मानव, और जानकी को भी अपने-अपने जवाब मिलते हैं और क्या वे जीवन जीने की शाश्वत फिलॉसफी खोज पाते हैं? कहानी में दत्ताभाऊ (मोहन अगाशे) का किरदार भी है जो जानकी के दोस्त हैं और समुद्री कछुओं के संरक्षण वाले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. कछुआ, जिसका जीवन जीने का तरीका अपने आप में एक अत्यंत उपयोगी दर्शन है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि ये फिल्म उन सब गृहिणियों को एक प्रभावी ट्रिब्यूट है जिन्हें बिना श्रेय, सत्कार, आज़ादी और बराबरी के अपनी पूरी जिंदगी घर के मर्दों की सेवा में बितानी पड़ती है. पीढ़ी दर पीढ़ी. - क्योंकि ये वो फिल्म है जो आपको सब काम छोड़कर अपनी मां को दिखानी चाहिए. - क्योंकि ये साउथ के सिनेमा इतिहास की चंद फेमिनिस्ट फिल्मों में से एक है और आनंदित कर देने वाली है.#8. मगलिर मट्टुम
तमिल फिल्म. इस शीर्षक का अर्थ है - केवल महिलाएं या लेडीज़ ओनली.

ब्रह्मा द्वारा निर्देशित इस फिल्म के दृश्य में उर्वशी, ज्योतिका, भानुप्रिया और सरन्या.
कहानी हैः प्रभावती (ज्योतिका) एक डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर है. एक फिल्म बनाने के दौरान वो देखती है कि औरतें बिना श्रेय वाले गृहिणियों के घरेलू रोल में सदियों से कैसे कैद कर दी गई हैं. वो प्रगतिशील महिला है. वो एक प्लान बनाती है. अपनी होने वाली सास गोमाथा (उर्वशी) से दोस्ती कर चुकी है. उनके साथ पहले रहने लगी है. सास को अपनी स्कूल की सहेलियों सुब्बूलक्ष्मी (सरन्या पोनवनन) और रानी (भानुप्रिया) की बहुत याद आती है. प्रभा उन्हें ढूंढ़ निकालती है और तीनों को साथ लेकर तीन दिन की रोड ट्रिप पर जाती है जहां वे पूरी तरह आज़ाद हो सकती हैं, सिर्फ अपने बारे में सोच सकती हैं और जो मन में आए कर सकती हैं.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि सिर्फ 2017 में ही नहीं बल्कि लंबे समय में नदियों के संरक्षण जैसे आपातकालीन महत्व के विषय को सिर्फ इसी फिल्म ने ऐसी ईमानदारी और बेहतरी से बड़े परदे पर ला खड़ा किया. - क्योंकि बीते साल जब अमर चित्र कथा जैसी एक फिल्म देखने के लिए लोग 2 हजार करोड़ रुपए की टिकटें खरीद रहे थे, तब ये फिल्म बिना मुनाफे की चाह के हमारे बच्चों के भविष्य में आने वाले भीषण संकटों के प्रति आगाह कर रही थी. - क्योंकि ये उसी डायरेक्टर के, 14 साल के इंतजार बाद आई दूसरी फिल्म है जिसने जब डेब्यू फिल्म बनाई थी तो भारत की एंट्री के तौर पर ऑस्कर्स में गई थी और छठे नंबर पर रही थी. वो फिल्म थी 'श्वास' और वो डायरेक्टर हैं संदीप सांवत.#9. नदी वाहते
मराठी भाषा की फिल्म. शीर्षक का अर्थ होता है - 'नदी बहती है.'

फिल्म में ग्रे शेड्स वाले लोकल राजनेता अप्पा का रोल कर रहे जयंत गाडेकर.
कहानी हैः अंती नाम की एक नदी की जो कई सारे गांवों के बीच से बहती है और वहां के लोगों के जिंदा रहने का साधन है. जैसे कोंकण के एक गांव के लोगों के लिए. लेकिन फिर किसी प्रोजेक्ट के लिए नदी के पास की ज़मीनें खऱीदने की साजिश होती है. ये बात गांव के उन जागरूक लोगों को पता चल जाती है जो मुनाफे और शहरी चमक-धमक से परे अंती नदी और प्रकृति के संरक्षण का महत्व समझते हैं. वे जानते हैं कि लाखों लोगों को जीवन देने वाली इस नदी से छेड़छाड़ सिर्फ चंद लोगों के मुनाफे के लिए नहीं होनी चाहिए. अब आगे ये दिखता है कि गांव के लोग क्या आपस में रज़ामंद होते हैं और उनकी लड़ाई किस जीत या हर पर खत्म होती है.
इस लिस्ट में हैः - क्योंकि विलक्षण करने वाली जो बातें बीते साल इस फिल्म में थीं, किसी दूसरी में न थी. इसकी एनर्जी, आइडियाज़ और एंटरटेनमेंट ने इसे दूसरी फिल्मों से अलग किया. - क्योंकि न सिर्फ फिल्ममेकिंग के स्टूडेंट्स और वर्ल्ड सिनेमा पसंद करने वालों को 'अंगमालि...' बेजां जबरदस्त लगेगी बल्कि बेसिक दर्शक भी इसे बहुत एंजॉय करेंगे. - क्योंकि इस फिल्म में 86 नए एक्टर्स ने काम किया है, और सैकड़ों आम लोग हैं जिनका इस्तेमाल अनाम किरदारों की तरह किया गया है. फिल्म में करीब 11 मिनट का क्लाइमैक्स सीन है जिसे सिनेमैटिकली भारतीय सिनेमा के ऑलटाइम बेस्ट दृश्यों में गिना जा सकता है जिसे सिंगल टेक में शूट किया गया है.10. अंगमालि डायरीज़
मलयालम भाषा की फिल्म. इसका अर्थ है - अंगमालि (गांव) की डायरी

विंसेंट पेपे के रोल में एंथनी वर्गीस. इस चर्चित फिल्म को डायरेक्ट किया है लीज़ो जोस पेलीशेरी ने.
कहानी हैः केरल के अंगमालि गांव के लोगों की. यहीं पर रहता है विंसेंट पेपे (एंथनी वर्गीस) जो स्कूल के टाइम से अपनी कहानी सुना रहा होता है. कैसे वो एक लोकल फुटबॉल टीम के खिलाड़ी बाबूजी और उसकी मार-कुटाई से प्रेरित होता है और वैसा ही रिसेप्शन पाने के लिए अपनी टीम बनाने लगता है. वो अनोखे अंदाज वाले लड़के एक-एक करके साथ लेता जाता है. फिर कहानी उसकी जवानी तक पहुंचती है. उसके एक-एक एडवेंचर आगे आते जाते हैं. कहानी वहां से गंभीर हो जाती है जब वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर सूअर के मीट का बिजनेस शुरू करता है और पहले से ये बिजनेस कर रहे दो खतरनाक भाइयों से उसका पंगा हो जाता है. बाद में ये लड़ाई ख़ूनी भी होती है, कई मोड़ लेती है और एक अंत तक पहुंचती है. यहां सुनने-पढ़ने में ये कहानी एक आम गैंगस्टर मूवी जैसी लग सकती है लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण कल्पना से परे है. बेहद अनूठा है.
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