बिहार (Bihar) के 15 रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टियों पर चुनाव आयोग (Election Commission) बड़ा एक्शन लेने जा रहा है. ये पार्टियां पिछले छह साल से चुनावी मैदान से गायब रही हैं. यानी साल 2019 से अब तक किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में इन्होंने भाग नहीं लिया है. अब इन पार्टियों की राजनीतिक मान्यता पर तलवार लटकने लगी है.
बिहार के 15 राजनीतिक दलों पर चुनाव आयोग लेगा एक्शन, छह साल से नहीं लड़ा एक भी चुनाव
Bihar के Chief Election Officer ने ऐसे सभी राजनीतिक दलों की रिपोर्ट तैयार करके Central Election Commission को भेज दी है. अब आयोग जल्द ही इन पर अंतिम फैसला करेगा कि इन दलों को रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त दलों की लिस्ट में बरकरार रखा जाए या लिस्ट से बाहर कर दिया जाए.


बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने इन दलों को नोटिस भेजकर जवाब तलब किया था. एक सितंबर को कुछ दलों ने सुनवाई में आकर अपनी स्थिति स्पष्ट की है, लेकिन अधिकतर दलों ने कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए आयोग के दफ्तर तक पहुंचने की जहमत नहीं उठाई. मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने ऐसे सभी राजनीतिक दलों की रिपोर्ट तैयार करके केंद्रीय निर्वाचन आयोग को भेज दी है. अब आयोग जल्द ही इन पर अंतिम फैसला करेगा कि इन दलों को रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त दलों की लिस्ट में बरकरार रखा जाए या लिस्ट से बाहर कर दिया जाए.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत रजिस्टर्ड दलों को कई तरह की सुविधाएं मिलती है, जैसे चुनाव चिन्ह का आरक्षण, टैक्स छूट और राजनीतिक गतिविधियों की मान्यता. लेकिन जब कोई दल निष्क्रिय हो जाए और चुनाव में भाग नहीं ले तो ऐसी स्थिति में उनकी मान्यता और मिलने वाले लाभ रद्द किए जा सकते हैं.
जिन 15 दलों को चुनाव आयोग का नोटिस मिला है उनमें भारतीय आवाम एक्टिविस्ट पार्टी, भारतीय जागरण पार्टी, भारतीय युवा जनशक्ति पार्टी, एकता विकास महासभा पार्टी, गरीब जनता दल (सेक्युलर), जय जनता पार्टी, जनता दल हिंदुस्तानी, लोकतांत्रिक जनता पार्टी (सेक्युलर), मिथिलांचल विकास मोर्चा, राष्ट्रवादी युवा पार्टी, राष्ट्रीय सद्भावना पार्टी, राष्ट्रीय सदाबहार पार्टी, वसुधैव कुटुंबकम पार्टी, वसुंधरा जन विकास दल और यंग इंडिया पार्टी शामिल है.
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इससे पहले पिछले महीने भी चुनाव आयोग ने बिहार के कई निष्क्रिय दलों को रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त दलों की लिस्ट से बाहर कर दिया था. अब इन 15 दलों की बारी आई है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ऐसे दल लंबे समय से निष्क्रिय रहकर जनता को गुमराह करते हैं और आयोग की लिस्ट में रहकर सुविधाओं को लाभ उठाते हैं.
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