अनंत सिंह से बार-बार क्यों मिलते हैं अशोक चौधरी और ललन सिंह?
Mokama Vidhansabha Seat से फिलहाल Anant Singh की पत्नी Neelam Devi विधायक हैं. लेकिन पिछले महीने जेल से छूटते ही अनंत सिंह ने मोकामा सीट से चुनाव लड़ने का एलान किया. और सबसे पहले अपने सियासी सरपरस्त नीतीश कुमार से मिले. फिर ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह के यहां हाजिरी लगाई.

साल था 2004. नीतीश कुमार दो सीटों बाढ़ और नालंदा से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे. नालंदा जीते और बाढ़ हार गए. इसके कुछ दिन बाद जदयू में एक बाहुबली नेता की एंट्री हुई. वो नेता जिसने बाढ़ चुनाव में नीतीश कुमार की मदद की थी लेकिन आधिकारिक तौर पर साथ नहीं आया था. उनको पार्टी जॉइन कराते समय नीतीश कुमार ने कहा कि अगर 'छोटे सरकार' साथ आ जाते तो उनका चुनाव नहीं फंसता. ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर इस नेता का नाम है अनंत सिंह.
अनंत सिंह बिहार की राजनीति में उन गिनती के बाहुबली टैग वाले नेताओं में है जिनका राजनीतिक आभामंडल बचा हुआ है. वो मोकामा से चार बार के विधायक रहे. वही मोकामा जिसके बारे में कहते हैं ‘ऊपर से फिट फाट, नीचे से मोकामा घाट’. यानी मोकामा को साधे रखना आसान नहीं. लेकिन अनंत सिंह घाट-घाट का पानी पी चुके हैं. जदयू में रहे, निर्दलीय जीते, राजद से जीते और अब एक बार फिर जदयू के साथ हैं.
जेल से बाहर आते ही ठोका दावामोकामा सीट से फिलहाल अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक हैं लेकिन पिछले महीने जेल से छूटते ही अनंत सिंह ने मोकामा सीट से चुनाव लड़ने का एलान किया और सबसे पहले अपने सियासी सरपरस्त नीतीश कुमार से मिले. फिर नीतीश कुमार के 'दोस्त' और मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह के यहां हाजिरी लगाई.
ललन सिंह के दरबार में हाजिरी के बाद अनंत सिंह ने चुप्पी साध ली. इस बीच मोकामा से जदयू का टिकट पाने की हसरत रखने वाले नीरज कुमार एक्टिव हो गए. खबर चलने लगी ललन बाबू से हरी झंडी नहीं मिली. अनंत सिंह का टिकट फंस गया है लेकिन फिर 31 अगस्त और 1 सितंबर को कुछ ऐसा हुआ जिससे अब अनंत सिंह का टिकट पक्का माना जा रहा है.
लैंड क्रूजर पर सवार होकर मोकामा पहुंचे ललन सिंह31 अगस्त को मोकामा में ललन सिंह ने रोड शो किया. लैंड क्रूजर पर सवार होकर ललन सिंह मोकामा पहुंचे. गाड़ी में आगे की सीट पर ललन सिंह और बैक सीट पर अनंत सिंह बैठे. भौकाली रोड शो हुआ. इस रोड शो के अगले दिन नीतीश कैबिनेट के कद्दावर मंत्री अशोक चौधरी के घर अनंत सिंह और नीतीश कुमार की संक्षिप्त मुलाकात हुई. इस मुलाकात की टाइमिंग को लेकर कई तरह की बातें सुनी और सुनाई जा रही हैं.

कुछ महीनों पहले सीएम नीतीश के घर ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच कहासुनी हुई थी. तब ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. वजह बनी बरबीघा विधानसभा सीट. मामला ये था कि अशोक चौधरी बार-बार बरबीघा के दौरे पर चले जाते थे. ये बात ललन सिंह को रास नहीं आई, क्योंकि इस सीट से ललन सिंह के करीबी सुदर्शन सिंह विधायक हैं.
सुदर्शन अपने समय के बड़े भूमिहार चेहरे रहे राजो सिंह के पोते हैं. साल 2005 में उनकी हत्या कर दी गई थी. अशोक चौधरी पर भी आरोप लगे थे लेकिन इसमें कुछ ठोस नहीं निकला और फिर उनकी सुदर्शन से सुलह भी हो गई. अशोक चौधरी जब कांग्रेस छोड़कर जदयू में आए तो साथ में सुदर्शन भी आए. लेकिन बाद में सुदर्शन ललन सिंह के खेमें में शामिल हो गए.
ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच हुई बहस के वक्त संजय झा भी मौजूद थे. हालांकि अब इन दोनों के बीच की बर्फ भी पिघल चुकी है. एक पब्लिक मीटिंग में अशोक चौधरी ललन सिंह के पांव पकड़ते नजर आए थे.
अब मामला है अशोक चौधरी बार-बार बरबीघा क्यों जा रहे थे? वजह है बरबीघा विधानसभा सीट. वे अपने दामाद सायन कुणाल को यहां से लड़ाना चाहते हैं. यह सीट भूमिहार बहुल है. ऐसे में अगर सायन को टिकट मिलता है तो उनको अनंत सिंह के समर्थन और सहयोग की जरूरत होगी.
ये भी पढ़ें - नीतीश-ललन से मुलाकात तक हुई, फिर भी मोकामा से अनंत सिंह का टिकट क्यों फंस गया?
ललन सिंह को भी अनंत सिंह की जरूरतललन सिंह मुंगेर लोकसभा सीट से सांसद हैं. मोकामा विधानसभा मुंगेर लोकसभा सीट के अंतर्गत ही आती है. ललन सिंह की मदद के लिए पिछले चुनाव में अनंत सिंह को जेल से परोल पर निकाला गया था. इससे पहले दोनों के रिश्ते खट्टे-मीठे रहे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने ललन सिंह को चुनौती दी थी.
उस वक्त अनंत सिंह के सियासी दुश्मन रहे सूरजभान सिंह ने ललन सिंह की मदद की थी. अब परिस्थितियां बदल गई हैं. सूरजभान राजद के खेमे में जाते दिख रहे हैं. वैसे में अनंत सिंह को साधे रखना ललन सिंह की सियासी जरूरत है. क्योंकि मुंगेर प्रमंडल में जदयू का अच्छा प्रदर्शन उनके सियासी रूतबे को बनाए रखने के लिए जरूरी है.
सूर्यगढ़ा सीट की लड़ाई में भी अनंत सिंह जरूरीसूर्यगढ़ा सीट भी मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में हैं. यहा से प्रह्लाद यादव विधायक हैं. उन्होंने नीतीश सरकार के शक्ति परीक्षण में पाला बदल लिया था. तब बीजेपी नेता और उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा उनका हाथ थामकर उन्हें एनडीए के खेमे में लाए थे. अब सूर्यगढ़ा सीट से उनकी दावेदारी है लेकिन इसमें एक पेच है. यह सीट एनडीए में जदयू के खाते में है और ललन सिंह प्रह्लाद यादव के नाम पर सहमत नहीं हैं. जदयू के उनके साथी अशोक चौधरी भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं.
चौधरी एक सरकारी कार्यक्रम के लिए सूर्यगढ़ा गए थे लेकिन स्थानीय विधायक प्रह्लाद यादव को आमंत्रण नहीं दिया. विजय सिन्हा इसको लेकर बमक गए. तब से दो बार दोनों में जुबानी भिड़ंत हो चुकी है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विजय सिन्हा ललन सिंह की खीज अशोक चौधरी पर निकाल रहे हैं.
अब अगर सीट बंटवारे में सूर्यगढ़ा सीट जदयू के खाते में ही रहती है और प्रह्लाद यादव की जगह किसी और को मौका मिलता है तो ये सीट ललन सिंह के लिए नाक की लड़ाई हो जाएगी. अब इस सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां कुर्मी, यादव और मुस्लिम के साथ-साथ भूमिहार मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में बीजेपी और जदयू के सबसे बड़े भूमिहार चेहरों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में अनंत सिंह अहम फैक्टर रहेंगे.
ये भी पढ़ें - जेल से बाहर आए अनंत सिंह, बताया इस बार किस पार्टी से लड़ेंगे चुनाव
'मोकामा सीट से कौन लड़ेगा पार्टी नेतृत्व तय करेगा'जदयू प्रवक्ता और ललन सिंह के करीबी नीरज कुमार की हसरत भी मोकामा से चुनाव लड़ने की है. वहीं अनंत सिंह तो खुलमखुल्ला चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं. ऐसे में गेंद अब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पाले में है लेकिन इससे इतर एक चीज तो तय है. अपने दामाद को भूमिहार समाज में नेता के तौर स्थापित करने की हसरत पाले अशोक चौधरी हों. या फिर विधानसभा चुनाव में अपनी साख बरकरार रखने की कवायद में जुटे ललन सिंह. दोनों के लिए अनंत सिंह जरूरी फैक्टर बनते दिख रहे हैं.
वीडियो: राजधानी: नीतीश और अनंत सिंह की सीक्रेट मीटिंग, ललन सिंह-अशोक चौधरी को लेकर बवाल