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पगानी सुपरकार: भारत में अरबपति लोगों के लिए भी इसे खरीदना एक सपना क्यों है?

Horacio Pagani Supercar: पगानी कंपनी दुनिया की काफी महंगी कारें बनाती है. इन कारों का प्रोडक्शन भी काफी कम होता है. इसे खरीदना आसान नहीं. कीमत के अलावा कंपनी की ऐसी शर्तें भी हैं, जिन्हें पूरा करना आसान नहीं है. ये शर्तें जानकर आप भी कहेंगे- अरे ऐसा कौन करता है.

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Pagani लग्जरी स्पोर्ट्स कार और हाइपरकार बनाती है.(फोटो-पगानी)

आज के समय में भारत की सड़कों पर महंगी से महंगी कारें नजर आ जाती हैं. ना ही तो लग्जरी कार बेचने वालों की कमी है और ना ही खरीदने वालों की. एक जमाना था जब लग्जरी कार कंपनियां भारत में आने से कतराती थीं. मगर अब 15-22 करोड़ रुपये की Rolls-Royce भी हमारे देश में है. कहें तो दुनियाभर के ज्यादातर लग्जरी ब्रांड भारत में मौजूद हैं. फिर भी एक अल्ट्रा लग्जरी ब्रांड है, जिसकी एक भी कार भारत में नहीं है. पन्नों पर तो नहीं ही है. कोई कहीं से ले आया हो तो अलग बात. 

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ये गाड़ी अमीरों की नहीं, बहुत बड़े अमीरों की नहीं बल्कि बहुत-बहुत-बहुत अमीरों की भी पॉकेट से बाहर है. हम बात कर रहे हैं पगानी (Pagani) की. भारत की सड़कों पर इसे दौड़ाने के लिए बस 300 करोड़ रुपये के आसपास चाहिए. यह एक इटैलियन ब्रांड है. उसी देश का ब्रांड जो Alfa Romeo, Lamborghini, Ferrari जैसे ब्रांड्स के लिए मशहूर है. जो आपको लगे कि चलो 300 करोड़ ही तो हैं. खरीद लेते हैं. लेकिन तब भी नहीं खरीद पाएंगे. बताते हैं क्यों?

Horacio Pagani की कहानी

Pagani कार बनाने वाले शख्स का नाम है हरिसियो पगानी (Horacio Pagani). उनका जन्म 10 नवंबर, 1955 को अर्जेंटीना के छोटे से शहर कैसिल्डा में हुआ था. बचपन से ही उन्हें कार, इंजन, उनके डिजाइन में इंटरेस्ट था. इसी शौक में उन्होंने 14 साल की उम्र में एक बाइक भी बना ली थी. इसी जज्बे के साथ उन्होंने इंजीनियरिंग और आर्ट में ग्रेजुएशन की. इस बीच उन्होंने खुद की वर्कशॉप भी ओपन की. जिसमें वे बार स्टूल और कैंपर जैसी कई चीजें बनाते थे. मगर उनका सपना इटली जाकर काम करने का था.

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उन्होंने Renault में भी काम किया. कंपनी ने Pagani को फॉर्मूला वन चैंपियन Juan Manuel Fangio के साथ अपनी टीम में स्थायी पद दिया. मगर उनका दिल किसी स्पोर्ट्स कार कंपनी में लगा हुआ था. Fangio ने उनकी मदद की और 1983 में उन्होंने Lamborghini में अपनी जगह बना ली. मगर एक इंजीनियर के रूप में नहीं, बल्कि छोटे-मोटे काम के लिए. जैसे जनेरेटर. उस समय ऑटो सेक्टर मार्केट काफी दिक्कतों का सामना कर रही थी, जिसका असर जॉब हायरिंग पर भी दिखा. Pagani बस कंपनी में जैसे-तैसे आना चाहते थे. इसलिए वे कंपनी में छोटे-मोटे काम (जनेरेटर) करने लगे. 

बाद में उनके कारों के प्रति प्रेम और जज्बे को देखते हुए Lamborghini में उन्हें नई कंपोजिट मैटेरियल्स टीम में जगह मिल गई. उनका पहला प्रोजेक्ट LM002 था. ये एक SUV थी, जो मार्केट में फेल हो गई थी. मगर Pagani को कंपनी में चीफ इंजीनियर की पॉजिशन मिल गई.

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Lamborghini Countach Evoluzione के साथ Pagani (फोटो-पगनी)

Pagani स्पीड और स्टाइल पर काम करना चाहते थे. वे चाहते थे कि कारों के लिए कार्बन फाइबर का इस्तेमाल किया जाए. ये मटेरियल हल्के वजन की वजह से स्पोर्ट्स कारों में बेहतर स्पीड, मजबूती और तुरंत एक्सीलरेशन देता है. मगर Lamborghini ने ये आइडिया रिजेक्ट कर दिया. क्योंकि वह खुद को सुपरकार ब्रांड मानती थी. रेसिंग कार ब्रांड नहीं. उनकी राइवल कंपनी Ferrari भी इसका इस्तेमाल अपनी कारों में नहीं कर रही थी. बताया जाता है कि इसके बाद उन्होंने कंपनी में रहते हुए भारी लोन लेकर खुद ऑटोक्लेव खरीदा और Lamborghini Countach Evoluzione नाम के प्रोजेक्ट पर काम किया.

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Countach को बनाने के लिए उन्होंने कार्बन फाइबर, केवलर और एल्यूमीनियम का इस्तेमाल किया. ये कार अपने समय में काफी आगे थी. काफी हल्की थी. Lamborghini ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद उन्होंने अपने ऑटोक्लेव और इंजीनियरिंग टीम के साथ 1991 में Lamborghini को छोड़ दिया. Pagani ने फिर Modena Design की स्थापना की. बाद में उन्होंने Pagani Automobili की शुरुआत की. उनकी पहली कार Pagani Zonda थी. जिसे बनाने में लगभग 7 साल का समय लगा. इसी कार के साथ Pagani ने हाइपरकार वर्ल्ड में जगह बनाई. 1999 में इसे Geneva Motor Show में भी दिखाया गया था. Zonda ना सिर्फ पावरफुल थी, बल्कि देखने में काफी खूबसूरत भी. धीरे-धीरे Pagani की कारें अपने परफॉर्मेंस और लिमिट होने से काफी फेमस हो गईं.

Pagani कार लेना क्यों मुश्किल?

Pagani, Zonda, Utopia और Huayra जैसी कारें बनाती है. Pagani की कारें सिर्फ कारें नहीं होतीं, बल्कि एक पीस ऑफ आर्टवर्क बनाती हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रत्येक Pagani को बनाने में कम से कम चार महीने या उससे ज्यादा का समय लगता है. ये मॉडल, कस्टमाइजेशन और वेटिंग लिस्ट के हिसाब से कम और ज्यादा हो सकता है. इन कारों में वर्कर कार्बन फाइबर की बारीक कारीगरी करते हैं. टाइटेनियम के एग्जॉस्ट सिस्टम को मशीन से शेप देते हैं. Utopia के ही इंटीरियर को बनाने में 280 घंटे लगते हैं. बाहरी कार्बन बॉडी को बनाने में 320 घंटे. ये कोई फैक्ट्री नहीं है, बल्कि एक ऐसी वर्कशॉप है, जो हाइपर कार बनाती है. कंपनी साल में सिर्फ 40-50 कारें ही बनाती है. 

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Horacio Pagani (फोटो-पगानी)

भारत में इसके नहीं होने का कारण तो इसकी कीमत है. इम्पोर्ट ड्यूटी से लेकर टैक्स मिलाकर इसका दाम 300 करोड़ रुपये के आसपास होगा. Pagani को लेफ्ट हैंड साइड के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि भारत में राइट हैंड साइड स्टीयरिंग व्हील होता है. ऐसे में कंपनी को सब कुछ रिडिजाइन करना होगा, जो काफी ज्यादा काम है. भारत में लेफ्ट-हैंड साइड कार आम व्यक्ति ड्राइव नहीं कर सकता है. ये कार रजिस्टर ही नहीं हो सकती है. सिर्फ मैन्युफैक्चरर ही टेस्ट के लिए LHD गाड़ियों का आयात कर सकते हैं.  

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चलो सब कुछ करके आपने इसे खरीदने का जुगाड़ लगा लिया तो अभी एक और ब्रेक है. Pagani अपने कस्टमर्स खुद चुनती है. कंपनी की कार अगर किसी व्यक्ति को खरीदनी है, तो उसे ब्रांड एंबेसडर या बड़े-बड़े इवेंट अटेंड करने वाला होना चाहिए. उस व्यक्ति को फैक्ट्री के साथ भी ताल-मेल बिठाकर रखना चाहिए. इसलिए Pagani को भारत में खरीदना काफी मुश्किल है. लेकिन कोई अरबपति चाहे तो यूके, इटली में इस कार को खरीद सकता है. वहीं रजिस्टर करा सकता है. क्योंकि वहां उनका पूरा नेटवर्क भी है और लेफ्ट हैंड साइड कार का चलन भी. बस इसको राइट हैंड साइड स्टीयरिंग बनाने में कुछ और करोड़ खर्च करने होंगे. 

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