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सरकार ने कैसे तय किया कि आपकी गाड़ी 'कबाड़' हो गई?

दिल्ली सरकार ने 10 साल पुरानी डीजल गाड़ी और 15 साल पुुराने पेट्रोल वाहनों को फ्यूल न देने का आदेश जारी किया है. इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे वाहनों को सड़कों से हटाने को कहा था.

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दिल्ली में 10-15 साल पुरानी गाड़ियां होंगी बंद (India Today)

दिल्ली में पुरानी गाड़ियों को लेकर सख्ती शुरू हो गई है. 10 साल पुरानी डीजल की और 15 साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों को पेट्रोल पंप वाले फ्यूल नहीं देंगे. दिल्ली सरकार ने इसे लेकर मंगलवार 1 जुलाई को आदेश जारी कर दिया है. अगर सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी गाड़ियां दिखीं तो वाहन मालिक पर जुर्माना भी लगाया जाएगा. चार पहिया वाहनों के लिए 10 हजार और दोपहिया वाहनों के लिए 5 हजार रुपये की पेनल्टी देनी पड़ेगी.

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हालांकि, सड़क पर पुरानी गाड़ियों के बैन का ये मामला नया नहीं है. 10 साल पहले 7 अप्रैल 2015 को इसे लेकर एनजीटी ने आदेश दिया था कि दिल्ली और इसके आसपास के प्रदेशों और शहरों में 10-15 साल पुरानी गाड़ियों को सड़कों पर चलने से रोका जाए. NGT ने NCR में 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों और 15 साल से ज्यादा पुरानr पेट्रोल गाड़ियों पर बैन लगाने का आदेश दिया था. इन गाड़ियों को ‘एंड-ऑफ लाइफ’ वाहन कहा गया. 

एनजीटी के इस आदेश का केंद्र सरकार ने विरोध किया था. सरकार ने कहा था कि गाड़ियों को सड़क से हटाने का आधार उसकी उम्र नहीं होनी चाहिए बल्कि उसकी फिटनेस के आधार पर ही उसे सड़क से हटाने का आदेश दिया जाना चाहिए. सरकार ने ग्रीन ट्रिब्यूनल को आश्वस्त भी किया था कि वह एक ऐसी नीति तैयार कर रही है, जिससे यह तय किया जा सके कि किस उम्र के बाद कोई गाड़ी कबाड़ यानी स्क्रैप कही जाएगी. 

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सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था फैसला

ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था. साल 2018 में सर्वोच्च अदालत ने भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले पर रोक लगाने से मना कर दिया. इसके बाद से ही दिल्ली में 10 साल पुराने डीजल वाहन और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन सड़कों पर प्रतिबंधित हैं. 

हालांकि, नियम लागू होने के बाद भी सड़कों पर भारी मात्रा में स्क्रैप गाड़ियां चलती हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 तक राजधानी दिल्ली में 55 लाख पुरानी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया था. इनमें से सिर्फ 1.4 लाख गाड़ियां ही स्क्रैप की गईं. मात्र 6.3 लाख वाहनों ने परिवहन विभाग से एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लिया था. बाकी की गाड़ियां धड़ल्ले से राजधानी की सड़कों पर रफ्तार भरती रहीं.

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इस नियम को सख्ती से लागू कराने के लिए ही दिल्ली सरकार ने नया आदेश जारी किया है कि अब स्क्रैप करने के लायक गाड़ियों को फ्यूल ही नहीं मिलेगा. 

कैसे तय होती है गाड़ियों की उम्र?

सवाल उठता है कि गाड़ियों की उम्र के लिए 10 साल या 15 साल का ये आंकड़ा कहां से आता है. क्या मानक हैं जिनसे आपकी गाड़ी को उसकी उम्र के हिसाब से ‘फिट’ या ‘अनफिट’ घोषित किया जाता है.

बहुत से लोगों का ऐसा कहना है कि वह अपनी गाड़ी को हमेशा मेंटेन रखते हैं. बेहतर रखरखाव से गाड़ियां 10 या 15 साल की अवधि में ‘छोड़ देने लायक’ या ‘बेच देने’ तो नहीं होतीं. उन्हें कबाड़ भी नहीं कहा जा सकता. ऐसे में वह अपनी गाड़ियों को स्क्रैप कैसे कर दें? बढ़ती महंगाई के दौर में तमाम वाहन मालिकों का ये भी दुख है कि वह हर 10 या 15 में पुरानी गाड़ी छोड़कर नई गाड़ियां खरीदना अफोर्ड नहीं कर सकते. 

ऐसे में सरकार के 10 या 15 साल पुराने वाहनों को बैन करने के मापदंड पर सवाल उठने लगे हैं.

कैसे तय हुई गाड़ियों की उम्र?

हालांकि, पेट्रोल वाहनों की उम्र 15 साल और डीजल वाहनों की 10 साल तय किए जाने का फैसला अचानक नहीं लिया गया है. इसके पीछे कई साइंटिफिक स्टडी और एनवायरमेंटल फैक्ट्स जिम्मेदार हैं. साल 2015 में NGT ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के उद्देश्य से पुरानी गाड़ियों के बैन का जो आदेश दिया था वह IIT कानपुर और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) जैसी संस्थाओं की शोध रिपोर्टों पर आधारित था. 

इन रिपोर्ट्स में बताया गया कि डीजल वाहनों से निकलने वाले प्रदूषक तत्व, खासतौर से PM 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) इंसानी सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. स्टडी में पाया गया कि जैसे-जैसे वाहन पुराने होते हैं, उनके इंजन की क्षमता घटती जाती है और वे अधिक प्रदूषण फैलाने लगते हैं. अन्य वाहनों के मुकाबले डीजल वाली गाड़ियों में ये गिरावट जल्दी आती है. डीजल वाली गाड़ियां अक्सर 6 से 8 साल में ही खतरनाक लेवल का प्रदूषण करने लगती हैं. 

वहीं, पेट्रोल गाड़ियां आमतौर पर 10–12 साल तक कम प्रदूषण फैलाती हैं. 15 साल के आसपास जाकर इनकी फिटनेस भी गिरने लगती है. 

इन तथ्यों के आधार पर यह तय किया गया कि डीजल वाहनों की मैक्सिमम उम्र 10 साल और पेट्रोल वाहनों की 15 साल होगी.

बीएस नॉर्म्स भी जिम्मेदार

भारत में गाड़ियों से प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ब्रिटेन के ‘यूरो नॉर्म्स’ की तर्ज पर बीएस (भारत स्टेज) नॉर्म्स बनाए गए थे. साल 2001 में लॉन्च की गई इस स्कीम के तहत हर चरण में गाड़ियों से निकलने वाली जहरीली गैसों को कम करने की कोशिश की गई. 

बीएस-I देश का पहला उत्सर्जन मानदंड था, जो साल 2000 में लाया गया था. 2.72 ग्राम प्रति किमी के हिसाब से कार्बन मोनो ऑक्साइड उगलने वाली गाड़ियों को इस कैटिगरी में रखा गया था.

भारत स्टेज II के तहत 2001 से 2005 के बीच भारत में बिकने वाली गाड़ियां आईं. इनसे कार्बन मोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन 2.2 ग्राम प्रति किमी होता था.

ऐसे ही 2005 से 2010 तक बीएस-III के तहत गाड़ियां बिकीं, जिसमें Emission की लिमिट और कम की गई. इसी फेज में गाड़ियों से निकलने वाले धुओं पर भी शिकंजा कसा गया था. 

बीएस-IV साल 2017 में लाया गया. इस फेज में कार्बन उत्सर्जन को 1 ग्राम प्रति किमी तक लिमिट कर दिया गया. 

फिलहाल BSVI स्टेज चल रहा है. इसे अप्रैल 2020 में लाया गया था. 

हाल ही में ऐसी खबरें आई थीं कि सरकार भारत स्टेज (बीएस)- III और IV की गाड़ियों पर बैन लगाने जा रही है.

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