कार खरीदते समय 'माइलेज' का काफी ध्यान रखा जाता है. गाड़ी खरीदते समय ज्यादातर लोग यही सवाल पूछते हैं- ‘ये कितना माइलेज देती है?’, ताकि कार खरीदने के बाद कम से कम इसे चलाने के खर्च का अंदाजा हो जाए. लेकिन कार कंपनी जितने माइलेज का दावा करती है, असल में कार उतना देती नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है. क्या कार कंपनी आपसे झूठ बोलती है?
कार कंपनी ने जितना बताया, आपकी गाड़ी उतना माइलेज क्यों नहीं देती?
माइलेज का आंकड़ा ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) निकालता है. ये संगठन गाड़ियों का टेस्ट करता है और इनकी फ्यूल एफिशिएंसी बताता है. लेकिन सवाल है कि जो आंकड़ा ARAI देता है क्या गाड़ी भी उतना ही माइलेज देती है?
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माइलेज का आंकड़ा ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) निकालता है. ये संगठन गाड़ियों का टेस्ट करता है और इनकी फ्यूल एफिशिएंसी बताता है. लेकिन सवाल है कि जो आंकड़ा ARAI देता है क्या गाड़ी भी उतना ही माइलेज देती है?
माइलेज का प्रोसेसदरअसल, बिक्री से पहले कारों को होमोलोगेशन प्रोसेस से गुजरना पड़ता है. इसमें ये चेक किया जाता है कि जो गाड़ी मार्केट में आई है, वो सड़क पर चलने के काबिल है या नहीं. जब एक गाड़ी टेस्ट में पास हो जाती है, तो उसे होमोलोगेशन सर्टिफिकेट दिया जाता है. ये सर्टिफिकेट ARAI की तरफ से मिलता है, जो एक सहकारी सरकारी बॉडी है. इस टेस्ट के दौरान गाड़ी के माइलेज का भी पता चलता है, जिसे ARAI रेटेड फ्यूल एफिशिएंसी (ARAI माइलेज) के तौर पर जाना जाता है. लेकिन यह सब आइडियल कंडीशन में होता है. ARAI, गाड़ियों का टेस्ट एक कंट्रोल लेबोरेटरी कंडीशन (सिमुलेशन) में करती है. इस वजह से जब एक गाड़ी असल में सड़क पर चलती है, तो उसके माइलेज में उतार-चढ़ाव आना तय है.
अब ARAI टेस्ट कैसे करती है, एक बार उस पर भी नजर डाल लेते हैं.
ARAI टेस्ट के लिए चेसिस डायनमोमीटर का इस्तेमाल होता है. इसमें 19 मिनट तक गाड़ी को 31 किमी/घंटा की औसत स्पीड पर 10 किलोमीटर की दूरी के लिए डायनमोमीटर पर शहर और हाईवे की स्थिति के मुताबिक चलाया जाता है. इससे ही ARAI फ्यूल एफिशिएंसी का आंकड़ा निकालता है. लेकिन असल सड़क या हाइवे पर टेस्ट न होने की वजह से गाड़ी के असल माइलेज का पता नहीं चलता. इसके अलावा कुछ और फैक्टर्स होते हैं, जिनसे गाड़ी का असल माइलेज नहीं पता लग पाता.

सड़क: पहला तो ये कि ARAI टेस्ट काल्पनिक और आदर्श सड़क परिस्थितियों में किया जाता है. जैसे कि जब एक आम व्यक्ति कार लेकर निकलेगा तो उसे ट्रैफिक मिलेगा, लाल बत्ती पर कार रोकनी पड़ेगी आदि. टेस्ट के दौरान गाड़ी 19 मिनट तक चलती रहती है. ये टेस्ट एक प्लेटफॉर्म पर होता है जो किसी वास्तविक सड़क के परिणाम नहीं दे सकता. भारत में वास्तविक सड़कों पर गाड़ी चलाना बेहद चुनौतीपूर्ण है. यहां हर चार कदम पर कोई चीज आपके सामने आती है जिसके चलते गाड़ी रोक-रोक कर चलानी पड़ाती है. इससे फ्यूल ज्यादा जलता है और माइलेज भी कम होता है.
AC: टेस्ट के दौरान AC नहीं चलाया जाता है. लेकिन ज्यादातर लोग कार में बैठते ही AC चला लेते हैं और एयर कंडीशनर इंजन से पावर लेता है. इंजन से AC पावर लेगा, तो फ्यूल की खपत तो होती है. मतलब इससे भी माइलेज घटेगा.
स्पीड लिमिट तय: टेस्ट के दौरान गाड़ी की औसत स्पीड 31 किमी/घंटा होती है. अधिकतम स्पीड 90 किमी प्रति घंटा सुनिश्चित की गई है. यहां थ्रॉटल, क्लच और ब्रेकिंग जैसी एक्टिविटी कंप्यूटर कंट्रोल करता है. लेकिन हर एक व्यक्ति की ड्राइविंग स्किल यानी गाड़ी चलाने का तरीका अलग होता है. कोई तेज स्पीड में कार चलाएगा, तो कोई धीरे. ऐसे में ये दावा नहीं किया जा सकता कि जो आंकड़ा ARAI ने दिया है, वो ही माइलेज सड़क पर मिलेगा.

v3cars ने कुछ ARAI रेटेड फ्यूल एफिशिएंसी कार और रियल वर्ल्ड फ्यूल एफिशिएंसी कारों के बीच तुलना की. इसमें उन्होंने कारों को सड़क और हाईवे पर ड्राइव कर आंकड़ा शेयर किया. हम यहां कुछ कारों का जिक्र करने वाले हैं.
| कार | ARAI रेटेड माइलेज | शहर | हाइेवे |
| Toyota Hyryder Hybrid | 27.97kmpl | 18.02 kmpl | 23.77kmpl |
| Hyundai Aura | 20.5kmpl | 14.03kmpl | 18.21kmpl |
| Hyundai Verna | 20.6kmpl | 9.60kmpl | 18.28kmpl |
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ड्राइविंग करने का तरीका रखता है मायनेजैसा हमने कहा कि लोगों की ड्राइविंग स्किल पर काफी निर्भर करता है कि एक कार कितना माइलेज देगी. क्योंकि एक व्यक्ति ड्राइव करते समय कई बार ब्रेक लगाएगा, गाड़ी की स्पीड तेज करेगा या कम करेगा. लेकिन ARAI टेस्ट में ये कारें सिर्फ लगातार चलती रहती हैं. ऐसे में पता ही नहीं लगता कि एक गाड़ी रियल-वर्ल्ड में क्या माइलेज देगी. इसलिए जब आप ARAI रेटेड फ्यूल एफिशिएंसी देखकर कार लेने जाएं, तो समझ जाइए कि जितना माइलेज आपको बताया जा रहा है, उतना तो नहीं मिलेगा. एक लीटर पेट्रोल में आपकी गाड़ी जो फ्यूल की खपत करेगी वो माइलेज नहीं बल्कि एवरेज होगा.
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