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तो क्या हिंदी की पहली ग़ज़ल कबीर ने लिखी थी?

एक कविता रोज़ में आज पढ़िए कबीर को और कबीर के बारे में

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28 जून 2018 (Updated: 28 जून 2018, 06:35 AM IST) कॉमेंट्स
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अविनाश मिश्रा
अविनाश मिश्रा

अविनाश मिश्र कुछ ही गिने चुने साहित्यिक मित्रों में से एक हैं, या केवल एकमात्र हैं. बाकी मित्र या तो साहित्य वाले नहीं हैं या बाकि साहित्य वाले, मित्र नहीं हैं. होने को ‘साहित्य वाला’ कहने से अविनाश को आपत्ति हो सकती है, लेकिन मैंने उनसे कुछ भी लिखने की ‘आज़ादी’ की ‘आज्ञा’ ले रक्खी है. अस्तु…
05 जनवरी, 1986 को जन्मे अविनाश की ‘अज्ञातवास की कविताएं’ शीर्षक से कविताओं की पहली किताब साहित्य अकादेमी से गए बरस छपकर आई है.  आज उनके माध्यम से कबीर को पढ़िए एक कविता रोज़ में. ओवर टू अविनाश.


प्रिय पाठकों,
आज एक कविता रोज़ में बातें कबीर की.
हिंदी साहित्य के भक्ति-काल में हुए कबीर आज भी विद्रोह की मिसाल बने हुए हैं. पाखंड को खंड-खंड करने का काम कबीर जीवन भर अपनी करनी और कविता दोनों से ही करते आए. जुलाहा परिवार में पले-बढ़े कबीर हिंदी के पहले ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ हैं. काशी में जीवन भर रहने और मगहर जाकर देह त्यागने वाले कबीर का जीवन तमाम किंवदंतियों से भरा हुआ है.
एक कल्ट की तरह सारे संसार में समादृत कबीर का प्रमुख ग्रंथ ‘बीजक’ को माना जाता है. ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ ‘बीजक’ के ही भाग हैं. यहां हम कबीर की एक ऐसी रचना आपको पढ़वा रहे हैं जो न तो ‘बीजक’ में है और न ही ‘कबीर ग्रंथावली’ में. थोड़े विवादों के साए में इसे हिंदी की पहली ग़ज़ल मानने का चलन है.

अब पढ़िए ‘कबीर साहब की शब्दावली’ में संकलित इस रचना को :


हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या

जो बिछड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में, हमन को इंतजारी क्या

खलक सब नाम जपने को, बहुत कर सिर पटकता है
हमन गुरु नाम सांचा है, हमन दुनिया से यारी क्या

न पल बिछड़ें पिया हमसे, न हम बिछड़ें पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या

कबीरा इश्क का नाता, दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाजुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या
अर्थात् : हम तो इश्क की मस्ती में हैं, हमसे होशियारी क्या करते हो. हम संसार में रहें या संसार से दूर इसमें लिप्त नहीं होते. हम अगर अपने प्रिय से बिछड़ कर दर-दर भटकें भी, तब भी हमारा प्रिय हम में ही रहता है. लोग अपने साहब का नाम जपने को बहुत सर पटकते हैं. लेकिन हमें तो एक ही नाम सच्चा है, हमें दुनिया भर के नामों से मतलब नहीं. न हमारा प्यार पल भर को भी हमसे बिछड़े और न हम अपने प्यार से. हमारा प्यार जब सच्चा है तो हमें बेकरारी क्यों होगी. और आखिर में कबीर कह रहे हैं कि दो नातों में नहीं पड़ना चाहिए. इस फर्क को दिल से दूर करना चाहिए. यह राह बहुत नाजुक है, लेकिन फिर भी भारी बोझ का क्या...


सुनिए बहुत प्यारी आवाज़ में हमन हैं इश्क मस्ताना, इसको सुनकर इस गीत से प्रेम न हो जाए तो कहिएगा:

और ये रहा सूफी वर्जन:

अन्नू कपूर की आवाज में इस रचना को यहां सुनिए:
https://www.youtube.com/watch?v=LOua9dDUf3w
कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:

‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’

‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!
'

जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख
'

‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’




 

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