किसी ने गहने गिरवी रखे, कोई पिता को बचाने के लिए सुरंग में था, बाहर आए तो पता लगी असली कहानी
उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग से बाहर निकलने के बाद श्रमिकों ने क्या-क्या बताया है? उस पिता की कहानी जिसने गहने गिरवी रखकर जुटाए 9000 रुपये, लेकिन रेस्क्यू तक बचे केवल 290 रुपए. कैसे वो आंखें गड़ाए सुरंग को 17 दिन देखते रहे?
![Uttarkashi Silkyara Tunnel Accident, What the workers says after coming out](https://static.thelallantop.com/images/post/1701243692876_uttarkashi_tunnel_rescue_ndrf_sucess.webp?width=540)
सिल्क्यारा सुरंग (Silkyara tunnel). ये दो शब्द पूरी जिंदगी याद रहेंगे. उन्हें जो इसमें फंसे थे और उन्हें भी जिन्होंने रात-दिन अपना सबकुछ झोंककर श्रमिकों को बाहर निकाला. याद हमें और आपको भी रहेगा, याद हर उस व्यक्ति को रहेगा जिसने इस समय को जिया है. लेकिन, इस सब के बीच बाहर निकले 41 श्रमिकों ने 17 दिन सुरंग के अंदर कैसे काटे? कैसे इनकी हिम्म्मत नहीं टूटी? ये सब कौन नहीं जानना चाहेगा. जो बाहर आए हैं, उन्होंने सब बताया है.
सबा अहमद भी सुरंग के अंदर ही फंसे थे, उन्होंने बताया कि हम सभी लोग इतने दिनों तक टनल में फंसे रहे, लेकिन किसी को एक दिन भी ऐसा कुछ एहसास नहीं हुआ कि उन्हें कोई कमजोरी हो रही है या कोई घबराहट हो रही है. सबकी हिम्मत बढ़ी हुई थी, सबको विश्वास था कि जल्द बाहर निकलेंगे. कंपनी सरकार सब साथ थे. सबा अहमद ने आगे कहा कि अंदर 41 लोग थे, और सब भाई की तरह रहते थे. किसी को कुछ न हो, इसलिए सब लोग एक साथ रहते थे. किसी को कोई दिक्कत नहीं होने दी.
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सुरंग के अंदर क्या करते थे इसे लेकर सबा अहमद ने बताया,
‘जब सुरंग में खाना आता था तो हम सब लोग मिलजुल के एक जगह बैठ कर खाते थे. रात में खाना खाने के बाद सभी को बोलते थे कि चलो एक बार टहलते हैं. टनल का लेन ढाई किलोमीटर का था, उसमें हम लोग टहलते थे. इसके बाद मॉर्निंग के समय हम सभी से कहते थे कि मॉर्निंग वॉक और योगा करें. इसके बाद सभी हम वहां योगा करते थे और घूमते टहलते थे, ताकि सभी की सेहत ठीक बनी रहे.’
कुछ श्रमिकों ने ये भी बताया कि कुछ लोग समय काटने के लिए लूडो भी खेलते थे. हर समय कोई न कोई लूडो खेलता रहता था.
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जो सबसे अनुभवी और हिम्मती होता है, ऐसी मुश्किल में वो खुद वा खुद लीडर की भूमिका में आ जाता है. टनल के अंदर ये काम किया फोरमैन गब्बर सिंह नेगी ने. बाहर निकलने के बाद पीएम मोदी से बातचीत करते हुए गब्बर ने कहा कि उनकी कंपनी ने मदद में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी. आगे बोले,
पिता को कैंसर से बचाने के लिए बेटा सुरंग में पहुंचा था‘केंद्र और राज्य सरकार ने हौसला बढ़ाए रखा. हमें भरोसा था जल्द जीत मिलेगी. हमारे बौखनाग बाबा में हमें बहुत विश्वास था. हमारे सभी दोस्तों का शुक्रिया, जिन्होंने मुश्किल की घड़ी में हमारी हर बात सुनी और हौसला बनाए रखा.’
उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल से जब मजदूरों का निकलना शुरू हुआ तो उनके परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. झारखंड के डुमरिया इलाके के रहने वाले पिंकू सरदार के माता-पिता बेटे के बाहर आने से बेहद खुश हैं. पिंकू मैट्रिक पास करने के बाद पिता के कैंसर के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए काम करने उत्तराखंड गए थे. टनल में जब हादसा हुआ तो अंदर थे.
पिंकू के बाहर आने की खबर सुन मां हीरा सरदार की आंखों में आंसू भर आए. इंडिया टुडे के मृत्युंजय से बातचीत में कहती हैं.
“मैं अपने बेटे का स्वागत नए कपड़े पहनाकर करूंगी और उसे खूब प्यार से चूमूंगी. अब मैं कभी भी अपने बेटे को बाहर काम पर जाने नहीं दूंगी.”
![बेटे के सिल्क्यारा टनल से बाहर आने पर माता-पिता हुए खुश](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202311/dedes-sixteen_nine.jpg?size=948:533)
पिंकू का भाई भी पिता की सेवा के लिए घर के पास ड्राइवर का काम करता है. वह भी भाई के मौत के मुंह से निकलने पर काफी खुश हैं.
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गहने बेचकर पिता बेटे की राह तकता रहाकिसी का एक ही बेटा बचा हो और भी त्रासदी में फंसा हो, तो कोई उस बाप के दिल से पूछे उसपर क्या बीतती है? शायद इससे बड़ा दर्द और कोई नहीं हो सकता! सुरंग में फंसे रहे यूपी के लखीमपुर के मजदूर मनजीत के घर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. पिता चौधरी 17 दिनों से गम में थे. सुरंग के बाहर बैठे-बैठे आंखें पथरा गईं उनकी.
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आजतक के अभिषेक वर्मा से उनकी बात हुई. जो बताया वो वाकई झंकझोर देने वाला था. बोले कि बड़ा बेटा कुछ साल पहले मुबंई में एक सड़क हादसे में मारा गया था. जिसके बाद बहू अपने गहने उन्हें देकर वापस मायके चली गई थी. सुरंग में जो फंसा था वो उनका छोटा बेटा है. जब उन्हें बेटे के सुरंग में फंसे होने का पता चला तो मानो सिर पर पहाड़ टूट पड़ा. समझ नहीं आया कि क्या करूं. पूरा परिवार टेंशन में आ गया.
Uttarkashi tunnel तक कैसे पहुंचे पिता?उन्होंने आगे कहा,
''मैंने बिना देर किए बेटे के पास जाने का प्लान बनाया. लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण इतने रुपये नहीं थे कि वे लखीमपुर खीरी से उत्तरकाशी जा सकें. फिर मैंने दिवंगत बेटे की पत्नी के उन गहनों को गिरवी रख दिया जिन्हें वो छोड़ गई थी. इसके बदले मुझे 9 हजार रुपये मिले. फिर मैंने उत्तरकाशी का टिकट करवाया और सिलक्यारा पहुंच गया.''
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उन्होंने आगे बताया,
''मैंने जैसे-तैसे इन रुपयों से यहां काम चलाया है. बस रोज इंतजार करता था कि कब मेरा बेटा सुरक्षित बाहर आएगा. अब जब बेटा बाहर आ गया है तो मुझे बहुत ही ज्यादा खुशी है. 9 हजार लेकर मैं यहां आया था. अब मेरे पास सिर्फ 290 रुपये बचे हैं. लेकिन मुझे कोई अफसोस नहीं है कि मैंने गहने गिरवी रख दिए क्योंकि मेरा बेटा मुझे सुरक्षित वापस मिल गया है."
फिलहाल चौधरी का बेटा अस्पताल में है. उसके पूरी तरह ठीक होने के बाद वो बेटे को साथ लेकर ऋषिकेष जाएंगे और गंगा नदी में स्नान करेंगे. फिर घर के लिए निकलेंगे.
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