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सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर मंजूरी की मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

संसद का नया भवन बनने और आसपास के इलाके में विकास का रास्ता साफ हो गया है.

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कुछ ऐसा दिखेगा नया संसद भवन. ये तस्वीर ओम बिड़ला ने ट्विटर पर शेयर की है.
कुछ ऐसा दिखेगा नया संसद भवन और आसपास का इलाका.
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सिद्धांत मोहन
5 जनवरी 2021 (Updated: 5 जनवरी 2021, 07:17 AM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखा दी है. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने मंगलवार 5 जनवरी को 2:1 के बहुमत से ये फ़ैसला दिया.  इनमें से जस्टिस संजीव खन्ना ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर आपत्ति तो नहीं उठायी, लेकिन ये ज़रूर कहा कि ये मामला जमीन के उपयोग से जुड़ा है, लिहाज़ा पहले हेरिटेज संरक्षण समिति से परमिशन लेनी चाहिए थी. किसने याचिका दायर की थी? कई लोगों ने. इनमें एक नाम है राजीव सूरी का. उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने भू-उपयोग के नियमों में परिवर्तन किया. लेकिन ऐसा करने के सारे अधिकार तो केंद्र सरकार के पास हैं.
एक और याचिकाकर्ता रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव ने भी इसे बिना किसी निष्कर्ष की औपचारिकता बताते हुए पूरी परियोजना पर सवाल उठाए थे.
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में सचिव रहीं मीना गुप्ता का नाम भी इसी फ़ेहरिस्त में लिया जा सकता है. मीना गुप्ता ने एक दरखास्त लगाकर इस परियोजना से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का हवाला दिया था. केंद्र सरकार का क्या कहना है? लेकिन केंद्र सरकार ने बारहा इस परियोजना के बारे में कहा कि इसकी देश को बहुत ज़रूरत है क्योंकि मौजूदा संसद भवन में बहुत दबाव है.
Parliament पुराने संसद भवन में जगह की क़िल्लत, पुरानी पड़ती इमारत और सुरक्षा के अभाव जैसी दलील दी जा रही हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि 1927 में बने मौजूदा संसद भवन में आग से बचाने के प्रभावी उपाय नहीं हैं. ये इमारत भूकंपरोधी भी नहीं है. मौजूदा संसद भवन में जगह की बहुत दिक़्क़त होती है. इमारत भी पुरानी पड़ती जा रही है. कई जगह दरारें दिखने लगी हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने स्वागत किया. उन्होंने कहा कि इससे केंद्र सरकार पर्यावरण और अन्य मसलों को लेकर हमेशा संवेदनशील रही है. सेंट्रल विस्टा के निर्माण में भी उच्चतम मानकों का पालन किया जाएगा. उन्होंने कहा-
दिल्ली एक वर्ल्ड क्लास कैपिटल सिटी बनने की तरफ बढ़ रही है. जब 2022 में देश आजादी के 75 साल पूरे करेगा, तब संसद की नई इमारत बनकर तैयार हो जाएगी, जो नए भारत की उम्मीदों को रेखांकित करेगी. 
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट क्या है? दिल्ली के राजपथ पर करीब 2.5 किमी लंबा रास्ता सेंट्रल विस्टा कहलाता है. राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक. सेंट्रल विस्टा में करीब 44 बिल्डिंग आती हैं. संसद भवन, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक वगैरह. इसी पूरे ज़ोन को रि-प्लान किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट का नाम है- सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट. लागत- करीब 30 हज़ार करोड़ रुपए.
इसके तहत पुराने गोलाकार संसद भवन के सामने करीब 13 एकड़ ज़मीन पर नया तिकोना संसद भवन बनेगा. इस जमीन पर अभी पार्क, अस्थायी निर्माण और पार्किंग हैं. ये सब हटेगा. नए संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक इमारत होगी, लेकिन सेंट्रल हॉल नहीं होगा. कैसा होगा नया संसद भवन? अब बताते हैं कि संसद की नई बनने वाली इमारत में खास क्या होगा. इसमें सबसे खास होंगी सहूलियतें. ये काफी आधुनिक फैसिलिटी वाली बिल्डिंग होगी ताकि कामकाज तेजी से हो सके और सांसद व अन्य लोग अच्छा महसूस करें.
# नई इमारत 2022 तक बनकर तैयार करने का लक्ष्य है. 2022 में संसद का सत्र नई बिल्डिंग में ही चलाया जाएगा, ऐसा कहा जा रहा है. नई इमारत के निर्माण में सीधे तौर पर 2000 लोग और अप्रत्यक्ष रूप से 9000 लोग जुड़ने वाले हैं.
# संसद की नई इमारत 64,500 स्क्वायर मीटर में फैली होगी. इसके बनाए जाने पर कुल खर्च 971 करोड़ आने का अनुमान है. ये नई बिल्डिंग भूकंपरोधी भी होगी.
# फिलहाल लोकसभा में 590 लोगों के बैठने की जगह है, वहीं नई लोकसभा में 888 सीटें होंगी. विजिटर्स गैलरी में भी 336 लोग बैठ पाएंगे. राज्यसभा की नई इमारत में 384 सीटें होंगी. विजिटर्स गैलेरी में 336 लोग बैठ सकेंगे. फिलहाल राज्यसभा में 280 लोगों के बैठने की जगह है.
# इस नए संसद भवन में कैफे, लाउंज, डाइनिंग एरिया, मीटिंग के लिए कमरे, अफसरों और बाकी कर्मचारियों के लिए हाईटेक ऑफिस बनाए जाएंगे.
# बिल्डिंग को ऐसा बनाया जाएगा कि आसानी से मेंटिनेंस हो सके. अपग्रेड की जब भी जरूरत हो तो आसानी से काम किया जा सके.
# साथ ही कई ज़रूरी मंत्रालय भी इसी कॉम्प्लेक्स के भीतर शिफ़्ट कर किए जायेंगे, क्योंकि केंद्र सरकार की दलील रही है कि दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में फैले मंत्रालयों में आवाजाही में बहुत समय बर्बाद होता है. आने और जाने में प्रदूषण में भी इज़ाफ़ा होता है.

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