सिंगूर में नैनो प्लांट नहीं लगने दिया, अब बंगाल को 766 करोड़ सूद समेत देने पड़ेंगे
टाटा समूह ने कहा था कि उन्होंने सिंगूर में पैसा लगाया, लेकिन प्लांट नहीं लगा तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. अब पश्चिम बंगाल सरकार को भरपाई करनी होगी.

टाटा मोटर्स (Tata Motors) ने सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस (Singur-Nano Project Case)में पश्चिम बंगाल सरकार से मुआवजे का केस जीत लिया है. टाटा मोटर्स लिमिटेड ने कहा कि एक मध्यस्थता पैनल ने सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस में पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (West Bengal Industrial Development Corporation) से ब्याज समेत 766 करोड़ रुपये की वसूली के लिए उसके पक्ष में फैसला सुनाया है.
क्या है पूरा मामला?
साल था 2006, पश्चिम बंगाल में प्रचंड बहुमत से फिर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य ने राज्य में गुजरात और महाराष्ट्र जैसे पश्चिमी राज्यों की तरह तेज औद्योगीकरण पर काम शुरू कर दिया. उन्होंने वो कदम उठाया जो राज्य की राजनीति और उनकी पार्टी की विचारधारा के एकदम विपरीत था. 18 मई 2006 को उन्होंने हुगली जिले के सिंगूर इलाके की करीब 1000 एकड़ जमीन टाटा को सौंपने का ऐलान कर दिया. यहां टाटा की लखटकिया ‘नैनो’ कार का कारखाना लगना था.
ये वो जमीन थी, जहां हजारों किसान अपने मन की फसल उगा रहे थे. कम्युनिस्ट शासित बंगाल में ये एक ऐसा ऐलान था जिसने राज्य की राजनीति पर नजर रखने वालों को हैरत में डाल दिया. क्योंकि बिग कैपिटल और बिग एस्टेबलिशमेंट का विरोध करने वाली लेफ्ट सरकार का ये बड़ा शिफ्ट था. सिंगूर के लोगों में इस फैसले से नाराजगी थी क्योंकि सरकार उनकी खेती वाली जमीन ले रही थी. हालांकि, सरकार का दावा था कि टाटा को दी जाने वाली 90 फीसदी जमीन ऐसी है जिसपर केवल एक फसल ही उगाई जाती है.

विरोध का दौर
25 मई 2006 की तारीख, टाटा कंपनी के अधिकारी सिंगूर की जमीन देखने पहुंचे. ये पहला दिन था जब सिंगूर के लोगों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की. लोगों ने टाटा के अधिकारियों का रास्ता रोक दिया. काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने रास्ता खुलवाया. 17 जुलाई 2006 को पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम ने हुगली के डीएम को जमीन के अधिग्रहण को लेकर एक प्रस्ताव दिया. जिसके बाद अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू हो गई. 3000 किसानों ने हुगली के डीएम ऑफिस के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया. सरकार ने प्रभावित किसानों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 9(1) के तहत नोटिस जारी कर दिए. इसके विरोध में आंदोलन और तेज हो गया. रोज कहीं न कहीं प्रदर्शन होने लगे, हाइवे पर चक्का जाम शुरू हो गए.

आंदोलन को राजनीतिक समर्थन,टाटा की वापसी
विपक्षी नेता के रूप में ममता बनर्जी ने 3 दिसंबर 2006 से कोलकाता में आमरण अनशन शुरू किया. इस दौरान देश के वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उनसे मुलाकात की और आंदोलन को समर्थन दिया.

तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ममता बनर्जी को चर्चा के लिए आमंत्रित किया लेकिन ममता ने ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. 12 सितंबर 2008 को फिरसे एक बैठक हुई पर ये भी बेनतीजा रही. आखिरकार 3 अक्टूबर 2008 को रतन टाटा ने कोलकाता के प्राइम होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें उन्होंने सिंगूर से बाहर निकलने की घोषणा की. इसके बाद टाटा ने गुजरात के सानंद में नैनो प्लांट लगाने की घोषणा की. प्रेस कॉन्फ्रेंस में टाटा ने कहा,
"कुछ लोग सोचते हैं कि टाटा सिंगूर प्लांट को छोड़कर नहीं जाएगा. अगर कोई इस गलतफहमी में है कि टाटा ने सिंगूर प्लांट को बनाने में करीब 1500 करोड़ रुपये का निवेश किया है, इसलिए वो इसे छोड़ नहीं सकता, तो ऐसा सोचना बिलकुल गलत है. मैं बता देना चाहता हूं कि हम अपने लोगों की रक्षा के लिए वहां से हट भी सकते हैं. मैं अपने लोगों को पश्चिम बंगाल नहीं भेज सकता, अगर उन्हें पीटा जाता रहा और वहां इसी तरह हिंसा होती रही. इसके अलावा अगर राज्य के किसी भी वर्ग को ये लगता है कि हम उनका शोषण कर रहे हैं, तो सबसे पहले यह पूरी तरह से झूठ है, लेकिन अगर यह भावना है, तो हम सिंगूर से बाहर निकल जाएंगे."
टाटा के नुकसान की भरपाई
टाटा कंपनी ने 30 अक्टूबर को बताया कि एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण (arbitral tribunal) ने पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (West Bengal Industrial Development Corp) को सिंगूर में कंपनी के मैन्यूफैक्चरिंग साइट पर हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में 766 करोड़ रुपये देने के आदेश दिया है. टाटा मोटर्स ने साल 2011 में ममता सरकार के उस कानून को चुनौती दी थी, जिसके जरिए कंपनी से जमीन वापस ले ली गई थी. जून 2012 में कोलकाता हाइकोर्ट ने सिंगूर अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया और भूमि पट्टा समझौते के तहत कंपनी के अधिकारों को बहाल कर दिया. इस फैसले के बावजूद टाटा मोटर्स को जमीन का कब्जा वापस नहीं मिला. इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. अगस्त 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नैनो प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण को अवैध घोषित किया और निर्देश दिया कि जमीन भूस्वामियों को वापस कर दी जाए.
टाटा मोटर्स ने इसके बाद ज़मीन की लीज के समझौते के एक क्लॉज का हवाला देते हुए क्षतिपूर्ति(Compensation) की मांग की. क्लॉज के अनुसार अगर जमीन के अधिग्रहण को अवैध भी माना जाए तो राज्य साइट पर लग चुकी लागत के लिए कंपनी को क्षतिपूर्ति देगा. टाटा मोटर्स ने इस मामले में मध्यस्थता की मांग की और अब करीब मामले के 7 साल ट्रिब्यूनल में रहने के बाद टाटा मोटर्स को जीत मिली है.
(यह भी पढ़ें: जब टाटा ने वर्कर्स के लिए करोड़ों का घाटा उठा लिया)
वीडियो: तारीख: कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठे दावे, जिन्ना किस बात का बदला लेना चाहते थे?