पाकिस्तान-ईरान आज तो भिड़े पड़े हैं, मगर कभी 'लंगोटिया यार' थे! फिर गेम बिगड़ा कब?
पाकिस्तान-ईरान रिश्तों का पूरा इतिहास एक क्लिक में जान लीजिए.

ईरान ने पाकिस्तान के एक आतंकवादी संगठन पर मिसाइल और ड्रोन्स से (Iran-Pakistan) हमला किया. पाकिस्तान ने इस हमले की पुष्टी की. बयान जारी किया कि ईरानी हमले में दो मासूम बच्चों की मौत हो गई है और तीन लड़कियां घायल हो गईं. इसे पाकिस्तानी संप्रभुता का उल्लंघन बताया और कहा कि करारा जवाब मिलेगा. करारा जवाब दिया भी. 18 जनवरी को ख़बर आई कि पाकिस्तान ने ईरान में सटीक टार्गेटेड हमले किये और कई 'आतंकवादियों' को मार दिया. ईरान ने पुष्टि की: पाकिस्तानी हमले में तीन महिलाएं और चार बच्चे मारे गए हैं.
दोनों देशों के हमलों के बाद पाकिस्तान और ईरान के बीच जंग की आशंका जताई जा रही है. मगर ये अदावत बहुत पुरानी नहीं है. वैसे तो पाकिस्तान सुन्नी-बहुल देश है और ईरान शिया-बहुल, मगर एक समय तक दोनों एक-दूसरे के ‘लंगोटिया यार’ हुआ करते थे.
पाकिस्तान-ईरान रिश्तों का इतिहास- दोनों देशों के बीच लगभग 909 किलोमीटर लंबी सीमा है. जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान को अलग करती है.
- 14 अगस्त, 1947 को भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना था. और जिन दिन बना, उसी रोज़ ईरान ने पाकिस्तान को मान्यता दे दी. डिप्लोमेटिक संबंध स्थापित कर लिए.
- 1965 और 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी. इसमें ईरान ने पाकिस्तान का पाला धरा. 1965 के युद्ध में पाक फ़ाइटर जेट्स बचने के लिए ईरान ही भागते थे, और वहां उन्हें शरण मिलती थी. ईरान उन जेट्स में ईंधन भी भरता था.
- रेज़ा शाह पहलवी की सत्ता में ईरान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा डोनर था. पैसा-रुपया देता था, इनफ़्रास्ट्रक्चर में निवेश करता था.
- 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई. शाह की कुर्सी चली गई. इस्लामी रिपब्लिक की स्थापना हुई. पाकिस्तान ‘नए ईरान’ को मान्यता देने की पहली फ़हरिस्त में रहा.
- 1980 में ईरान-इराक़ जंग शुरू हुई. पाकिस्तान ने ईरान का ही साथ दिया. इसी समय अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ घुसा. मुजाहिद्दीनों ने जंग शुरू की. उन्हें पाकिस्तान का साथ मिला. पैसा अमरीका, सऊदी अरब और दूसरे सुन्नी इस्लामी देशों से आया. ईरान ने भी मुजाहिद्दीनों की मदद की. मगर सिर्फ़ ताज़िक़ मूल के लोगों की.
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- 80 का दशक बीतते-बीतते ईरान-इराक़ युद्ध ख़त्म हो गया. सोवियत संघ को भी अफ़ग़ानिस्तान से निकलना पड़ा. फिर अफ़ग़ानिस्तान में नई लड़ाई शुरू हुई. मुजाहिद्दीन आपस में लड़ने लगे. पाकिस्तान ने उनको साधने की कोशिश की. वो अफ़ग़ानिस्तान में ‘किंग-मेकर’ बनना चाहता था. बात नहीं बनी, तो तालिबान बनाने में मदद की. 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया. तालिबान सुन्नी इस्लामी गुट है. उसने शिया मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया. इससे ईरान नाराज़ हो गया. बदले में उन्होंने अहमद शाह मसूद के नॉदर्न अलायंस को सपोर्ट किया. यहीं से दोनों देशों के रिश्तों में खटास पैदा हुई.
- फिर 1998 में मज़ार-ए-शरीफ़ में 11 ईरानी नागरिकों की हत्या कर दी गई. इनमें 8 डिप्लोमैट्स भी थे. ईरान ने तालिबान पर आरोप लगाया. अफ़ग़ान बॉर्डर पर 3 लाख की फ़ौज उतार दी. बाद में किसी तरह मामला शांत हुआ. चूंकि तालिबान के पीछे पाकिस्तान था, इसलिए तनाव का असर ईरान-पाकिस्तान रिश्तों पर भी पड़ा.
- फिर 11 सितंबर 2001 की तारीख़ आई. अमरीका पर आतंकी हमला हुआ. अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान में 'वॉर ऑन टेरर' शुरू किया. तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया. इसमें पाकिस्तान भी शामिल हुआ था. उसको ख़ुद को तालिबान से अलग दिखाना पड़ा. इस घटनाक्रम ने ईरान, पाकिस्तान और अमरीका को एक क़तार में ला दिया. कुछ समय तक ईरान ने वॉर ऑन टेरर को भी सपोर्ट किया. मगर अमरीका के साथ उसकी पुरानी रंज़िश भारी पड़ी. ईरान अलग हो गया.
- अगस्त 2021 में 'वॉर ऑन टेरर' ख़त्म हुआ. तालिबान की सत्ता में वापसी हुई. उसने वादा किया कि अपनी ज़मीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा. इस बार भी तालिबान को पाकिस्तान का साथ मिला. मगर ये उसकी भूल थी. तालिबान ने तहरीके-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लीडर्स को शरण दी. TTP को पाकिस्तान आतंकी संगठन मानता है. इस गुट ने पाकिस्तान में कई बड़े हमले किए हैं. इसको लेकर पाकिस्तान नाराज़गी जता चुका है. अफ़ग़ानिस्तान में हमले की धमकी भी दे चुका है. मगर अफ़ग़ान तालिबान ने उल्टा पाकिस्तान को ही लताड़ दिया.
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- तालिबान की वापसी का असर ईरान पर भी पड़ा है. ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच 972 किलोमीटर लंबी सीमा है. ईरान के चरमपंथी संगठनों को अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षित पनाह मिल रही है. वे अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल लॉन्चिंग पैड की तरह करते हैं. इसको लेकर कई बार झड़प हो चुकी है. इसमें कई ईरानी सैनिकों और तालिबानी लड़ाकों की मौत भी हुई है.
- ईरान जो इल्ज़ाम अफ़ग़ान तालिबान पर लगाता है, उसी आधार पर पाकिस्तान को भी लताड़ता है. आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाता है. हालांकि, यहां पर मामला दो-तरफ़ा है. पाकिस्तान भी ईरान पर चरमपंथियों को उकसाने का इल्ज़ाम लगाता है. पाकिस्तान और ईरान, दोनों देशों में बड़ी संख्या में बलोच आबादी रहती है. पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में.
पाकिस्तान वाले हिस्से में बलूचिस्तान लिबरेशन फ़्रंट (BLF), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच नेशनलिस्ट आर्मी (BNA) और बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) जैसे गुट एक्टिव हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि इन्हें ईरान से पैसा और सपोर्ट मिलता है. ईरान वाले हिस्से में जन्दुल्लाह और जैश अल-अदल जैसे गुट काम करते हैं. ईरान का आरोप है कि उनको पाकिस्तान से साथ मिलता है.
पाकिस्तान के जवाबी हमले के बाद युद्ध के क़यास लगाए जा रहे हैं, मगर अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी. दोनों देशों को अपने हित देखने हैं, और युद्ध दोनों में से किसी के लिए आसान नहीं होगा.