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महिला आरक्षण बिल के विरोध में वोट करने वाले 2 सांसदों का पता चल गया

महिला आरक्षण बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रस्ताव है. इसमें SC और ST के लिए आरक्षित सीटों में से भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.

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महिला आरक्षण बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रस्ताव है. (फोटो- PTI)
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प्रशांत सिंह
20 सितंबर 2023 (Updated: 20 सितंबर 2023, 10:15 PM IST) कॉमेंट्स
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महिला आरक्षण बिल लोकसभा (Lok Sabha) से पास हो गया है. Women reservation bill दो तिहाई बहुमत से पारित हुआ है. बिल के पक्ष में कुल 454 वोट पड़े हैं. वहीं इसके विरोध में मात्र 2 वोट पड़े हैं.

महिला आरक्षण बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रस्ताव है. इसमें SC और ST के लिए आरक्षित सीटों में से भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के मुताबिक महिला आरक्षण 15 साल के लिए लागू रहेगा.

AIMIM के सांसदों ने किया विरोध

बिल के खिलाफ दो सांसदों ने वोट किया, AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और उन्हीं के पार्टी के सांसद इम्तियाज जलील. आजतक के अशोक सिंघल से बातचीत में ओवैसी ने कहा कि इस आरक्षण की वजह से लोकसभा और विधानसभा में पिछड़े वर्गों (OBC) और मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व कम होगा, इसलिए उन्होंने बिल के खिलाफ वोट किया है.

ओवैसी ने कहा,

"दो बातें हैं. एक तो इस देश में ओबीसी की जनसंख्या 50 फीसदी से ज्यादा है. आज लोकसभा में सिर्फ 22 फीसद सांसद उनके हैं. अगड़ी जाति के सांसदों की संख्या 232 है. तो आप उनकी (OBC) महिलाओं को आरक्षण नहीं देंगे. दूसरा मुस्लिम महिलाएं... 17वीं लोकसभा तक 600 से ज्यादा महिलाएं सांसद हुई हैं जिनमें से 25 मुसलमान हैं. 7 फीसद मुस्लिम महिलाओं का पॉपुलेशन में हिस्सा है. अब 2.7 फीसद लोकसभा में है. उनका शामिल ना करके आप कौन सा इंसाफ करेंगे."

इससे पहले भी लाया गया था, पर पास नहीं हुआ

आज से पहले ये बिल कई बार सदन में रखा गया है. 1996 में देवगौड़ा सरकार और 1998, 1999, 2002 और 2003 में NDA द्वारा इसे लोकसभा में लाया गया. लेकिन हर बार बिल पास नहीं हुआ. UPA की सरकार के दौरान ये बिल राज्यसभा में पास हो गया था. लेकिन लोकसभा में इस पर बहस भी न हो सकी और बिल लैप्स कर गया. बीजेपी ने साल 2014 और 2019 के चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी.

गृह मंत्री अमित शाह ने बिल पर चर्चा के दौरान कहा कि ये बिल युग बदलने वाला बिल है. उन्होंने पीएम मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा,

“19 सितंबर का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. पीएम ने मातृ शक्ति को सम्मानित किया है. बिल से महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित की जाएंगी.”

अमित शाह ने कहा कि ये हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं है. ये हमारे लिए मान्यता का सवाल है. उन्होंने कहा कि ये सिद्धांत के प्रति हमारा समर्पण है.

गृह मंत्री ने कहा कि इस देश की बेटी न केवल नीतियों के अंदर अपना हिस्सा पाएंगी, बल्कि नीति निर्धारण में भी अपने पद को सुरक्षित करेंगी. शाह ने बताया,

"पार्टियों के लिए ये बिल पॉलिटिकल एजेंडा हो सकता है, लेकिन मेरी पार्टी और मेरे नेता पीएम मोदी के लिए ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है. पीएम मोदी के लिए मान्यता का सवाल है. किसी सिद्धांत के लिए किसी व्यक्ति या संस्था का आकलन करना है, तो कोई एक घटना से फैसला नहीं हो सकता."

अमित शाह ने कहा कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया. उस वक्त उनके बैंक अकाउंट में जितना भी पैसा बचा था, वो पूरा गुजरात सचिवालय के वर्ग तीन और चार के कर्मचारियों की बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई के लिए दिया गया. इसके लिए कोई कानून नहीं था.

अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस वक्त उन्होंने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा देशभर में दिया. गुजरात में उन्होंने जागरूकता पैदा की. इससे लिंगानुपात में सुधार हुआ था. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाई का फायदा ये हुआ कि एक ओर लिंगानुपात में सुधार हुआ. दूसरा गुजरात में प्राइमरी एजुकेशन में 37 फीसदी ड्रॉपआउट रेशो था, लेकिन जब मोदीजी प्रधानमंत्री बने तो ये ड्रॉपआउट रेशो घटकर 0.7 फीसदी ही रह गया. महिला सशक्तिकरण संविधान संशोधन से जुड़ा नहीं है, बल्कि ये महिलाओं के लिए सुरक्षा, सम्मान और सहभागिता का मुद्दा है.

(ये भी पढ़ें: मोदी सरकार महिला आरक्षण लाई, लेकिन लागू कब होगा? ये ट्विस्ट जानना बहुत जरूरी)

वीडियो: असदुद्दीन ओवैसी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध करते हुए जो कहा, वो आपको झकझोर देगा

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