जब नेहरू ने ओपनहाइमर से कहा, इंडियन बन जाओ
ओपनहाइमर को उनके अपने देश ने गद्दार कहा, तो नेहरू ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ओपनहाइमर (Oppenheimer) दुनिया भर में खूब देखी जा रही है. ओपनहाइमर परमाणु बम के जनक और आलोचक दोनों थे. जिस देश के लिए उन्होंने ये बम बनाया, उसी ने उन्हें गद्दार घोषित कर दिया था. और तब भारत ने उन्हें पनाह की पेशकश की थी. ओपनहाइमर की जीवनी लिखने वाले काई बर्ड ने एक इंटर्व्यू में कहा है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ओपनहाइमर को भारत की नागरिकता का ऑफर दिया था. लेकिन ओपनहाइमर ने अपने देश अमेरिका को ही चुना.
बम दिया, तब गद्दार कैसे?काई बर्ड और मार्टिन जे. शेरविन ने “American Prometheus: The Triumph and Tragedy of J Robert Oppenheimer” नाम से ओपनहाइमर की जीवनी लिखी है. 2005 में आई इसी किताब पर नोलन की फिल्म बनी है. काई बर्ड ने हिंदुुस्तान टाइम्स के प्रशांत झा को एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने ओपनहाइमर की जिंदगी से जुड़ी कई रोचक बातें बताई हैं.
काई बर्ड के मुताबिक ओपनहाइमर एक देशभक्त अमेरिकन थे. फिर उनका अपने ही देश में अपमान क्यों हुआ? इसे समझने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के उस दौर को समझना होगा. मैनहैटन प्रोजेक्ट के तहत अमेरिका गुपचुप तरीके से परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा था. इस प्रोजेक्ट का साइंटिफिक आर्म था प्रोजेक्ट Y. इसके तहत बम को डिज़ाइन किया जाना था. ओपनहाइमर को प्रोजेक्ट Y का डायरेक्टर बनाया गया. वो उस वक़्त अमेरिका में फिजिक्स के धुरंधर जानकार माने जाते थे. उन्होंने मैनहैटन प्रोजेक्ट को धार दी. और आखिरकार 16 जुलाई, 1945 को अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पहली बार परमाणु बम का सफल टेस्ट कर लिया. इसके बाद 6 अगस्त और 9 अगस्त को जापान के दो शहरों - हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने ये बम गिरा दिए. लेकिन ओपनहाइमर इन परमाणु हमलों से खुश नहीं थे.
बर्ड कहते हैं कि ओपनहाइमर के पूर्वज यहूदी थे. विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जर्मनी से यहूदियों को निकालने में मदद के लिए पैसा भेजा था. वो फासीवाद का उदय होने से डरते थे. उन्हें डर था कि जर्मनी के वैज्ञानिक एटॉमिक बम बनाकर हिटलर के हाथों में दे देंगे. और अगर हिटलर को ये बम मिल गया तो हिटलर जीत जाएगा. ये पूरी दुनिया में फासीवाद की जीत होगी, इसलिए उन्होंने अमेरिका में एटॉमिक बम बनाने की पैरवी की.
बर्ड के मुताबिक, मई 1945 में जब जर्मनी की हार हो गई तो ओपनहाइमर सहित सभी वैज्ञानिकों ने अचानक एक मीटिंग बुलाई. मीटिंग का मुद्दा ये था कि जब जर्मनी हार चुका है, हिटलर की मौत हो चुकी है, जापान में एटॉमिक बम बनाने का कोई प्रोजेक्ट चल नहीं रहा तो हम इस विनाशकारी बम को बनाने में मेहनत क्यों कर रहे हैं.
लेकिन ओपनहाइमर ने याद दिलाया कि अभी युद्ध ख़त्म नहीं हुआ है. बर्ड ने बताया,
"ओपनहाइमर ने कहा था कि मुझसे नील्स बोर (वैज्ञानिक) ने एक सवाल पूछा था, "क्या ये (परमाणु बम) काफी होगा? क्या जो गैजेट तुम बना रहे हो, वो इतना बड़ा है कि सारे युद्ध ख़त्म कर देगा?"
बर्ड के मुताबिक, ओपनहाइमर ये तर्क दे रहे थे कि अगर हमने युद्ध में इस हथियार की विध्वंसकारी ताकत नहीं दिखाई तो, अगले युद्ध में जितने देश लड़ेंगे उन सबके पास परमाणु हथियार होंगे.
लेकिन जब अमेरिका के परमाणु बम के हमलों में जापान के दो शहर तबाह हुए तो ओपनहाइमर को इसका दुःख हुआ. वो डिप्रेशन में चले गए. ठीक हुए तो उन्होंने अमेरिका में इन हमलों के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया. हमलों के करीब 9 साल बाद अक्टूबर 1954 में ओपनहाइमर ने एक स्पीच में परमाणु हथियारों को आतंक का हथियार बताया. उन्होंने कहा,
“ये आतंक के हथियार हैं. ये डिफेंसिव वेपन (रक्षात्मक हथियार) नहीं हैं. इनका इस्तेमाल उस सेना पर हुआ जो पूरी तरह हार चुकी थी.”
इस भाषण के बाद ओपनहाइमर को अपमान झेलना पड़ा. बर्ड बताते हैं कि उन्हें कोर्ट में घसीटा गया. और गलत तरीके से सुनवाई करते हुए, उनका सिक्योरिटी क्लीयरेंस निरस्त कर दिया गया. वो रिपब्लिकन सीनेटर जोसेफ आर. मैक्कार्थी की विच-हंटिंग का शिकार हुए.
बर्ड कहते हैं,
"ओपनहाइमर के इस अपमान ने बाद नेहरू ने उन्हें भारत आने और भारत की नागरिकता देने की पेशकश की. लेकिन मुझे नहीं लगता, ओपनहाइमर ने इस ऑफर को गंभीरता से लिया, क्योंकि वो एक बहुत देशभक्त अमेरिकन थे."
बर्ड के मुताबिक जापान पर हुए हमलों के कुछ महीनों बाद ही वो वाशिंगटन में लोगों से बातचीत के दौरान समझ गए थे कि जापानी सरेंडर करने के बहुत करीब थे. फिर भी जापान पर परमाणु बम दागे गए. इसके बाद ओपनहाइमर ने अपनी पूरी जिंदगी सरकार को इस बात के लिए मनाने में लगा दी कि हथियारों पर नियंत्रण के लिए एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए.
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