बिहार के उपचुनाव में तेजस्वी ने नीतीश को हरा दिया है
लेकिन इस बात पर राहुल गांधी खुश न हों तो बेहतर है.
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नीतीश और तेजस्वी. वैसे दोनों जानते हैं कि जीत या हार उन्होंने तय नहीं की.
आम चुनाव अगले साल हैं और चार राज्यों में होने वाले चुनाव साल के अंत में. लेकिन जैसे इंडिया की क्रिकेट टीम ज़्यादा दिन मैच खेले बिना नहीं रहती, वैसे ही चुनाव आयोग भी ज़्यादा दिन चुनाव कराए बिना नहीं रहता. तो ढेर सारे उपचुनाव मिलाकर एक मिनी चुनाव फिर करवा दिया गया. अलग-अलग राज्यों की 4 लोकसभा सीटों पर और 10 विधानसभा सीटों पर. 28 मई को वोट पड़े थे. आज नतीजे का दिन है. सभी की नज़र यूपी की कैराना सीट पर है. लेकिन बिहार की जोकिहाट विधानसभा सीट भी कम दिलचस्प नहीं है. हम आपको इस सीट के चुनाव नतीजे बताएंगे और साथ में वो राजनीति भी, जिसने इस नतीजे को जना.कहां है जोकिहाट?
बिहार के पूर्व में एक ज़िला है अररिया. नेपाल बॉर्डर के पास. भारत के नक्शे पर जिसे चिकन्स नेक कहते हैं, वो यहां से ज़्यादा दूर नहीं है. ज़िला मुख्यालय से थोड़ा और पूरब की तरफ बढ़ें तो आप पहुंचेंगे जोकिहाट. जोकिहाट एक कस्बा है और एक विधानसभा सीट भी. ये सीट नंबर 50 है. ये एक बहुत पिछड़ा इलाका है और बाढ़ प्रभावित भी है.

अररिया में नेपाल से पानी छूटने पर बाढ़ आ जाया करती है.
क्यों करवाना पड़ रहा है उपचुनाव? अररिया के सांसद होते थे आरजेडी के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन. 17 सितंबर, 2017 को इनका देहांत हो गया. तो सांसदी ऑफर हुई उनके 4 बेटों में से एक सरफराज़ आलम को. अब सरफराज़ होते थे जोकिहाट से जनता दल (युनाइटेड) विधायक. सांसदी के लिए उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया. जनवरी 2016 में डिब्रूगढ़ राजधानी में एक दंपति के साथ छेड़खानी के मामले में वो जदयू से निलंबित चल ही रहे थे. सो फरवरी 2018 में उन्होंने जदयू को टाटा कह दिया और अपने पापा की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में जा मिले. पार्टी ने उन्हें सांसदी का टिकट दे भी दिया और 14 मार्च, 2018 को आए नतीजों में वो सबसे आगे रहे. सरफराज़ जब सांसद हो गए, तो जोकिहाट में उपचुनाव कराने की नौबत आई.

तस्लीमुद्दी को इलाके के लोग सीमांत गांधी भी कहते थे.
जोकिहाट विधानसभा 1969 में अस्तित्व में आई. और तब से हुए 14 चुनावों में 9 बार ये सीट तस्लीमुद्दीन परिवार के पास गई. पांच बार तस्लीमुद्दीन खुद वहां से जीते थे और चार बार सरफराज़ आलम जीते हैं. सरफराज़ ने अपना पहला चुनाव बतौर आरजेडी प्रत्याशी जीता था. उसके बाद वो जनता दल यूनाइटेड में रहे. तस्लीमुद्दीन और सरफराज़ अररिया में अलग-अलग घरों में रहते थे. अब सरफराज़ की घर वापसी हो गई है. जोकिहाट में इस बार के आरजेडी प्रत्याशी शाहनवाज़ सरफराज़ के ही भाई हैं.
इस बार कौन-कौन लड़ रहा है?
एनडीए गठबंधन (जदयू) - मो. मुर्शीद आलम यूपीए गठबंधन (आरजेडी) - शाहनवाज़ आलम जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव की पार्टी) - गोसुल आज़म

शाहनवाज़ ये चुनाव बिना प्रचार के भी जीत ही जाते.
नतीजेः
28 मई को हुई वोटिंग में यहां 55 फीसदी वोट पड़े थे. शाहनवाज़ आलम को 76002 वोट मिले और मुर्शीद आलम को 37913. तो शाहनवाज़ 38089 वोट की भारी मार्जिन से जीते हैं.
शाहनवाज़ की जीत की वजह
शाहनवाज़ कुलहिया मुसलमान हैं. ये नाम फारसी शबद कुलाह से आता है. कुलाह का मतलब होता है टोपी. कुलहिया मुसलमान ये फारसी टोपी आज भी लगाते हैं. इस समाज के लोग एक वक्त मुगल फौज में होते थे और खूंखार लड़ाके माने जाते थे. ये समाज बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है. इस समाज के तकरीबन 35 लाख लोग हैं जो अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और नेपाल में बसे हैं. कुलहिया मुसलमानों के अलावा इस इलाके में दीगर मुसलमान भी बहुत हैं. अररिया में मुस्लिम आबादी 45 % के करीब है और जोकिहाट में 70 % से ज़्यादा.

तेजस्वी के साथ शाहनवाज़ (दाएं).
इलाके में पहले तस्लीमुद्दीन और फिर सरफराज़ की धाक रही है. दोनों पर हत्या की कोशिश, अपहरण और डाका डालने जैसी गंभीर धाराओं में कई मुकदमे हुए. लेकिन कोई बाप-बेटे के खिलाफ नहीं बोलता. इसीलिए जद(यू) का प्रत्याशी मुसलमान होने के बावजूद वोट नहीं बंटा. हाल ये है कि शाहनवाज़ यहां से निर्दलीय भी खड़े हो जाते तो भी जीतते ही. क्योंकि यहां वोट तस्लीमुद्दीन खानदान के नाम पर पड़ता है. विकास के मामले में ये इलाका बेहद पिछड़ा है और यहां वो चुनाव में मुद्दा बनता नहीं है.
जनता दल (यू) यहां एक सीट गंवा रहा है. तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि ये अवसरवाद पर लालूवाद की विजय है. वो कह रहे हैं कि लालू एक विचार ही नहीं वरन एक विज्ञान हैं. लेकिन जदयू और आरजेडी दोनों जानते हैं कि जदयू की हार या आरजेडी की जीत से ज़्यादा ये तस्लीमुद्दीन परिवार की जीत है.
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