अरुण योगीराज को राम की मूर्ति बनाने के लिए क्या निर्देश मिले थे, आंखों को कैसे बनाया?
योगीराज ने मूर्ति के चेहरे को बनाने के लिए ‘शिल्प शास्त्र’ की मदद ली. उन्होंने चेहरे और शरीर की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए मानव शरीर रचना से जुड़ी विज्ञान की किताबें भी पढ़ीं.

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha) का अनुष्ठान संपन्न हुआ. सोशल मीडिया पर भगवान राम की प्रतिमा की कई फोटोज़ वायरल हुईं. लोग बाल रूप वाले राम की प्रतिमा देख काफी इमोशनल नजर आए. खासकर प्रतिमा में भगवान राम की आंखें लोगों को खूब भाईं. जिसके बाद से ये चर्चा होने लगी कि प्रतिमा बनाने वाले शिल्पकार अरुण योगीराज (Arun Yogiraj) को इसे बनाने के लिए क्या-क्या निर्देश दिए गए थे? उन्होंने कैसे इस मूर्ति को बनाया?
मंदिर के ट्रस्ट ने राम की मूर्ति बनाने के लिए तीन लोगों को चुना था. अरुण योगीराज, जीएल भट्ट और सत्यनारायण पांडे. मूर्ति बनाने के लिए जो निर्देश दिए गए थे, उनमें से प्रमुख निर्देश इस प्रकार थे-
- राम का जो चेहरा बनेगा वो हंसते हुए दिखना चाहिए.
- मूर्ति दिखने में ‘दिव्य’ लगनी चाहिए.
- मूर्ति बाल रूप (5 साल के राम) की होनी चाहिए.
- मूर्ति का लुक प्रिंस या युवा राजा का होना चाहिए.
मंदिर में रखी गई जिस मूर्ति को ट्रस्ट ने चुना है, वो अरुण योगीराज ने बनाई है. उन्होंने सबसे पहले मूर्ति का रेखाचित्र कागज़ पर बनाया. जिसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू की. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार योगीराज ने मूर्ति के चेहरे को बनाने के लिए ‘शिल्प शास्त्र’ की मदद ली. आंखें, नाक, ठुड्डी, होंठ, गाल आदि को योगीराज ने बड़े ध्यान से बनाया. उन्होंने चेहरे और शरीर की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए मानव शरीर रचना से जुड़ी विज्ञान की किताबें भी पढ़ीं. यही कारण है कि मूर्ति दिखने में असल व्यक्ति जैसी नजर आती है. खासकर राम मूर्ति की आंखें, जिन्हें देखकर लगता है कि वो सीधे आपको ही देख रहे हैं. आंखों के बारे में अरुण की पत्नी विजेता ने इंडिया टुडे को बताया,
“अरुण के हाथों में जादू है. उन्हें ये निर्देश दिए गए थे कि मूर्ति को कैसे दिखना है. पर बाकी सब उनकी कल्पना है.”
क्योंकि राम की मूर्ति को पांच साल के बाल रूप में बनाया जाना था, इसलिए अरुण योगीराज ने इस पर खास ध्यान दिया. वो 5 साल के बच्चों के बारे में जानने के लिए अलग-अलग स्कूल्स गए. कई दिनों तक 5 साल के बच्चों पर रिसर्च की. विजेता ने बताया,
“अरुण ने पांच साल के बच्चों का अध्ययन किया. ये पता लगाया कि उनका पॉश्चर कैसा होता है. उनका शरीर कैसा दिखता है. साथ ही उनके चेहरे की खासियत और चेहरे के एक्सप्रेशन पर भी अध्ययन किया.”
(ये भी पढ़ें: राम की प्रतिमा के मुकुट में जड़े हैं हीरे और नीलम, जरा कीमत का अंदाज़ा तो लगाइये…)
कृष्णशिला पत्थर का इस्तेमालराम मंदिर की मूर्ति बनाने के लिए कृष्णशिला पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. ये पत्थर कर्नाटक के मैसूर के एचडी कोटे इलाके में पाया जाता है. राम मंदिर की मूर्ति बनाने के लिए इसका इस्तेमाल इस लिए किया गया है क्योंकि इस पत्थर में किसी भी तरह का केमिकल रिएक्शन नहीं होता है. क्योंकि राम मंदिर में दूध से भगवान का अभिषेक किया जाएगा, तो ये दूध प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जा सकेगा. कृष्णशिला पत्थर बिना किसी खरोंच के 1000 साल तक टिका रह सकता है.
कृष्णशिला पत्थर को बालापाड़ा कल्लू या सोपस्टोन भी कहा जाता है. पत्थर करकला के नेल्लिकारू गांव से अयोध्या ले जाया गया. ये पत्थर पवित्र माना जाता है, इसलिए साउथ इंडिया में इसी से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं. कृष्णशिला पत्थर जमीन के अंदर 50 से 60 फीट गहराई में मिलता है. इस पत्थर की खासियत ये है कि इस पर पानी, आग और धूल का असर नहीं होता है. इसे लोहे से भी ज्यादा मजबूत माना जाता है. कृष्णशिला पत्थर काफी चिकना होता है. ये नक्काशी करने के लिए काफी मुफीद माना जाता है. इस पर हाथ से नक्काशी की जा सकती है.
वीडियो: 'भगवान नहीं दिखते तब तक... ' श्रीराम की मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज की कहानी