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Exclusive: गलवान घाटी में 15 जून को तीन बार हुई लड़ाई में क्या-क्या हुआ था, विस्तार से जानिए

तीसरी लड़ाई के बाद भारत ने 16 चीनी सैनिकों के शव सौंपे थे.

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भारत औऱ चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में तीन बार हिंसक झड़प हुई.
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21 जून 2020 (Updated: 21 जून 2020, 09:46 AM IST)
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15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है. लेकिन कई सवाल अभी भी अनसुलझे हैं. सब अपनी-अपनी समझ और जानकारी के अनुसार इस बारे में बता रहे हैं. ऐसे में इंडिया टुडे ने भारतीय सेना के कई अफसरों और सैनिकों से बात की. लद्दाख में अब तक जो कुछ हुआ, उसके बारे में पता किया. जिन फौजियों से बात की गई, वे लेह, गलवान घाटी और थांग्त्से में तैनात हैं.
6 जून को जो बात बनी, 14 जून को वह बिगड़ गई
इंडिया टुडे के डिफेंस जर्नलिस्ट शिव अरूर के अनुसार, कहानी शुरू होती है 6 जून से. इस दिन दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हुई. तय हुआ कि दोनों सेनाएं पीछे हटेंगी. सेनाओं के पीछे हटने की शुरुआत गलवान घाटी में पेट्रोल पॉइंट 14 से हुई. बातचीत के दौरान ये साबित हुआ कि चीन की एक निगरानी पोस्ट लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारतीय सीमा में थी. यह पोस्ट गलवान नदी के मोड़ के शिखर पर थी. ऐसे में चीनी पोस्ट को हटाने पर सहमति बन गई. कुछ दिन बाद चीनी सेना ने इस पोस्ट को हटा भी लिया. जिस दिन पोस्ट हटाया गया, उस दिन 16 बिहार इंफेंट्री के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू की चीनी अफसरों से बात भी हुई थी. लेकिन 14 जून को मामला बदल गया.
गर्म दिमाग सैनिकों की टोली और एक शांत मुखिया
शिव अरूर ने लिखा है कि 14 जून की रात, उसी जगह चीन ने फिर से पोस्ट बना ली. ऐसे में कर्नल संतोष बाबू 15 जून को शाम 5 बजे के करीब एक टीम लेकर चीनी पोस्ट पर गए. पहले उन्होंने सोचा कि शायद गलती से यह पोस्ट फिर बनाई गई है. हालांकि उनकी टीम के नौजवान अफसर और सैनिक चीनी पोस्ट को हटाने को बेताब थे. लेकिन कर्नल बाबू ने उन्हें ऐसा करने से रोका. कर्नल बाबू की पहचान एक शांत और संयमी ऑफिसर के रूप में होती थी. वे पहले इस इलाके में कंपनी कमांडर रह चुके थे. वे नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) में इंस्ट्रक्टर भी रह चुके थे.
कर्नल संतोश बाबू.
कर्नल संतोष बाबू.

पुरानी जगह पर नए चेहरों की तैनाती
आमतौर पर मेजर रैंक के कंपनी कमांडर को एक टीम के साथ पहले जांच के लिए भेजा जाता है. लेकिन कर्नल बाबू ने फैसला लिया कि इस मामले को यूनिट के नौजवानों पर नहीं छोड़ना चाहिए. ऐसे में शाम 7 बजे वे दो मेजर सहित 35 सैनिकों की टीम के साथ पैदल ही चीन की पोस्ट पर गए. टीम के मन में लड़ाई जैसी कोई भावना नहीं थी. वो केवल पूछताछ के लिए गई थी. वे जब चीन की पोस्ट पर पहुंचे तो पता चला कि वहां मौजूद सैनिक अलग थे. वे जाने-पहचाने नहीं थे. वे सैनिक आमतौर पर उस इलाके में तैनात नहीं होते थे. 16 बिहार इंफेंट्री वहां तैनात रहने वाले चीनी फौजियों को जानती थी. ऐसे में नए चेहरों को देखकर उन्हें अचंभा हुआ.
एक नौजवान की बदतमीजी और आधे घंटे चली लड़ाई
उन्हें पता चला कि नए चीनी सैनिक तिब्बत से वहां भेजे गए थे. नए चीनी सैनिक काफी उग्र थे. जब कर्नल संतोष बाबू ने पूछा कि दोबारा से पोस्ट क्यों लगाई गई है, तो एक चीनी सैनिक ने उन्हें जोर का धक्का दिया. साथ ही चीन की भाषा में गालियां दीं. इसे देखकर भारतीय सैनिक भी उग्र हो गए. क्योंकि सेना की यूनिट में कमांडिंग ऑफिसर का सम्मान माता-पिता की तरह ही होता है. जैसे माता-पिता से बदतमीजी पर किसी को गुस्सा आता है, वैसा ही कुछ भारतीय सैनिकों के साथ हुआ. वे चीनी सैनिकों पर टूट पड़े. लड़ाई बिना हथियारों के ही हो रही थी. करीब आधे घंटे के बाद यह झगड़ा खत्म हो गया. दोनों तरफ के सैनिक जख्मी हुए थे. पर भारतीय दल हावी रहा. उन्होंने चीनी पोस्ट को तोड़ दिया और जला दिया. लेकिन अब विवाद गहरा और खतरनाक लाइन पार कर चुका था.
LAC के पार भारतीय सेना और दूसरी लड़ाई
इसके बाद कर्नल संतोष बाबू समझ चुके थे कि कुछ बड़ा हो सकता है. इसलिए उन्होंने घायल जवानों को भारतीय पोस्ट पर भेज दिया. और उनसे कहा कि ने दूसरे जवानों को यहां पर भेज दें. इस दौरान उन्होंने अपने जवानों को शांत भी कराया. साथ ही भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों को LAC के पार ले गए. ऐसे में भारतीय जवानों ने LAC पार कर ली. यह लड़ाई के दूसरा दौर की वजह बना.
शिव अरूर के अनुसार, दूसरे झगड़े में ज्यादा नुकसान हुआ. झगड़े वाली जगह से कुछ किलोमीटर दूर श्योक-गलवान घाटी के पास तैनात एक ऑफिसर ने इंडिया टुडे को बताया,
हमारे जवान गुस्से में और आक्रामक थे. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे उन्हें सबक सिखाना चाहते थे.
कर्नल संतोष बाबू को पत्थर लगा
इस समय तक अंधेरा हो चुका था. कर्नल संतोष बाबू का शक सही निकला. गलवान नदी के दोनों तरफ और घाटी में ऊपर कई सारे चीनी सैनिक पॉजीशन ले चुके थे. उन्होंने आते ही पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. रात 9 बजे के करीब कर्नल संतोष बाबू को एक बड़ा पत्थर लगा. इससे वे गलवान नदी में गिर गए. समझा जाता है कि कर्नल पर निशाना बनाकर हमला नहीं किया गया था. लेकिन उत्तेजना में कर्नल निशाना बन चुके थे.
तस्वीर में जो लाल घेरा है, उसी जगह पर 15 जून को भारत-चीन के सैनिकों में लड़ाई हुई थी. इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे.
तस्वीर में जो लाल घेरा है, उसी जगह पर 15 जून को भारत-चीन के सैनिकों में लड़ाई हुई थी. इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे.

300 सैनिक और अलग-अलग जगह लड़ाई
दूसरा झगड़ा करीब 45 मिनट तक चला. इस झगड़े में कई सारे शव इकट्ठे हो गए. अहम बात यह भी थी कि इस दौरान लड़ाई LAC पर कई अलग-अलग जगहों पर शुरू हो चुकी थी. 300 लोग अलग-अलग जगह पर आपस में लड़ रहे थे. इस दौरान चीनी सैनिकों के कंटीली तारों वाली रॉड और नुकीली कीलों वाले डंडों से हमला किया. लड़ाई रुकने के बाद नदी से भारतीयों और चीन सैनिकों के शव निकाले गए. इनमें कर्नल संतोष बाबू भी शामिल थे. लड़ाई रुकने के बाद वहां पर शांति हो गई. दोनों तरफ के सैनिक अपने-अपने इलाके में चले गए. दोनों को अपने-अपने शव ले जाने दिया गया.
रात का सन्नाटा और एक ड्रोन
शव निकालने की प्रक्रिया के दौरान ही भारतीय सैनिकों ने एक ड्रोन की आवाज सुनी. यह एक नए खतरे का संकेत था. यह संकेत था गलवान घाटी में आधी रात को भारत और चीनी सैनिकों के बीच होने वाले तीसरे आमना-सामना का. ड्रोन धीरे-धीरे घाटी की ओर आ रहा था. संभवत: वह इन्फ्रारेड कैमरा और नाइट विजन का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि चीन अपने नुकसान का आकलन कर सके और फिर से हमला कर सके.
घातक प्लाटून हाजिर हो चुकी थी
तब तक भारतीय सेना की बैकअप टीमें भी आ चुकी थीं. इनमें 16 बिहार और 3 पंजाब रेजीमेंट की घातक प्लाटून के सैनिक भी शामिल थे. आगे बढ़ने से पहले बता दें कि हर इंफेंट्री बटालियन में घातक प्लाटून होती हैं. इनका काम हमलों का नेतृत्व करना होता है.लेकिन जिस तरह की तैयारी भारत की थी, वैसी ही चीन ने भी कर ली थी. जब तक पीछे से मदद के लिए भारतीय सैनिक आए तब तक पहले वाले सैनिक चीनी सीमा में काफी आगे जा चुके थे. उन्होंने यह इसलिए किया ताकि बड़ी संख्या में चीनी सैनिक LAC के पास न जा पाएं.
 5 घंटे की खूनी झड़प के बाद विश्राम
रात 11 बजे के थोड़ी देर बाद ही तीसरा झगड़ा शुरू हो गया. यह आधी रात के बाद तक चलता रहा. यह झगड़ा नदी के किनारे संकरी और ढलान वाली जगह पर हुआ. इस वजह से दोनों तरफ के कई सैनिक गलवान नदी में गिर गए. कई चट्टानों पर गिरने से घायल हो गए. करीब पांच घंटे की हिंसक झड़प के बाद विवाद शांत हुआ. दोनों तरफ की मेडिकल टीम ने अपने-अपने सैनिकों की मरहम-पट्टी की. दोनों सेनाओं ने एकदूसरे के सैनिकों को रात में ही लौटा दिया. लेकिन भारतीय सेना से 10 जवान फिर भी चीनी सीमा में ही रह गए. इनमें दो मेजर, दो कैप्टन और छह जवान थे.
भारत ने 16 चीनी सैनिकों के शव सौंपे थे
इंडिया टुडे को जानकारी मिली है कि लड़ाई के बाद पहली बार समग्र आकलन में पाया गया कि तीसरी लड़ाई के बाद चीन को उसके 16 सैनिकों के बॉडी सौंपे गए. इसमें चीन के 5 ऑफिसर भी शामिल थे. इस तरह से 16 चीनी सैनिक युद्ध क्षेत्र में ही मरे थे. ऐसा अंदाजा है कि जिस तरह बाद में भारत के 17 जख्मी जवानों की मौत हुई, उसी तरह चीन के भी कई जख्मी जवान बाद में मारे गए थे. हालांकि इसके बारे में चीन की ओर से न कोई पुष्टि हुई है और न ही होने की संभावना है.
हम उनका इलाज कर रहे थे और वे हमारा
इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक तीसरी लड़ाई के बाद 'प्रिजनर एक्सचेंज यानी बंदी सैनिकों की अदलाबदली जैसी कोई स्थिति नहीं थी. रात के अंधेरे, युद्ध के बाद बैचेनी, जीरो से कम तापमान इन सब स्थितियों में कई सैनिक इधर-उधर रह गए. 16 जून को सुबह होते होते भारतीय सैनिक वापस एलएसी पार कर अपने पोस्ट पर लौट आए. जब ये पाया गया कि अभी भी कई सैनिक वापस नहीं लौटे हैं, तो दोनों पक्षों के मेजर जनरल ने बात की. यहां पर दोनों पक्षों के 'लापता' सैनिकों को वापस करने पर सहमति बनी. भारतीय सेना के एक अधिकारी ने कहा कि युद्ध के बाद कोई बंधक बनाने वाली स्थिति नहीं थी. हम उनके सैनिकों को मेडिकल हेल्प दे रहे थे, वे हमारे सैनिकों का इलाज कर रहे थे.
16 बिहार की डीब्रीफ रिपोर्ट में लिखा है कि चीन ने LAC पर नए सैनिकों को नियुक्त किया. इसके पीछे उसकी मंशा गलवान घाटी में आक्रामक रुख अपनाना, भारतीय पुलों को कब्जाना हो सकता था. अभी पेट्रोल पॉइंट 14 पर शांति है. नए अफसर ने 16 बिहार इंफेंट्री के कमांडिंग ऑफिसर का काम संभाल लिया है. साथ ही आने वाले दिनों में गलवान घाटी में दोनों देशों में तनाव कम होने की उम्मीद है.


Video: भारतीय सेना के 10 जवानों को चीन की कैद से कैसे छुड़ाया गया?

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