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100 रुपये की घूस को 'मामूली' बता हाई कोर्ट ने सरकारी अफसर की रिहाई रखी बरकरार

कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि 100 रुपये बहुत छोटी रकम है. 2007 में भी ये बहुत मामूली थी और 2023 में भी बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती.

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bombay high court acquits government medical officer of taking bribe saying it is trivial
अनिल शिंदे नाम के सरकारी चिकित्सा अधिकारी ने साल 2007 में 100 रुपए की रिश्वत ली थी. (सांकेतिक फोटो)
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प्रशांत सिंह
5 अक्तूबर 2023 (Published: 05:53 PM IST)
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रिश्वत नहीं लेना किसी भी कर्मचारी की मानसिकता और काम के प्रति उसकी लगन, ईमानदारी और प्रतिबद्धता को दर्शाता है. फिर चाहे रिश्वत 1 रुपये की हो या 1 करोड़ रुपये की. लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) को शायद ऐसा नहीं लगता. भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक सरकारी चिकित्सा अधिकारी को बरी कर दिया है (High court acquits medical officer). मामला 100 रुपये की रिश्वत लेने से जुड़ा था.

100 रुपये की घूस बड़ी बात नहीं?

रिश्वत लेने से जुड़ा ये मामला साल 2007 का है. बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस जितेंद्र जैन की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि 100 रुपये बहुत छोटी रकम है. 2007 में भी ये बहुत मामूली थी और 2023 में भी बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती. कोर्ट ने ट्रायल बोर्ड के आदेश को बरकरार रखते हुए अपना फैसला सुनाया. कानूनी मामलों से जुड़ी वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस जितेंद्र जैन ने कहा,

"2007 में 100 रुपये की रिश्वत स्वीकार करने का आरोप है. ये कीमत 2007 में भी कम थी और 2023, जब मामले की सुनवाई हो रही है, में भी बहुत छोटा अमाउंट लगता है. इसीलिए, ये मान भी लें कि शिकायतकर्ता अपने आरोपों को सही साबित कर सकता है (हालांकि मैंने कहा है कि आरोप साबित नहीं हुए हैं), तब भी रिश्वत की राशि पर गौर करने के बाद मेरी राय है कि इस केस का कोई महत्व नहीं है जिसमें रिहाई के आदेश को बरकरार रखने का आदेश दिया जाए."

रिपोर्ट्स के मुताबिक जस्टिस जितेंद्र ने कहा, 

"पूरे मामले में सबूतों को देखते हुए ट्रायल कोर्ट ने जो फैसला दिया था, वो पूरी तरह तार्किक है. इसलिए राज्य सरकार की अर्जी खारिज की जाती है."

मामला क्या था?

दरअसल, अनिल शिंदे नाम के सरकारी चिकित्सा अधिकारी पर साल 2007 में 100 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था. शिंदे महाराष्ट्र के पुणे जिले के पौड स्थित एक ग्रामीण अस्पताल में कार्यरत थे. रिश्वत लेने के आरोप एल टी पिंगले नाम के व्यक्ति ने लगाए थे. पिंगले ने शिंदे पर चोटों को प्रमाणित करने के लिए 100 रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया था.

इसके बाद पिंगले ने मामले की शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) में की थी. ACB ने शिंदे को पकड़ने के लिए जाल बिछाया और रिश्वत लेते हुए पकड़ लिया. डॉक्टर शिंदे पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मुकदमा भी चलाया गया. 2011 में ACB ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के सेक्शन 7 और 13 के तहत मामला दर्ज किया था. जनवरी 2012 में ट्रायल कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए आरोपी डॉक्टर को बरी कर दिया था. इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी थी. इसी आदेश पर अब कोर्ट का फैसला आया है.

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