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अयोध्या : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले जान लीजिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

और किस वजह से लोग सर्वोच्च न्यायालय गए?

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फोटो - thelallantop
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सिद्धांत मोहन
8 नवंबर 2019 (Updated: 8 नवंबर 2019, 04:47 PM IST) कॉमेंट्स
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अयोध्या का मैटर अब क्लोज़ होने की ओर है. 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फैसला सुनाने जा रहा है.लेकिन इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट इस पर एक फैसला दे चुका है. साल 2010 में कोर्ट का फैसला आया. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ के भूभाग को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़े के बीच बराबर-बराबर बांट दिया. ज़ाहिर है कि कोर्ट का ये फैसला तीनों ही पक्षों को नामंजूर था. इस वजह से तीनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए.
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अयोध्या भूमि विवाद का पूरा सच, "दी लल्लनटॉप" पर.

लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बहुत सारी बहस हुई. लम्बी-चौड़ी बहसें. कई लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अपनी तरह से देखा. सबसे पहली बात राजीव धवन की. राजीव धवन मुस्लिम पक्ष के प्रमुख वकील हैं. जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या मसले पर अपना फैसला सुनाया तो राजीव धवन ने कहा कि ये निर्णय मुस्लिमों के कानूनी अधिकार को छीन लेने वाला फैसला है.
Rajeev Dhavan 3

उन्होंने कहा था,
“ये एक तरह का पंचायती फ़ैसला है कि ज़मीन बराबर-बराबर बांट दो. ये मुस्लिमों के क़ानूनी अधिकार छीन लेता है और हिन्दुओं की भावनाओं को क़ानूनी अधिकार में बदल देता है.”
कहा जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बहुत हद तक Archaeological Survey of India के सर्वेक्षण पर आधारित था. क्योंकि हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने ही 2003 में ASI को निर्देश दिए थे कि जिस जगह पर बाबरी मस्जिद मौजूद थी, उस जगह का पुरातात्त्विक सर्वेक्षण किया जाए. इस सर्वेक्षण में पता चला कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे कई खम्भे थे, चबूतरे, कुछ सामान और मुहरें मिली थीं, जिसके बाद रामलला की ओर से मुकदमा लड़ने वाले विश्व हिन्दू परिषद् ने कहा कि ये चीज़ें प्रमाण है कि जहां अभी बाबरी मस्जिद है, वहां पहले राम मंदिर हुआ करता था.
ASI के सर्वे पर पूरी रिपोर्ट यहां पढ़िए : अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नीचे खुदाई हुई तो क्या मिल गया था?

ASI का आखिरी और निर्णायक सर्वे 2003 में हुआ. लेकिन 1975 में ही ASI के डायरेक्टर जनरल रह चुके बीबी लाल की अगुवाई में भी भूमि का एक सर्वे हुआ था. इस खुदाई में शामिल रह चुके केएल मुहम्मद ने कहा कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर मिलने के सबूत साफ़ हैं. लेकिन कई मौकों पर ये बात भी उठती रही है कि केएल मुहम्मद ASI की टीम के मेंबर ही नहीं थे, इस बात का कई लोगों ने समर्थन तो कई लोगों ने खंडन भी किया है. ASI की टीम के साथ रह चुकीं प्रिया मेनन ने अपने एक लेख में ये भी कहा है कि 2003 में अयोध्या में चल रही खुदाई को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानो इस सर्वेक्षण का रिज़ल्ट पहले ही निर्धारित कर दिया गया था.
विनोद बंसल
विनोद बंसल

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सभी पक्षों को अलग-अलग किस्म की आपत्ति थी. विश्व हिन्दू परिषद् के प्रवक्ता विनोद बंसल ने हमसे बातचीत में कहा,
'देखिए! साल 2010 में माननीय उच्च न्यायालय ने जब इस मामले में निर्णय दिया था तो उन्होंने ये साफ़-साफ़ माना था कि उस भूमि पर रामलला विराजमान का अधिकार है. निर्मोही अखाड़े को तो ज़मीन के मालिकाने से कोई मतलब नहीं था. इस मामले में हाईकोर्ट ने बहुत गंभीरता से विचार किया था. कई बिन्दुओं पर विहिप के दावों-सबूतों पर गंभीरता से विचार किया था. उन्होंने इस भूमि पर रामलला विराजमान के अधिकार की बात स्वीकार की थी. उच्च न्यायालय के पूरे निर्णय का हम बेहद खुले दिल से स्वागत करते हैं.'
विनोद बंसल ने आगे बताया,
'लेकिन पूरे फैसले के आखिर में उच्च न्यायालय की लिखी एक बात पर हमें आपत्ति थी. उन्होंने ज़मीन के बंटवारे का आदेश दिया था. पूरी ज़मीन को तीनों पक्षों के बीच बराबर-बराबर बांट दिया गया. इसे हमने एक त्रुटि की तरह देखा और सुप्रीम कोर्ट में ये मामला लेकर गए इस आशा के साथ कि इस त्रुटि में सुधार होगा.'
विनोद बंसल ने कहा कि उन्हें पूरी आशा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट जैसा ही निर्णय देगा, लेकिन ज़मीन का बंटवारा अब नहीं होगा, और ज़मीन रामलला विराजमान उर्फ़ विश्व हिन्दू परिषद् के पक्ष में आएगी.
Zafaryaab Jilani pti

हाईकोर्ट का डिसीज़न एक बड़े तबके में शान्ति स्थापित करने के प्रयास की तरह देखा गया. कहा गया कि सभी पक्षों को संतुष्ट करने की नीयत से ज़मीन का बंटवारा कर दिया गया. लेकिन एक तिहाई नहीं, बल्कि पूरे की लड़ाई थी. सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक और वकील ने बताया कि फैसले में समस्या कहां थी? नाम ज़फ़रयाब जिलानी. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से भी जुड़े हैं. उन्होंने कहा,
'इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में निर्णय देते हुए दोनों ही पक्षों को आस्था के आधार पर मापा था. लेकिन साथ ही साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में हमने सारे साक्ष्य रखे थे, जिसमें हमने ये दिखाया था कि कई सालों से अयोध्या में बाबरी मस्जिद में नमाज़ अदा की जाती रही है.'
हाईकोर्ट के निर्णय पर आते हुए उन्होंने कहा,
'हाई कोर्ट ने ज़मीन का बंटवारा कर दिया. लेकिन जब हमने साक्ष्य रखे कि मस्जिद पुरानी है और लम्बे समय से वहां नमाज़ अदा की जाती रही है, तो हमने जितना जल्दी हो सके सुप्रीम कोर्ट में अपील की. हमारे पास साक्ष्य हैं, इसलिए हमने ज़मीन के बंटवारे को सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज किया.'
ये बातें हो गयीं इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय की. और उस पर आई मुख्य आपत्तियों की भी. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है. 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी हुई. अब फैसले का इंतजार है. 17 नवंबर को सीजेआई रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं. राम मंदिर मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच को वही लीड कर रहे हैं. ऐसे में उनके रिटायर होने से पहले फैसला आ जाएगा.


लल्लनटॉप वीडियो : अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन में क्या किया कि बवाल मच गया?

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