लॉकडाउन की वजह से राज्यों का रेवेन्यू घटा है. पैसों के मामले में हाथ तंग है. अब धीरे-धीरे छूट मिलने से शायद इसमें कुछ सुधार हो. बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने केंद्र सरकार से एक अपील की है. उन्होंने कहा कि केंद्र-राज्य सहयोग वाली योजनाओं का पूरा खर्च एक साल के लिए केंद्र सरकार उठाए. ये केंद्र की तरफ से स्पॉन्सर की जाने वाली योजनाएं हैं. बिहार में ऐसी 66 योजनाएं हैं, जिनमें केंद्र और राज्य दोनों की हिस्सेदारी है. इनमें मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, मिड डे मील जैसी योजनाएं अहम हैं. इनमें से ज़्यादातर में केंद्र-राज्य का शेयर अनुपात 60:40 है. कुछ में ये अनुपात 50:50 का है.
बिहार में एनडीए की सरकार है. बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी ने इस बारे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि ये सभी योजनाएं 2020-21 के लिए बंद हो सकती हैं, अगर केंद्र, राज्य का शेयर वहन नहीं करता है. उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में बिहार सरकार ने 66 योजनाओं में करीब 10,000 करोड़ रुपए खर्च किए. लॉकडाउन की वजह से बिहार इस स्थिति में नहीं है कि अपना शेयर दे सके. बिहार में अप्रैल से अब तक रेवेन्यू में 85 फीसदी की कमी देखी गई.
पिछले वित्तीय वर्ष का ब्यौरा दिया
सुशील मोदी के पास बिहार का वित्त विभाग भी है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, उन्होंने मनरेगा के लिए 1,210 करोड़ रुपए, आपदा के लिए 708 करोड़ रुपए और नगरीय निकायों के लिए 502 करोड़ रुपए देने के लिए केंद्र सरकार का धन्यवाद भी किया. उन्होंने बताया कि 2019-20 में इन 66 योजनाओं में 25,650 करोड़ रुपए खर्च हुए. इनमें केंद्र की तरफ से राज्य को 15,513 करोड़ रुपए दिए गए. राज्य को अपनी तरफ से 10,137 करोड़ रुपए देने पड़े.
प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना चुनौती
इसी तरह मिड-डे मील योजना के लिए बिहार को 1,092 करोड़ रुपए केंद्र की तरफ से मिले. राज्य ने 728.75 करोड़ रुपए दिए. समग्र शिक्षा अभियान के लिए केंद्र ने 3,268 करोड़ दिए और राज्य ने 2,177 करोड़ रुपए. सुशील मोदी ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से बहुत सी राज्य सरकारों के लिए मुश्किल होगा कि वो इतनी बड़ी राशि दे पाएं. बिहार में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर भी लौट रहे हैं. उनके लिए रोजगार भी बिहार सरकार के सामने बड़ी चुनौती है.
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