ज़मीनी हकीकत (पार्ट-9): पीएम मोदी की इस योजना का पता केंद्रीय मंत्री के गांव वालों को भी नहीं!
इस योजना से किसानों का कितना भला हुआ जानिए.
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पीएम नरेंद्र मोदी काफी पहले के एक मौके पर एक किसान के साथ. किसानों के लिए उनकी योजना फसल बीमा का जायजा हमने ज़मीन पर जाकर यूं लिया. (फोटो: इंडिया टुडे/दी लल्लनटॉप)
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की ज़मीनी हकीकत जानने के लिए हमने चुना बिहार के पूर्वी चंपारण जिले को. ये जगह इसलिए क्योंकि केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह पूर्वी चंपारण से सांसद हैं. 26 मई 2014 को उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया था. क्षेत्र में इस योजना की स्थिति पर बात करने से पहले जानते हैं इस योजना के बारे में.
क्या है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
# प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी, 2016 को किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की.
13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट. (फोटो: ट्विटर | नरेंद्र मोदी)
# किसान के पास खेत हो या न हो, वो खेती करता है, तो उसकी फसल का बीमा होगा. बाढ़, बारिश, ओला, सूखा या आंधी जैसी किसी प्राकृतिक आपदा से फसल खराब हो जाती है, तो मुआवजा मिलेगा.
# फसल बोने के 10 दिन के अंदर बीमा करवाना ज़रूरी होता है. अगर फसल कटने के14 दिन के अंदर बारिश या किसी और वजह से फसल खराब हो जाए, तो बीमा का पैसा मिलेगा.
# किसी भी किसान को खरीफ के लिए कुल बीमा की राशि का 2 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है. रबी की फसल के लिए कुल बीमा राशि का 1.5 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है. अगर कोई नकदी फसल या बागवानी की फसल है तो इसके लिए किसान को कुल बीमा राशि का 5 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है.
# फसल खराब होने की स्थिति में किसान बीमा कंपनी को सूचना देता है. अगर फसल खराब हुई है तो बीमा कंपनियां अपने प्रतिनिधियों के जरिए सर्वे करवाती हैं. सर्वे करवाने के 30 दिन के अंदर पैसे किसानों के खाते में भेज दिए जाते हैं. अगर किसान बीमा कंपनी से संपर्क नहीं कर पाता है, तो किसान अपने नज़दीकी बैंक या फिर अधिकारी को सूचना दे सकता है.
पूरे देश में सरकार के दावे क्या हैं?
मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 2017 की खरीफ की फसल के आंकड़े वेबसाइटपर डाले हैं. इनके मुताबिक -
1. इसमें इंश्योर्ड किसानों की संख्या लगभग साढ़े तीन करोड़ है. 2. बीमा के लिए किसानों ने प्रीमियम के तौर पर 3 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए चुकाए. 3. पीड़ित किसानों को बीमा राशि के तौर पर 17 हजार करोड़ से ज्यादा का क्लेम मिला. 4. इसमें कुल 13 लाख से ज्यादा किसानों को फायदा हुआ.

राज्यवार 2017 की खरीफ के आंकड़े. (फोटो: pmfby.gov.in)

केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह.
आइए जानें योजना का जमीन पर हाल
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले का नरहा पानापुर गांव. मुख्यालय मोतिहारी से करीब 45 किलोमीटर दूर इस गांव में शाम के करीब 4 बज रहे हैं. गांव के मोड़ पर ही चाय की एक दुकान है. 10-12 लोग बैठकर चाय पी रहे हैं. चुनावी चकल्लस चल रही है. इसी दौरान मसला उठता है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का. इसे सुनते ही साइकल से बाजार से वापस लौट रहे बुधन राय अपनी साइकल से उतर जाते हैं और बातचीत में शामिल हो जाते हैं. करीब चार बीघा खेत के मालिक बुधन राय कहते हैं कि इस बार उन्होंने गेहूं, तोड़ा, मकई और आलू की खेती की है. पिछली साल भी यही खेती की थी और फसल बर्बाद हो गई थी. फिर क्या हुआ? बुधन राय कहते हैं-''आज ले एको पैसा ना मिलल.'' (आजतक एक भी पैसा नहीं मिला)कहते हैं कि फसल बीमा योजना के बारे में वो जानते तो हैं, लेकिन गांव के लोग जानने नहीं देते हैं. गांव के ही कुछ लोग कहते है-
"हो गइल, हो गइल, बीमा हो गइल. ब्लॉक में होत हौ, अब न मिलतई." (हो गया, हो गया, बीमा हो गया. बीमा ब्लॉक में ही होता है, अब नहीं मिल रहा.)बुधन राय दो बार ब्लॉक में भी गए थे. वहां उनसे कहा गया-
''अब नहीं मिलता, घर जाओ, फंड खत्म हो गया है. इतने दिन से कहां थे? जब जाओ, यही जवाब मिलता है. मंत्रीजी आते हैं, दो चार लोगों से मिलते हैं और कहते हैं कि अब वक्त नहीं है, कहीं और जाना है."

बारिश नहीं होने की वजह से आलू की फसल बहुत खराब हुई है. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
वो बार-बार ब्लॉक से लौटते हैं और हार कर फसल बीमा योजना की कोशिश छोड़ देते हैं. कहते हैं-
''जे पढ़े लिखे वाला न है, जेकरा पास कम खेत है, जेकरा घर का कोट-कचहरी में न है, वही कमजोर वरग है. उसको फायदा नहीं मिलता है. कोई बताएगा तब न पता चलेगा कि बीमा कइसे होता है, उसका पइसा कइसे मिलता है. कोई आता ही नहीं है.''इसी गांव के 65 साल के बुजुर्ग वीरेंद्र पांच एकड़ ज़मीन के मालिक हैं. खेत में गेहूं, मकई, तीसी (अलसी) और केराय (मटर) जैसी फसल बोते हैं. कहते हैं कि योजना संतोषजनक नहीं है. उन्हें कभी इसका फायदा नहीं मिला है. पदाधिकारी से लेकर गांव के 5-10 फीसदी ताकतवर लोग हावी हो जाते हैं और उनके जैसे लोगों को इसका फायदा नहीं मिलता है. फसल खराब हो जाती है तो घर की लागत चली जाती है. फिर खेती करने के लिए किसी साहूकार-महाजन से कर्ज लेते हैं, किसी से उधार मांगते हैं और अगली खेती कर पाते हैं. जीने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. वही कर रहे हैं.
वीरेंद्र इन ताकतवर लोगों के बारे में भी बताते हैं. कहते हैं कि मंत्रीजी के लोग हैं. सारा फायदा उन्हें ही मिलता है. और मंत्रीजी कौन हैं? राधामोहन सिंह. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री. नरहा पानापुर उनका पैतृक गांव है और पूर्वी चंपारण उनका लोकसभा क्षेत्र. वीरेंद्र कहते हैं-
वो कभी-कभी ही अपने गांव आते हैं और कुछ खास लोगों से मिलकर लौट जाते हैं. गांव आते हैं तो हम मिलने की भी कोशिश करते हैं लेकिन उनके लोग मिलने ही नहीं देते. न गांव में सुनवाई है और न ही बाहर. हम क्या ही करें.ठीक ऐसी ही स्थिति हरसिद्धपुर ब्लॉक के कोबेया गांव के आलू किसानों की भी है. किसान अशोक यादव और उनके पिता मज़दूरों के साथ आलू के खेत में खड़े हैं. मज़दूर खेत खोदकर आलू निकाल रहे हैं. खेत के बाहर उनका ट्रैक्टर है और पास वाले प्लॉट में डीज़ल इंजन से पानी चल रहा है. मज़दूर जैसे-जैसे आलू की फसल खोदते जा रहे हैं, अशोक के पिता की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. बारिश न होने की वजह से आलू की फसल इतनी खराब हुई है कि उन्हें इस साल अपना घर चलाने में भी मुश्किल आएगी. अशोक को फसल बीमा योजना का फायदा नहीं मिला, क्योंकि बार-बार बैंक वालों ने उन्हें वापस लौटा दिया है. बैंक वाले कह रहे हैं कि फसल बीमा नहीं हो सकता. पहले कागज़ लेकर आओ. कागज़ लेकर जाते हैं तो पैसे मांगते हैं. पैसे नहीं दिए तो बीमा भी नहीं हुआ. अब आलू की फसल खराब हो गई. बीमा रहता, तो मुआवजा मिल जाता.

अशोक यादव की आलू की फसल खराब हो गई. बीमा होता तो मुआवजा मिल जाता. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
लेकिन बिहार सरकार ने तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से खुद को अलग कर लिया है और अपनी नई स्कीम लॉन्च कर दी है. हाथ में टच स्क्रीन वाला मोबाइल पकड़े अशोक बताते हैं कि उन्हें तो इसके बारे में पता ही नहीं है. कागज लेकर जाते हैं तो बैंक वाले कहते हैं कि अगले साल आना. ये अगला साल कभी नहीं आता है. अशोक के बगल में खड़े रघुनाथ प्रसाद भी इस बातचीत में शामिल हो जाते हैं. रघुनाथ ने आलू की खेती की है. खेत से आलू निकालने के बाद अब वो उस खेत में करेला बोने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कभी अपनी फसलों का बीमा नहीं करवाया है. उनके पास किसान क्रेडिट कार्ड जैसी बुनियादी चीज भी नहीं है. और वो कहते हैं कि हमें उसकी गरज भी नहीं है, अपना काम हम खुद कर लेते हैं. रघुनाथ कहते हैं-
''जो लोग ब्लॉक से जुड़ा हुआ है, वो दूसरे के खेत पर खड़े होकर फोटो खिंचा लेते हैं,उनका कागज ले लेते हैं और फिर उनके नाम पर किसान क्रेडिट कार्ड और फसल बीमा का फायदा ले लेते हैं. यहां का कृषि विभाग ऐसा है कि जो पैसा देता है उसका काम होता है, जो नहीं देता है उसका काम नहीं होता है.''लेकिन बैंकों ने किसानों को पैसे दिए हैं. 2017 में जब पूर्वी चंपारण में बाढ़ आई थी तो अकेले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने पूरे जिले में करीब 70 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया था. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के रीजनल मैनेजर शिव प्रकाश झा खुद इसकी तस्दीक करते हैं.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के रीजनल मैनेजर शिव प्रकाश झा (फोटो: दी लल्लनटॉप)
कहते हैं कि 2018-19 से व्यवस्था बदल गई और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जगह राज्य सरकार ने अपनी बीमा पॉलिसी शुरू कर दी. लेकिन पैसे कहां गए और किन किसानों को मिले, इसका जवाब मिलता है मोतिहारी मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर बापू धाम चंद्रहिया गांव में. इस गांव को कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने गोद ले रखा है. गांव में बापू की एक मूर्ति लगी है. मूर्ति के पास दो बोर्ड लगे हैं जो इस गांव की खासियत बताते हैं. एक बोर्ड बताता है कि महात्मा गांधी को इसी गांव में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें गांव छोड़ने का आदेश दिया गया था. दूसरा बोर्ड बताता है कि कैसे चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर चंद्रहिया गांव का नाम बदलकर बापूधाम चंद्रहिया कर दिया गया और गांव के लिए कितना विकास किया गया. बापू की मूर्ति के सामने कुछ लोग बैठे हैं.

चंद्रहिया गांव, जहां महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया था. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
इन्हीं में से एक हैं रहमान मियां. 70 से कुछ अधिक की उम्र. झक सफेद कुर्ता और लुंगी. कंधे पर सफेद गमझा. दाढ़ी-बाल पूरी तरह से सफेद हो चुके हैं. बताते हैं कि गेहूं और दलहन की फसल बोई है. मकई नहीं बो पाए हैं. लेकिन कभी फसल का बीमा भी नहीं करवाया है. उनके पास ही फूला देवी खड़ी हैं. आधा बीघा यानी कि पांच कट्ठा खेत हैं. कुछ और खेत बटाई पर लेकर खेती करती हैं. उन्होंने भी बीमा नहीं करवाया है, लेकिन इसका दोष वो सरकार से ज्यादा खुद को देती हैं. कहती हैं-
''मैंने तो जाकर बीमा ही नहीं करवाई. ऐसे में सरकार की क्या गलती है?''

रहमान मियां को चीजें पता नहीं थी और फूला देवी ने पता रहते भी बीमा नहीं कराया. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
अभी ये बात हो ही रही थी कि सफेद पैंट-शर्ट पहने किरानी दास भी बापू की मूर्ति के सामने पहुंच गए. किरानी दास अखबार पढ़ते हैं और खबरों से अपडेट रहते हैं. उन्हें पता है कि फसल बीमा योजना जैसी भी कोई चीज है. 2018 में किरानी दास ने अपने गेहूं की फसल का बीमा करवाया था. ओले पड़े और पूरे इलाके की फसल चौपट हो गई. किरानी दास बताते हैं कि उस वक्त उन्हें बीमा का पैसा मिला था. और उन्हें ही क्यों, खेत के हिसाब से और भी लोगों को पैसा मिला था. वहीं एक सज्जन बताते हैं कि उन्होंने अपनी धान की फसल का बीमा करवाया था. ओले पड़े और धान की फसल का नुकसान हो गया. पूरे इलाके के लोगों की फसल खराब हो गई, लेकिन उन्हें अभी तक पैसा नहीं मिला है. इस बात को एक साल से ज्यादा का वक्त बीत गया है. हालांकि वो कहते हैं कि 2016 में जो नुकसान हुआ था, सरकार ने उसकी भरपाई कर दी है.

किरानी दास सहित कुछ लोगों ने बीमा ले रखा था. ऐसे में उन्हें जो भी नुकसान हुआ सरकार ने उसकी भरपाई कर दी है. कुछ किसानों को अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
वहीं मोठ लोहियार नोनियावां टोला के किसान जयकरण महतो अपने खेत में थे. उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज दी कि शर्बत लेकर आओ. पत्नी तो बाहर नहीं आईं, घर के ही कुछ लोग एक बाल्टी में चीनी घोलकर लाए और पीने को दिया. बोले, जो हमारे पास है, वो आपको पिला रहे हैं. पैरों में फटी बिवाइयों के बाद भी अपने खेत में खड़े जयकरण महतो बोले-
"हमें किसी योजना का फायदा नहीं मिलता. ब्लॉक पर जाने पर सभी पैसे मांगते हैं. पैसे नहीं देने पर खाता नहीं खुलेगा. वे लोग बीमा कहां से कर देंगे."गांव की ही मीना देवी भी कहती हैं-
"बीमा नहीं हुआ है. किसी ने बताया भी नहीं कि कैसे होगा. मुझे जो समझ आ रहा है करती जा रही हूं."

जयकरण महतो से बीमा करवाने के लिए पैसे मांगा गया और मीना देवी को चीजों के बारे में किसी ने कुछ नहीं बताया. (फोटो: दी लल्लनटॉप)
अभी जयकरण महतो और उनके साथियों से बात हो ही रही थी कि बिहार नवयुवक सेना के अध्यक्ष अनिकेत पांडेय पहुंच गए. बोले-
''खाते से पैसा भी कट गया, फसल का बीमा भी हुआ. लेकिन 2014-15, 2015-16 और 2016-17 तक का पैसा अभी तक नहीं मिला है.''लेकिन बिहार बीजेपी के किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुछ दूसरी ही बात कहते हैं. वो कहते हैं-
''पिछले साल 1 लाख 11 हजार लोगों को फसल बीमा योजना का लाभ मिला है. जब कोई योजना शुरू होती है, तो शुरुआत में कुछ दिक्कतें होती हैं. उन दिक्कतों को दूर किया जा रहा है और संख्या को बढ़ाया जा रहा है.''

बीजेपी के किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह (फोटो: दी लल्लनटॉप)
हमारा निष्कर्ष
दिक्कतें हैं और वाकई हैं. सरकार कोई भी हो, किसानों की इन दिक्कतों को हर हाल में दूर करना ही होगा. और इसके लिए -# सरकार को चाहिए कि वो हर गांव में कैंप लगाए और किसानों को फसल बीमा योजना की जानकारी दे.
# बैंक और बीमा कंपनियां गांव-गांव अपने प्रतिनिधियों को भेजें और ये सुनिश्चित करें कि कोई भी किसान बीमा से छूटा नहीं है.
# ब्लॉक स्तर पर ये तय किया जाए कि अगर कोई किसान वहां पहुंचता है तो उसका रजिस्टर मेंटेन किया जाए, कृषि सहायक उसे अटेंड करें और उसकी दिक्कतों को दूर करें.
# किसी सरकारी अधिकारी की जिम्मेदारी तय की जाए वो बैंक और बीमा कंपनियों पर चेक एंड बैलेंस बनाए रखे और देखें कि क्या वक्त पर मुआवजे की रकम मिल रही है.
# बीमा कंपनी के अधिकारी स्थानीय स्तर पर अपने प्रतिनिधियों की नियुक्ति करें, जो बैंक के साथ तालमेल बनाए और किसानों का फसल बीमा सुनिश्चित करवाए.
Video: किसानों के लिए शुरू हुई फसल बीमा योजना के बारे में जानते भी नहीं कृषि मंत्री के गांव वाले