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राज्यसभा में पास हुए नागरिकता संशोधन विधेयक में दरअसल लिखा क्या है?

इस बिल का पूर्वोत्तर के राज्यों में भारी विरोध हो रहा है. इससे जुड़ी हर डीटेल जान लीजिए.

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नागरिकता संशोधन विधेयक, नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव करेगा.
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रजत
11 दिसंबर 2019 (Updated: 13 दिसंबर 2019, 10:30 AM IST)
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नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 यानी सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल 2019 जो 11 दिसंबर को राज्यसभा से पास हो गया. राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 125 और विरोध में 105 वोट पड़े. गृह मंत्री अमित शाह ने ये बिल 9 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया था. लोकसभा में  इस बिल के पक्ष में 311 वोट, वहीं विरोध में 80 वोट पड़े थे. अब इस बिल को राष्ट्रपति की मंजू़री के लिए भेज जाएगा. मंज़ूरी मिलने के बाद बिल कानून की शक्ल ले लेगा.
जनवरी, 2019 में भी सरकार ने इस बिल को कानून में बदलने की कोशिश की थी. 8 जनवरी, 2019 को लोकसभा से ये बिल पास भी हो गया था. लेकिन 16वीं लोकसभा का कार्यकाल ख़त्म होने की वजह से ये बिल रद्द हो गया.
मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री मोदी.
मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री मोदी.

इस बिल को नागरिकता कानून,1955 में संशोधन करने के लिए लाया गया है. नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को भारत में जन्म होने, माता-पिता के भारतीय होने या फिर किसी भारतीय नागरिक से शादी करने पर नागरिकता मिल सकती है. इसके अलावा भी कुछ निश्चित समय तक भारत में रहने और ज़रूरी कानूनी शर्तें पूरी करने भी भारत की नागरिकता हासिल की जा सकती है.
जिनके पास यहां रहने का कानूनी हक़ नहीं है, उन्हें विदेशी नागरिक अधिनियम 1946
और पासपोर्ट एक्ट 1920
के तहत वापस उसके देश भेजा सकता है. सरकार चाहे तो उसे जेल में भी रख सकती है.
पढ़ेंनागरिकता कानून, 1955 के बारे में विस्तार से यहां पढ़ें

इस आर्टिकल में हम बात करेंगे नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर. आखिर क्या है इसमें? इसका असर किन पर होगा? और क्यों इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में बवाल हो रहा है? इन सवालों के जवाब यहां पढ़ें आसान भाषा में-
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 क्या है?पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान के अल्पसंख्यक, जो अपने देश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हुए और भारत में आकर रह रहे हैं. इस बिल में उन्हें भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान के अल्पसंख्यकों में हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्म के लोग शामिल हैं. जो फिलहाल भारत में अवैध प्रवासी हैं. कानून बनने के बाद ये भारत केे नागरिक बनने के पात्र हो जाएंगे.
पाकिस्तान से भारत में आए शरणार्थी.
पाकिस्तान से भारत में आए शरणार्थी.

इसके अलावा इस बिल में विदेशों में रहने वाले भारतीय नागिरकों के OCI कार्ड (ओवरसीज़ सिटिज़न ऑफ़ इंडिया कार्ड) कैंसिल करने के लिए प्रावधान जोड़ा गया है. अब अगर कोई OCI कार्डधारक केंद्र सरकार की ओर से नोटिफाइड किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसका विदेशी भारतीय नागरिक होने का दर्जा ख़त्म किया जा सकेगा.
प्रवासी भारतीय नागरिक कार्डधारक भारत में आसानी से आ-जा सकते हैं. काम कर सकते हैं.
प्रवासी भारतीय नागरिक कार्डधारक भारत में आसानी से आ-जा सकते हैं. काम कर सकते हैं.

साथ ही भारत में रह रहे विदेशी भारत की नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकेंगे. नागरिकता अधिनियम के तहत बीते 14 सालों में से 11 साल भारत में बिताने वाले और बीते 12 महीनों से लगातार भारत में रह रहे लोग नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. 2019 के इस संशोधन के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों के लिए 11 साल भारत में बिताने की शर्त घटाकर 6 साल की गई है.
हालांकि, पूर्वोत्तर के सातों राज्यों (इन राज्यों के कुछ हिस्सों को छोड़कर) को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 से छूट मिली हुई है.
बिल में क्या हैं नागरिकता की शर्तें?नागरिकता संशोधन बिल, 2019 का फायदा भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों को मिलेगा. संशोधन के बाद इन चार शर्तों को पूरा करने वाला अवैध प्रावसी भारत का नागरिक होगा. 1. वो हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध,पारसी या जैन धर्म को मानने वाला हो 2. वो अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हो 3. वो भारत में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आया हो 4. वो असम, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा के उन हिस्सों में जहां संविधान की छठी अनुसूची लागू हो और इनर लाइन परमिट के तहत आने वाले अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड में न रह रहा हो.
छठी अनुसूची में असम के कर्बी एंगलॉन्ग, मेघालय की गारो हिल्स, मिज़ोरम के चकमा डिस्ट्रिक्ट और त्रिपुरा के ट्राइबल एरिया जिले को शामिल किया गया है. इनर लाइन परमिट की प्रक्रिया 1873 के बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत लागू है. इसके चलते इन राज्यों में जाने के लिए भारतीय नागरिकों को भी एक परमिट की ज़रूरत होती है. मणिपुर राज्य में फिलहाल इनर लाइन परमिट लागू नहीं है. लेकिन केंद्र सरकार ने मणिपुर में इस संशोधन से पहले इनर लाइन परमिट लागू करने की बात कही है. इससे मणिपुर पर भी नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के प्रावधान लागू नहीं होंगे.
गृह मंत्री के आश्वाशन और बिल में किए गए प्रावधानों के बाद भी पूर्वोत्तर में विधेयक का विरोध हो रहा है.
गृह मंत्री के आश्वाशन और बिल में किए गए प्रावधानों के बाद भी पूर्वोत्तर में विधेयक का विरोध हो रहा है.

सिर्फ तीन देश ही क्यों? CAB केवल तीन देश - पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले लोगों पर ही लागू होगा. सरकार का तर्क है कि इन राज्यों के संविधान में इस्लाम को देश का धर्म माना गया है. ऐसे में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया जाता है. परेशान होकर भारत में शरण लेने वाले इन लोगों को भारत की नागरिकता और सभी अधिकार दिए जाएंगे. विधेयक में कहा गया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे लाखों लोग अविभाजित भारत का हिस्सा थे. हालांकि अफ़गानिस्तान को क्यों इसमें जोड़ा गया, उसपर कोई भी स्पष्टिकरण सरकार की ओर से नहीं दिया गया है.
लेकिन बड़ा सवाल तो ये है?बड़ा सवाल ये है कि भारत की सीमा से लगे चार और देश हैं. नेपाल, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका. भारत सरकार ने वहां के शरणार्थियों के बारे में क्यों नहीं सोचा? नेपाल और भूटान मित्र राष्ट्र हैं. वहां भारतीयों के आने-जाने या इन देशों के नागरिकों को भारत में आने-जाने की कोई समस्या नहीं है. यहां की आबादी भी ज्यादातर हिंदू और बौद्ध हैं. लेकिन श्रीलंका के संविधान में राष्ट्रीय धर्म बौद्ध बताया गया है. म्यांमार के संविधान में भी बौद्ध धर्म को तरजीह देने की बात लिखी है.
तमिल रिफ्यूज़ी. तस्वीर- पीटीआई
तमिल रिफ्यूज़ी. तस्वीर- पीटीआई

इस बिल का मकसद था धार्मिक आधार पर प्रताड़ना सहने वाले शर्णार्थियों को नागरिकता का पात्र बनाना. श्रीलंका में तमिलों के साथ धार्मिक प्रताड़ना के तमाम मामले सामने आए हैं. वहीं म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों को सेना और धर्मिक प्रताड़ना के आधार पर देश छोड़ना पड़ा है. लेकिन भारत सरकार ने इन्हें नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 में शामिल नहीं किया है. इस पर सरकार ने कोई स्पष्टिकरण नहीं दिया है. गृह मंत्री अमित शाह ने सिर्फ इतना कहा कि
'रोहिंग्या (मुस्लिमों) को कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा.'
इनके अलावा अहमदिया मुस्लिम समुदाय भी है. इन्हें पाकिस्तान में मुस्लिम नहीं माना जाता. इन्हें भी धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया गया है. लेकिन इस बिल में अहमदिया मुस्लिमों के लिए कोई संरक्षण नहीं है.
रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार के रिखाइन प्रांत से भागना पड़ा था. उन्हें बौद्ध धर्म को तरजीह देने वाली सरकार और आर्मी द्वारा की प्रताड़ना की वजह से म्यांमार छोड़ना पड़ा है.
रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार के रिखाइन प्रांत से भागना पड़ा था. उन्हें बौद्ध धर्म को तरजीह देने वाली सरकार और आर्मी द्वारा की प्रताड़ना की वजह से म्यांमार छोड़ना पड़ा है.

विपक्ष क्यों है विरोध में?कांग्रेस, DMK, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों ने सरकार की ओर से लाए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 का विरोध किया है. इनका कहना है कि ये संशोधन भारत के संविधान के आर्टिकल 14,15,21,25 और 26 के ख़िलाफ है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा,
'ये बिल समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. संविधान के तहत धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता.'
कई सदस्यों ने श्रीलंका में प्रताड़ना सह रहे तमिलों को शामिल न करने का विरोध किया. NCP सांसद सुप्रिया सुळे ने कहा,
'हमारा संविधान समानता पर आधारित है और आर्टिकल 14 और 15 की बात करता है. मैं गृह मंत्री की बात से सहमत नहीं हूं. इसे (बिल को) सुप्रीम कोर्ट खारिज कर देगा. मैं उन्हें इस बिल पर दोबारा विचार करने और इसने वापस लेने की गुज़ारिश करती हूं.'
पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा विरोधCAB का विरोध संसद से ज़्यादा सड़क पर हो रहा है. 10 दिसंबर को असम में 12 घंटे का बंद बुलाया गया था. इस बंद में 16 संगठन शामिल थे. कई जिलों में धारा 144 लागू थी. बंद के मद्देनज़र त्रिपुरा में 10 दिसंबर की दोपहर दो बजे से अगले 48 घंटों के लिए SMS और इंटरनेट सेवाएं सस्पेंड भी कर दी गई हैं. डिब्रूगढ़ में बड़े प्रदर्शन हुए हैं. पूर्वोत्तर की लगभग हर यूनिवर्सिटी में एक हफ्ते से प्रदर्शन हो रहे हैं.
अगरतला में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के ख़िलाफ हुए प्रदर्शन की तस्वीर.
अगरतला में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के ख़िलाफ हुए प्रदर्शन की तस्वीर.

लोकसभा में बिल पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इस संशोधन से किसी पर भी कोई असर नहीं होगा. असम में हाल ही में NRC की प्रक्रिया पूरी हुई है. इसमें क़रीब 19 लाख लोग खुद को भारतीय नागरिक साबित नहीं कर पाए हैं. पूर्वोत्तर में प्रदर्शन कर रहे लोगों को आशंका है कि उनकी ज़मीन पर अवैध प्रवासियों को रखा जाएगा. और नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद वो नागरिकता के पात्र हो जाएंगे. हालांकि सरकार ने बार-बार आश्वस्त करने की कोशिश की है कि छठी अनुसूची और इनर लाइन परमिट होने की वजह से नागरिकता पाने वाले शरणार्थी यहां नहीं बस पाएंगे. साथी ही उन इलाकों में रह रहे शर्णार्थियों को भारतीय नागरिकता नहीं मिलेगी.
दिल्ली में हुए प्रदर्शन की तस्वीर.
दिल्ली में हुए प्रदर्शन की तस्वीर.

अमित शाह और सरकार का दावा है कि इस बिल का मक़सद धार्मिक आधार पर प्रताड़ना सहने वाले शर्णार्थियों को सम्मान देना है. उन्हें भारत की नागरिकता देना है. शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 में भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है, लेकिन अवैध प्रवासियों को किसी भी कीमत पर देश में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पूर्वोत्तर में मचा बवाल कुछ और बयां कर रहा है. वहां विश्वास नहीं, हंगामा है.


वीडियो- नागरिकता संशोधन बिल को लोकसभा में पास कराने के लिए अमित शाह ने क्या-क्या दलीलें दी?

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