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गोपालदास नीरज, जो कहते थे 'बाद के लड़कों में गुलज़ार सही काम कर रहा है'

सोहन लाल द्विवेदी को जब नीरज के लिए माइक छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था.

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4 जनवरी, 1925 - 19 जुलाई, 2018.
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अनिमेष
20 जुलाई 2018 (Updated: 19 जुलाई 2018, 04:24 AM IST) कॉमेंट्स
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नीरज नहीं रहे. गोपालदास नीरज. जो शोखियों में फूलों का शबाब घोलकर प्यार का नशा तैयार करते थे. लंबे समय से बीमार थे. एम्स में इलाज चल रहा था. 19 जुलाई, 2018 की शाम खबर आई कि नीरज चले गए. लेकिन नीरज जाने से पहले बहुत जीए. वटवृक्ष जितना. 93 साल. इसीलिए पूरे अधिकार से गुलज़ार को लड़का कहते थे.
गोपाल दास नीरज हिंदी के बड़े गीतकार थे. इतने बड़े कि किसी कार्यक्रम में भोपाल गए गुलज़ार साहब को पता चला कि नीरज जी भी भोपाल में हैं. तो लपक के दद्दा के पैर छूने उनके पास चले गए. 91 की उम्र में नीरज कहते थे कि उनके बाद के 'लड़कों' में गुलज़ार सही काम कर रहे हैं. महादेवी के शहर फ़र्रुखाबाद से नीरज जी का पुराना नाता था. फ़र्रुखाबादियों ने नीरज से भरपूर प्रेम भी किया और उनसे शरारत भी की. 4 जनवरी, 1925 को पैदा हुए नीरज के अब हमारे बीच नहीं हैं. उनकी लंबी ज़िंदगी में ढेरों किस्से हैं, जो पूरी रात बैठकर सुनाए जा सकते हैं. उनमें से कुछ लल्लनटॉप ने कुछ वक्त पहले आपकी नज़्र किए थे. आज जो नीरज के जाने की खबर आई है, जी चाहता है कि एक बार फिर आपसे बांटें.

जब सोहनलाल द्विवेदी को हूट किया गया

60 का दशक था. शहर के बीच में रामलीला मैदान में कवि सम्मेलन हुआ. तब कविता पढ़ने के दो दौर हुआ करते थे. पहले दौर में तब के युवा गीतकार ने मंच पर गीत पढ़ा 'चांदनी में घोला जाए फूलों का शबाब' जो बाद में फिल्म में 'शोखियों में घोला जाए' के नाम से फिल्म में आया. पब्लिक खुशी से पगला गई. इसके बाद सोहन लाल द्विवेदी माइक पर आए. गांधीवादी, युवाओं को रास्ता दिखाने वाली कविताएं लिखने वाले. सोहन बाबू ने जनता और नीरज जी को खरी-खरी सुना दी.
आज का युवा अब ये सुनेगा. कविता में प्रेम और शराब पीने की बातें होंगी.
पब्लिक खामोश हो गई. खैर इसके बाद सोहनलाल जी ने कविता पढ़नी शुरू की. अब जनता ने हंगामा काट दिया. इस आदमी को हटाओ. इसे नहीं पढ़ने देंगे. अब तो नीरज को ही सुना जाएगा. भीड़ जब अपनी मर्ज़ी पर आ जाती है तो फिर किसी को नहीं बख्शती. ऐसा ही उस दिन हुआ. सोहनलाल द्विवेदी को गोपालदास नीरज के लिए मंच छोड़ना पड़ा. नाराज़ द्विवेदी जी दुबारा कभी फ़र्रुख़ाबाद नहीं आए.

जब नीरज के साथ शरारत हुई

हर साल जनवरी में फ़र्रुख़ाबाद जिला प्रशासन एक कवि सम्मेलन करवाता है. ये बात उस समय की है जब नीरज जी को पद्मश्री मिली थी. पद्मश्री के एवज में नीरज जी ने आयोजन करने वालों से कुछ एक्सट्रा पेमेंट की बात कही. लोगों ने खुशी-खुशी मान लिया. मंच पर संचालन कर रहे थे फ़र्रुख़ाबाद के ही शिवओम अंबर. नीरज जी अपने साथ दो बच्चों को लेकर आए.
दद्दा ने आदेश दिया. 'शिवओम, ये दोनो बच्चे बड़ा अच्छा लिखते हैं इन्हें पढ़वा देना.'
अब दद्दा की मांग को कौन टालता. शिवओम जी ने मान लिया. अब बच्चों की कविता पर नीरज जी रीझ गए. बोले,
'शिवओम इन दोनो को तो बड़ा इनाम देना चाहिए.''दद्दा, आप बता दो कितने का दिलवा दें, 500 या हज़ार.'
नीरज जी आदेश देते रहे और उनकी ख्वाहिशों पर लोगों को इनाम मिलता रहा. नीरज जी को भी मन में संतोष था कि सरकारी खर्चे से युवा प्रतिभाओं को इनाम मिल रहा है. कवि सम्मेलन खत्म हुआ. सबको पेमेंट के लिफाफे मिले. नीरज जी को पता था कि पैसे तो पूरे होंगे ही मगर फिर भी बिना ज़रूरत के गिन लेते हैं. धनराशि कम थी. नीरज जी को लगा कि शायद पैसे गलती से कम हुए होंगे. पूछा कि शिवओम बेटा पैसे कम है.
'आपने ही तो सबको इनाम दिलवाया था, दद्दा.'
अब नीरज जी को व्यक्तिगत रूप से जानने वाले समझ गए होंगे कि. पेमेंट में कमी होने पर नीरज जी के दिल पर क्या गुजरी होती. कोई और शहर होता तो शायद नीरज जी की नाराज़गी संभाले नहीं संभलती. मगर फ़र्रुखाबाद के पुराने प्रेम और अपने छात्र शिवओम अंबर की शरारतों को नीरज जी मुस्कुरा कर सहन कर गए और शायद मन में गुनगुना गए.

'और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे.'


एक कविता रोज़ यहां पढ़ें:

इस तरह भूल जाएं बीते साल भर की मुश्किलेंमेरी मां मुझे अपने गर्भ में पालते हुए मज़दूरी करती थीमैं तब से ही एक मज़दूर हूंबड़े लोग इसी काम के लिए बेदांता नाम के हस्पताल में जाते हैंकिन पहाड़ों से आ रहा है ये किस समंदर को जा रहा हैये वक़्त क्या है?पंच बना बैठा है घर में फूट डालने वालासुनो परम ! पैदल चलनाहाथ से लिखना और सादा पानी पीना…बंधे हों हाथ और पांव तो आकाश‘ हो जाती है उड़ने की ताक़तअगर बचा रहा तो कृतज्ञतर लौटूंगातीन आलू सरककर गिर गए हैं किसी केमेरे लिए दिल्ली छोड़ने के टिकट का चन्दा इकट्ठा करेंदिल्ली में रोशनीशेष भारत में अंधियाला है

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